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गुरुवार, 28 मई 2020

1777...कैसी तृप्ती है औझड़-सी...

सादर आभार। 

गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

2020 की फ़रेबी शुरुआत 
अब हैरान नहीं करती 
 विरक्ति-मार्ग की युक्ति 
अब हैरान नहीं करती।
-रवीन्द्र 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-  
  
 
कैसी तृप्ती है औझड़ सी
तृषा बिना ऋतु के झरती
अनदेखी सी चाह हृदय में
बंद कपाट उर्मि  भरती।
लहकी नागफणी मरुधर में
लूं तप्त फिर भी सूखे।।

 

अँधेरे से डर नहीं जाना
साँझ ढले सूरज बोला।
रैन ढले ही भोर सुहानी
आशा का भरती झोला।
पुष्प खिलेंगे मन बगिया में
सुंदर महकते सुनहरे।



कौतुहल था शायद ,
शायद जिज्ञासा थी ,
क्योंकि
उस धरातल पर
शब्द बेजरूरत थे ,
अनबोला ख़ामोशी
भाषा की परिणति थी ,
भावों की भाषा थी |


 
शब्द समर्थ नहीं या गढ़े नहीं गए या प्रतिवंधित हैं ,
खंडित विश्वास रक्त रंजित मन किसकी गाथा लिखेगा-



 

बिखेरती हैं जब-जब बारिश की बूँदें
गर्मियों की तपिश के बाद
सोंधी सुगंध तपी मिट्टीयों की,
तब भला बादल कहाँ पास होता है ?
 *****



हम-क़दम का नया विषय


आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे आगामी मंगलवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

14 टिप्‍पणियां:

  1. अब कोई बात या कुछ भी हैरान नहीं करता .. मानों हैरानी रोधक/प्रतिरोधी हो गया है दिल दिमाग

    सराहनीय प्रस्तुतीकरण अपना ख्याल रखें

    जवाब देंहटाएं
  2. कुछ ही वर्ष में अभ्यस्त हो जाएगा
    हमारा शरीर...हम फिर से चाऊमीन और
    मंचूरियन खाने लगेंगे,पनीरचिली के साथ..
    यहां नही तो वहां सही..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. 2020 की फ़रेबी शुरुआत..सच्ची बात है, पर आशाओं में ही तो जीवन है।
    बहुत सुंदर रचनाओं का संकलन
    धन्यवाद एवम्भ शुभकामनाएँँ

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात संग नमन आपको ..इस मंच पर आज की अपनी इंद्रधनुषी प्रस्तुति में मेरी रचना/विचार को स्थान देने के लिए आपका आभार रवीन्द्र जी ..

    आज के आपके आगाज़ ..:-
    2020 की फ़रेबी शुरुआत
    अब हैरान नहीं करती
    विरक्ति-मार्ग की युक्ति
    अब हैरान नहीं करती।...-
    की बात करें तो .. बेचारे 2020 को क्यों दोष देना भला .. "फ़रेब" तो हमारे लिए नई वस्तु है ही नहीं ना .. अगर पौराणिक कथाओं को सच मान लें (जैसा कि हम मानते भी हैं) तो हमारे मुनि (दुर्वासा/अहिल्या) और देवता (इंद्र/कुंती) भी तो फ़रेबी ही थे।
    ये हँसुआ के बिआह में खुरपी का गीत सिर्फ इस लिये किया कि हम फ़रेब के आदी हैं और बेचारा 2020 निर्दोष है ..
    सादर
    आदरणीय

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. रवीन्द्र जी,
    एक और उत्कृष्ट अंक के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी रचना की पंक्ति को शीषर्स्थ रख कर जो सम्मान दिया उसके लिए सदा अनुग्रहित रहूंगी।
    भूमिका की चार पंक्तियां सारगर्भित सार्थक।
    बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति ।
    सभी रचनाकारों को बधाई सभी रचनाएं बहुत सुंदर।
    मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह!सुंदर प्रस्तुति अनुज रविन्द्र जी ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  10. 2020 की फ़रेबी शुरुआत
    अब हैरान नहीं करती
    विरक्ति-मार्ग की युक्ति
    अब हैरान नहीं करती।
    क्योंकि हद पार कर चुकी हैरानगी...
    शानदार प्रस्तुतीकरण उत्कृष्ट लिंक संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  11. वो दिन अब ना भूल पाएंगे

    जवाब देंहटाएं

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