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रविवार, 17 मई 2020

1766.....कितने विवश हैं


जय मां हाटेशवरी......
तीसरे  चरण    का लौक-दौउन आज समाप्त हो जाएगा ....
करोना तो कहर मचा रहा है न.....
  प्रश्न-
Corona से कैसे बचे
-उत्तर-
सामने वाले को करोना  है,
 मान कर चलें
-------
आदरणीय यशोदा दीदी की फेसबुक वॉल से....
मैंने जीवन में पहली बार.....
मास्क का उपयोग किया है.....
भले ही मेरे जिले में.....
करोना का एक भी केस नहीं है.....
पर अपनी सुरक्षा अपने हाथ में है......
लीजिये पढ़िये.....
मेरी पसंद.....


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दोहे-कर्म ,धर्म,मर्म
कोयल बैठी मौन है , कौवे करते शोर।
करते बातें मर्म की , बोले वचन कठोर।।



रोटी की तलाश
हादसे के बाद,
मजदूर की लाश बोली।



शब्द बीज
शब्दों ने मानव की आत्मा को ढक लिया है
वह प्रकट होना चाहती है
पर कोई न कोई पहरे पर खड़ा है
जीवन हर बार किसी शब्द से टकराकर
औंधे मुँह पड़ा  है !



अब कोई दुआ न देना - -
वो नशा जो चेहरे तक आ
के सिमट जाए, वो
चाहत अपने
आप उतर
गई
सारी । चाँदनी का लिबास
ओढ़े कब तक इंतज़ार
करे कोई, झरते



 हाइकु कविताएँ--आभा खरे
कूकी कोयल
मुँह ढांप के सोये
गाड़ी के हॉर्न
प्रकृति के गीत को सुनना है तो हमें उसके साथ जुड़ना होगा।ऐसा ही संदेश देता यह हाइकू।जब हम भौतिकतावाद को त्याग कर अपने आप से जुड़ेंगे तभी हमें कोयल की कूक
सुन पायेंगे।आज यह समय सार्थक है।बहुत उत्तम हाइकु।



रंगीन शाम
जिंदगी में भी एक शाम आती है
जब हम बूढ़े होते है
फिर याद आती है
हर एक उस पल की
जब हम बच्चे  थे
कैसी कैसी शरारते करते थे


कितने विवश हैं
सरकार के लिए वोट बैंक भर हो
मान लो और जान लो
तुम मरते रहोगे
वो बस आंकड़े दर्ज करते रहेंगे
और हो जायेगी इतिश्री
तो क्या हुआ
घर पर माँ की आँखें इंतज़ार में पथरा जायेंगी
तो क्या हुआ
पत्नी की मांग सूनी पगडण्डी सी नज़र आएगी

धन्यवाद।

5 टिप्‍पणियां:

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