कुलदीप जी आज नहीं हैं
सो आज हम हैं...
पढ़िए आज हमारी पसंदीदा रचनाएँ...
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फगुनाहट ले आना.... शशि पुरवार
जर्जर होती राजनीति की
कुछ आहट ले आना
नए साल तुम कलरव वाली
आहट ले आना
भाग रहे सपनों के पीछे
बेबस होती रातें
घर के हर कोने में रखना
नेह भरी सौगातें
खुशियों का आगाज़ सुनो !!..... मुदिता
सर्द रातों में
कोहरे की चादर से
ढके माहौल को
धुंधलाती आँखों के परे
महसूसते हुए
होती है सरगोशी अक्सर
कानों में
"मेरी आवाज सुनो"!
आशाओं का दामन..... लोकेश नदीश
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ये सहज प्रेम से विमुख ह्रदय
क्यों अपनी गरिमा खोते हैं
समझौतों पर आधारित जो
वो रिश्ते भार ही होते हैं
क्षण-भंगुर से इस जीवन सा हम
आओ हर पल को जी लें
जो मिले घृणा से, अमृत त्यागें
और प्रेम का विष पी लें
शराफत की ठण्ड से.... ज्योति खरे
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शराफत की ठंड से सिहर गये हैं लोग
दुश्मनी की आंच से बिखर गये हैं लोग--
जिनके चेहरों पर धब्बों की भरमार है
आईना देखते ही निखर गये हैं लोग--
लम्हे इश्क के ...दिगम्बर नासवा
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एक दो तीन ... कितनी बार
फूंक मार कर मुट्ठी से बाल उड़ाने की नाकाम कोशिश
आस पास हँसते मासूम चेहरे
सकपका जाता हूँ
चोरी पकड़ी गयी हो जैसे
जान गए तुम्हारा नाम सब अनजाने ही
बगल वाली सीट... अंकुर जैन
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क्लासरूम में
अर्थशास्त्र की शायद उस
कक्षा के बीच
खाली पड़ी अपनी बैंच के
बगल में
यकायक आ बैठा था कोई
और फिर मुश्किल था
समझना
जीडीपी और मानव विकास सूचकांक
के जोड़-तोड़ या किसी गणित को।
अंधेरे ही फैलाने को यहाँ ...डॉ. जफर
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यहाँ हरेक सुहागिन का बदस्तूर हलाला निकलता हैं,
दून से दवरा पहुचते परियोजना का दिवाला निकलता हैं,
कौन सा दामन पाक हैं किन हाथों पे क़लम रखूँ ,
मदो की बंदरबाट में हर चेहरा काला निकलता हैं,
और चलते-चलते यशोदा की पसंद
उलूक के दरबार से. .डॉ. सुशील जोशी
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बिल्ली कभी नही थी
घंटी जरूर थी
चूहों के बीच
किसी एक दो
चूहों के गले में
घंटी बधने बधाने की
नई कहानी बनायें
बिल्ली
और घंटी वाली
पुरानी कहानी में
संशोधन
करने के लिये
संसद में प्रस्ताव
पास करवायें ।
अब बारी है तिरपनवें अँक की
विषय
सब
उदाहरण
सबको हक है
सबके बारे में
धारणा बनाने का ......
सबको हक है
अपने हिसाब से
चलने का .........
सबकी मंज़िलें
अलग अलग होती हैं
कुछ थोड़ी पास
कुछ बहुत दूर होती हैं .....
..रचनाकार..
आदरणीय यशवन्त माथुर
अंतिम तिथिः 12 जनवरी 2019
प्रकाशन तिथिः 14 जनवरी 2019
इस बेलगाम प्रस्तुति का अंत यहीं पर
-श्वेता सिन्हा
ये सहज प्रेम से विमुख ह्रदय
जवाब देंहटाएंक्यों अपनी गरिमा खोते हैं
समझौतों पर आधारित जो
वो रिश्ते भार ही होते हैं
एक और सुंदर प्रस्तुति, सुबह का प्रणाम सभी को
शुभ प्रभात सखी..
जवाब देंहटाएंसहसा आपको देख आश्चर्यचकित हो गए
हमारी पसंद का आभार
सादर..
बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी सामग्री पठनीय सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह!!श्वेता , बेहतरीन अंक !!
जवाब देंहटाएंयह बेलगाम प्रस्तुति पूर्णत: चुस्त कसी हुयी ही है ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
शराफत की ठंड से सिहर गये हैं लोग
जवाब देंहटाएंदुश्मनी की आंच से बिखर गये हैं लोग--
जिनके चेहरों पर धब्बों की भरमार है
आईना देखते ही निखर गये हैं लोग-
वाह,
हर बार की तरह बेहतरीन लिंक्स।
सबकी रचनात्मकता को सलाम।
बहुत बढ़िया ....संकलन स्वेता जी, सादर स्नेह
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन..
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स का संकलन । बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार 'उलूक' का। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स हैं , आभार हमें शामिल करने हेतु हृदय से धन्यवाद
जवाब देंहटाएंछुटपन का गाँव अब जिला कहलाता है
जवाब देंहटाएंधुंधलाई यादों से बिसर गये हैं लोग--
दहशत के माहौल में दरवाजे नहीं खुलते
अपने ही घरों से किधर गये हैं लोग--!!!!
बहुत ही उम्दा रचना संकलन प्रिय श्वेता | सभी रचनाएँ पठनीय हैं |
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | तुम्हे भी उम्दा प्रस्तुतिकरण के लिए आभार और प्यार |
अत्यंत प्रशंसनीय प्रस्तुतिकरण। सभी रचनाएँ सम्मान की हकदार है। मन प्रसन्न हुआ।
जवाब देंहटाएं"शराफत की ठण्ड से....ज्योति खरे" मुझे बहुत पसंद आयी यह रचना।
सुंदर संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर