हर रोज तो बेख़ुदी ही ज़मीर का कातिल है।
कल की ही बात है 'हाइकु चर्चा' में डॉ. जगदीश व्योम जी ने एक गहरी बात कही,-
"आजकल वही सबसे अधिक परेशान हैं , जो अधिक संवेदनशील हैं ।"
तो 'अति सर्वत्र वर्जयेत्'। इंसान बने रहने के लिए क्या होना चाहिए..
पहला कदम
कदम बढ़ाने की जरूरत है
काजल के पर्वत पर चढ़ना
फौजी बीवी
ठोस कदम
बाधाएँ आती है आएँ,
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों से हँसते–हँसते,
आग लगा कर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।अटल बिहारी वाजपेयी
पुन: मिलेंगे...
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"आजकल वही सबसे अधिक परेशान हैं ,
जवाब देंहटाएंजो अधिक संवेदनशील हैं ।"
बेमिसाल, हरदम की तरह...
सादर नमन..
🙏🙏पांच लिंक मंच को नमन और समस्त पाठकवृंद को अभिवादन 🙏🙏
जवाब देंहटाएंकदम विषय पर बेमिसाल अंक। निए ब्लॉग और नये चिंतन से परिचय बहुत अच्छा है।
लक्ष्मण रेखा बड़ी क्षीण है, बड़ी क्रूर है काई,
कदम कदम पर फिसलायेगी रेशम सी चिकनाई !!
काजल के पर्वत पर चढ़ना, और चढ़ कर पार उतरना,
बहुत कठिन है निष्कलंक रह करके ये सब करना !!!
बस यही है एक नैतिक बोध से भरे वयक्ति की उलझन, कि कुत्सित मानसिकता वाली राजनीति की बिसात हर कदम पर बिछी है। इस शोधपरक शानदार अंक के लिए आपको बधाई आदरणीय दीदी 🙏🙏। आशा है आगे भी ऐसे ही शानदार अंक आते रहेंगे। सुप्रभात और प्रणाम 🙏🙏🌹🌹
"आजकल वही सबसे अधिक परेशान हैं , जो अधिक संवेदनशील हैं ।"
जवाब देंहटाएंकाश कि कुछ संवेदनशीलता देश के तथाकथित जन प्रतिनिधियों के हृदय में भी जागृत हो सके।
सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक है दी।
हमेशा की तरह शानदार अंक।
सुप्रभातम् दी।
सादर।
शान
जवाब देंहटाएंशान
जवाब देंहटाएंसुंदर उत्कृष्ट रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहह..
जवाब देंहटाएंसदा की तरह
अभी एक महीना और वहीं गुज़ारें
सादर नमन
सार्थक और सामयिक!
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंसार्थक और बढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंकों के साथ शानदार प्रस्तुति...
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