वेदना
यूं ही नहीं ताकता नारी मन,नीलम बादल चंद्रमा में
पाती खुद को उन दोनों में,सजल नैन शीतलपन में।
मन प्रबल पर इच्छा रखती,तुड़े-मुड़े से काग़ज़ सी
बीच भंवर में डूबे नौका, जैसे कश्ती काग़ज़ की।
कुछ भी कह न पाता हूँ
सब कहते है की तेरा दिल था छोटा
पर शायद अपना भाग था खोटा
मुसीबतें तो आएंगी मगर डरने का नहीं
डोर जिसके हाथों में है डालेगा वही नई
सदा हमारी बातों पर चर्चाएं चलेंगी नई
मुसीबतें तो आएंगी मगर डरने का नहीं
कैंची सीखने में सहायक साईकिल नई
सफलता मंजिल नहीं यात्रा होती है नई
मुसीबतें तो आएंगी मगर डरने का नहीं
लघुकथा दुनिया
संकलन: द्वितीय ऑनलाइन लघुकथा गोष्ठी | आयोजक: लघुकथा शोध केंद्र, दिल्ली | संकलन: लघुकथा दुनिया
साहित्य की साधना ही प्रेम की सच्ची पूजा है।
मिले जब अपनों से आघात
न करना तुम कोई प्रतिघात
बनेगी बिगड़ी हर इक बात
संभालो बस अपने जज्बात
चले आओ चले आओ, सुस्वागतम
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पुन: मिलेंगे
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एक सौ अट्ठारहवाँ विषय
शोहरत
उदाहरण
कितना बेबस कर देती है शोहरत की जंजीरे भी
अब जो चाहे बात बना ले हम इतने आसान हुए
- डॉ. राही मासूम रजा
पूरी रचना पढ़िए
प्रेषण तिथिः 02 मई 2020
प्रकाशन तिथिः 04 मई 2020
माध्यम ब्लॉग संपर्क फार्म
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत अच्छी रचनाओं का संग्रहणीय संकलन है दी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
सादर प्रणाम।
सदाबहार प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की छोटी सी बूंद को कविता के महासागर में शामिल करने के लिए कोटि कोटि धन्यवाद।
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