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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैंं-
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इस बार का विषय है-
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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जवाब देंहटाएंवजनदार प्रस्तुति..
विस्मयकारी विषय..
आभार....
सृष्टि के संचालन के लिए अर्द्धनारीश्वर बने थे.. स्त्री में कुछ पुरुष के गुण और पुरुष में कुछ स्त्रियों के गुण होने से पूर्णता प्राप्त इंसान होना सम्भव होता है.. सुंदर भूमिका के संग सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंवही गुण स्त्री में ओर वही पुरुष में -अंतर केवल यह कि एक में कुछ विशेष गुणों की प्रधानता और दूसरे में दूसरे गुणों की.विशेष परिस्थितियों में मनस्थिति बदलने पर तदनुरूप गुण का प्रबल हो उठना सहज मानवीय स्वभाव है.
जवाब देंहटाएंवाह!खूबसूरत भूमिका श्वेता 👌सुंदर लिंक संयोजन ..।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब श्वेता जी ,कविता और कवि हृदय का सार समझाती सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंबातें तो सार्थक कहिन,
जवाब देंहटाएंजुडे धड और शूल,
आगे समझ अपुन की,
टहनी सींचे या मूल,
स्त्री सर्वगुन सम्पन्न है जबकि पुरुष अधूरा है स्त्री बिना ...
जवाब देंहटाएंअच्छे सूत्र संजोए हैं आज ...
आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति प्रिय श्वेता | यद्यपि दया , करुना इत्यादि को किसी व्यक्ति विशेष से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है , पर ये शश्वत सत्य है कि
जवाब देंहटाएंहर नारी में ये गुण बहुधा विराजमान रहते हैं | गुरुवार और जैन तीर्थकर के बारे में नयी बातें जानी | इस सुंदर चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार | आज के सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं| सस्नेह --
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउर्वर भूमि में ही बीज उगते, पल्लवित एवं पुष्पित होते हैं। सत्य ही है सृजन के लिए स्त्रियों का सा हृदय चाहिए। सादर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति उम्दा एवं उत्कृष्ट रचनाएं...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।