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गुरुवार, 14 मई 2020

1763...महज़ एक इंसान बनकर...

सादर अभिवादन। 

सत्ता के समर्थक 
अहंकार में 
इतने डूब गए कि
मज़दूर हित की 
बात करनेवालों की 
खिल्लियाँ उड़ाने लगे 
ख़ुद को वे निर्लज्ज 
योद्धा कहलाने लगे।
-रवीन्द्र 

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
   


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याद आएँ जो तुझे, कूचे
कभी इस शहर के
आँसुओं को मत बहाना
घूँट पीना जहर के
वेदना मत भूलना यह
भरने ना देना घाव रे !!!



 
भोर भई, खेतन में जोतूँ 
खुद को बैल बनाए
बैलन घूरे, हमको देखें 
रगड़-रगड़ बौराए। 

सूर्य देवता दया खाएं 
अगनी-सा बरसायें
बिन पानी मैं गिरी खेताड़ी 
मुँह में धूरि लगाये। 


 

फल उसूल के एक नहीं,
आदत हो गयी लंगूरी है।
 चौराहे पर भीड़ जमा,
ये पागलपन अंगूरी है।

 
 मिटाते क्यों नहीं
हम लोग आपस का
झगड़ा जीते जी
महज़ एक इंसान बनकर
और मर कर भी औरों के
काम जाएं हमलोग
क्यों नहीं भला हमलोग
देहदान  करते हैं ...


 
"कैसे सब्र करुँ? ये पिछले दो साल से घर बैठे हैं वह दो महीने घर नहीं बैठ पाया। घबरा क्यों गया,माँ-बाप बोझ लगे
 उसे?"
सुमित्रा काकी के पति के दोनों पैर किसी हादसे में कट गए थे अब वह एक ही जगह बैठे रहते हैं। 
परंतु कौन नहीं टिक पायाकिसे बोझ लगे; यह नहीं समझ पायी।



हम-क़दम का नया विषय



आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे आगामी प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

10 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे भ्रमित योद्धाओं को महत्व देने का कोई औचित्य नहीं।
    सबका अपना दृष्टिकोण हैं दूसरे के कर्म से व्यथित होकर हम अपने लक्ष्य से न भटके यही हमारे कर्म की सार्थकता है।
    पठनीय सूत्रों से सजी सुंंदर प्रस्तुति।
    मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत आभार रवींद्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन हैट्रिक
    धारदार रचनाएँ
    आभार..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर संकलन। लेकिन मज़दूरों की भला कौन खिल्ली उड़ा रहा है। हम स्वयं भ्रमित हैं। समाज ही जब निर्लज्ज हो जाय तो सत्ता क्या कर लगीं। अब मुझे उस समाजशास्त्री का नाम याद नहीं आ रहा जिसने गिरते नैतिक मूल्यों पर कहा था, अब सत्ता नहीं, प्रजा को ही बदलना होगा, हम इतने नैतिकता विहीन हो गए हैं। जात-पात, धर्म-मज़हब, वाद, पंथ और खेमें में खड़े होकर हम अपनी सत्ता बनाते हैं और फिर प्रलाप करते हैं। बहुत कुछ सीखा गया -कोरोना! प्रसिद्ध आलोचक नंद किशोर नवल को श्रद्धांजलि और आभार उनके परिजनों का जिन्होंने उनके शव यात्रा के क्रम में उनकी अर्थी को पटना विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में तनिक विश्राम देकर उनकी अंतिम इच्छा पूरी की।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर हलचल प्रस्तुति. सभी रचनाएँ बेहतरीन. सभी को बधाई. विचारोत्तेजक संक्षिप्त भूमिका.
    मेरी रचना शामिल करने हेतु सादर आभार आदरणीय सर.
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति, सार्थक सुंदर रचनाएँ। मेरी रचना को पाँच लिंकों में स्थान देने के लिए हृदयपूर्वक धन्यवाद आदरणीय रवींद्रजी।

    जवाब देंहटाएं

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