भाई कुलदीप जी की
गैर मौजूदगी में
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मैंने देखी नारि हजार ....
मैंने देखी नारि हजार
पर ऐसी कहूँ न पाई
सातीं देखी घस खोदा
जाके बने बुध्दि के लोंदा
नाय सूझ - बूझ कौ सार
बचवे में रही भलाई
श्रमजीवी श्रम धावक .....
क्रमबद्ध संयम संभाले
बढ़ाती क़दम बारंबार।
बेबस बेसहारा मजबूर नहीं
बोल रही वो।
नेता, राजनेता, अभिनेता-सा
अभिनय नहीं
श्रमजीवी श्रम धावक श्वेद संग
बतियाती वो।
श्रमवीर .....
"अपनी मेहनत " या यूँ कहे कि -" अपनी मानवीय शक्ति " को बेचकर धन अर्जित करने वालो को " मजदूर या श्रमिक" कहते हैं। धनवान धन लगता हैं, बुद्धिमान बुद्धि, मगर यदि श्रमिक अपना श्रम प्रदान ना करे तो संसार में कोई भी सृजन असम्भव हैं।ये श्रमिक हमारे समाज के वो अभिन्न अंग हैं जिनके बिना ये बुद्धिजीवी और लक्ष्मीपुत्र एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। फिर भी, इन श्रमिकों का सबसे ज्यादा निरादर ये वर्ग ही करता रहा हैं। निरादर ही नहीं शोषण भी करता रहा हैं।
क्षणिका ....
जन्म मरण एक साथ
जब सुनने को मिलते हैं
मन में विरक्ति जाग्रत होती है
मन संसार से उचटता है |
मकान और घर ...
उसे अब अन्दर का
लॉकडाउन तोड़ना है,
थोड़ा-सा अपनापन,
थोड़ा प्यार छिड़कना है,
उसे अपने मकान को
घर बनाना है.
देख रहे है नैन ....
गिरते उठते चोट लगी ,
घायल हो गए पाँव
मजदूर का संकल्प यही,
मिल जाये बस गांव
पन्ना उलूक का..
‘उलूक’ वक्र का
ढलना यहीं से
सीखा जाता है
वक्र का शिखर
मुट्ठी से बाहर
आ ही जाता है
उस समय जब
सभी कुछ मुट्ठी
में समाया हुआ
मुट्ठी में नहीं
मिल पाता है
अपनी अपनी जगह
जहाँ था वहीं जैसे
वापस चला जाता है
..
आज बस
सिलसिला जुड़ा
तो फिर कभी
सादर
सुंदर प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआभार दिग्विजय जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक!
जवाब देंहटाएंशानदार विषय सामग्री।
सभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत सुंदर ।।
बेहतरीन प्रस्तुति सर ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार आपका ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का चयन किया गया है पाठकों को अच्छी से अच्छी रचनाएँ पढ़वाने के लिए.
आज की हलचल प्रस्तुति में रचना सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय.
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
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