कहीं कुछ तो कहीं कुछ
पर बदली जरूर है हर जगह
सादर अभिवादन...
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पढ़िए एक अखबार की कतरन
विषयः
याद
उदाहरण
फिर से आज बौराई शाम
देख के तन्हा मन की खिड़की
दबे पाँव आकर बैठी है
लगता है आज न जायेगी
यादों में पगलाई शाम
प्रकाशन तिथिः 04 फरवरी 2019
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यशोदा
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प्रेम की सच्चाई की बोलियां ही गायब हैं
जवाब देंहटाएंआदमी के अंदर से बिजलियां ही गायब हैं..
बिल्कुल सच्ची बात ,इसे गयब रखने में ही इस अर्थ युग में सम्वेदनशील इंसान की भलाई है, अन्यथा भावनाओं में बह कर वह अपने लिये अंधकार का सृजन करेगा, उपहास का पात्र होगा..?
चापलूसी की भाषा ही अब सब समझ रहे हैं, प्रेम की नहीं।
मौसम जो हमें खराब लग रहा है,किसानों को खुश कर रहा है। बस ओला न पड़े।
सभी को सुबह का प्रणाम, सुंदर संकलन ।
होटल के बाहर अभी प्रथम दर्शन कबाड़ बटोरने वालों का हुआ, मानो प्रकृति ने उन्हें कोई सुरक्षा कवच पहना रखा हो।
बेहतरीन प्रस्तुति । सुंदर भावों को स॔जोती। शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ।
सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
वाह!!बहुत सुंदर संकलन !!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात |उम्दा संकलन |
जवाब देंहटाएंसुंदर संयोजन आज का ...
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स हमेशा की तरह ... आभार आज मेरी ग़ज़ल को यहाँ जहः देने के लिए ...
सुन्दर संकलन। आभार 'उलूक' की रद्दी की एक खबर दिखाने के लिये यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन |
जवाब देंहटाएंhttps://kavivirajverma.blogspot.com/
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति👌
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही सुंदर लघु प्रस्तुति आदरणीय यशोदा दीदी |दिगम्बर जी की रचना लाजवाब है तो उलूक दर्शन का भी जवाब नहीं | सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनयें और आपको हार्दिक बधाई | सादर
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार यशोदा दी ,लाजबाब संकलन ,सभी रचनाकार को सादर नमन
जवाब देंहटाएंउत्तम बहुत शानदार प्रस्तुति हर रचना लाजवाब।
जवाब देंहटाएंसुशील सर और नासवा जी के ब्लॉग पर टिप्पणी नही हो पा रही दोनों ही लाजवाब प्रस्तुति।
सभी रचनाकारों को बधाई ।
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनायें
सादर आभार ......प्रेम की, सचाई की, बोलियाँ ही गायब हैं -अशोक अंजुम जी रचना संकलित करने के लिए