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शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

1288 रेशम से उलझे रिश्तों में, गाँठ लगी कई बार..

स्नेहिल अभिवादन
आज़ाद भारत का राष्ट्रीय त्योहार एक 
और गणतंत्र दिवस कल हम 
हर्षोल्लास से मनायेंगे।
सबसे ज्यादा उत्साहित
बुद्धिजीवी वर्ग
एक बार फिर से बुराइयों का पिटारा
खोलकर अपनी बौद्धिक क्षमता का प्रयोग करेगा।
चलिए मान लिया लाख़
बुराइयाँ है हमारे देश में,
गरीबी,भुखमरी,बेगारी,भ्रष्टाचार, घूसखोरी,
बेईमानी,नारी के प्रति असम्मान राजनीतिक अराजकता 
और भी अनगिनत।
पर सिवाय असंतोष गिनवाने और अपने अधिकार  बखानने के 
हम कितने अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हैंं
यह सोचना भी जरूरी है।
★★★★★
चलिए आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं....शशि गुप्त

ये गुमनाम राही, ये सिक्कों की झनकार
ये इसमत के सौदे, ये सौदों पे तकरार
ये कूचे, ये नीलाम घर दिलकशी के
ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के
कहाँ हैं, कहाँ हैं मुहाफ़िज़ खुदी के
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
कहाँ हैं, कहाँ हैं, कहाँ हैं..

चांद का सम्मोहन...कुसुम कोठारी

प्राचीर से उतर चंचल उर्मियाँ
आंगन में अठखेलियाँ कर रही थी
और मैं बैठी कृत्रिम प्रकाश में
चाँद पर कविता लिख रही थी
मन में प्रतिकार उठ रहा था
उठ के वातायन खोल दूं

कैसे कह दूँ ?...मीना भारद्वाज
मेरी फ़ोटो
बीते लम्हों के हर पल से, 
यादों के जुड़े हैं तार..,
कैसे कह दूँ ? 
कुछ याद नही….., 
रेशम से उलझे रिश्तों में, 
गाँठ लगी कई बार..,
कैसे कह दूँ ? 
कुछ याद नही……, 

आदरणीय प्रकाश साह जी
उसकी ओर बह जाते हैं
उसकी ओर बह जाते हैं (Uski Oor Beh Jate Hain) - UNPREDICTABLE ANGRY BOY www.prkshsah2011.blogspot.in
उसकी चुलबुली आँखें
उसमें मैं खो जाता हूँ।
जान-ए-जाँ ! मुझे माफ करना....
तुम्हें मैं भूल जाता हूँ।
मैं तो बस उसका...
दो पल ही ख्याल रखता हूँ।

घर जलाए लोगों ने करके नफ़रत.... दिलबाग सिंह विर्क

ऐ दिल न डर बेमतलब, दिखा थोड़ी हिम्मत 
इश्क़ किया जिसने, वही जाने इसकी लज़्ज़त। 

वो सहमे-सहमे से हैं और हम बेचैन 
देखो, कैसे होगा अब इजहारे-मुहब्बत। 

ए रात तुझे मैं क्या लिखूँ ....आँचल पाण्डेय

अंत लिखूँ या आगाज़ 
आज लिखूँ या कल लिखूँ 
या लिखूँ दोनों का परवान 
तुझे द्योतक अंधकार का लिखूँ 
या लिखूँ नवल प्रभात का दूत 
तुझे जोगन का जाप लिखूँ 

******
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कल का अंक पढ़ना न भूले
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हमक़दम का विषय के लिए

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-श्वेता सिन्हा










18 टिप्‍पणियां:

  1. पर सिवाय असंतोष गिनवाने और अपने अधिकार बखानने के
    हम कितने अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हैंं
    यह सोचना भी जरूरी है।

    जी श्वेता जी बिल्कुल ठीक कहा आपने।
    इस कर्तव्य नामक शब्द से हम पीछे हटते जा रहे हैं ,क्यों कि जुगाड़ नामक एक दूसरा शब्द उसे अवसाद दे रहा है।
    सुंदर चिन्तन और संकलन, पथिक के विचारों को स्थान देने के लिये आभार,सभी को सुबह का प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात सखी..
    गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या में प्रस्तुत यह प्रस्तुति अर्वाचीन भारत की हकीकत बयाँ करती नज़र आती है...
    आपके अग्रलेख के अलावा इस दर्द को गुप्ता जी ने विस्तार दिया है...
    साधुवाद...

    जवाब देंहटाएं
  3. आज़ाद भारत का राष्ट्रीय त्योहार एक
    और गणतंत्र दिवस कल हम
    हर्षोल्लास से मनायेंगे।
    सबसे ज्यादा उत्साहित
    बुद्धिजीवी वर्ग
    एक बार फिर से बुराइयों का पिटारा
    खोलकर अपनी बौद्धिक क्षमता का प्रयोग करेगा।
    चलिए मान लिया लाख़
    बुराइयाँ है हमारे देश में,
    गरीबी,भुखमरी,बेगारी,भ्रष्टाचार, घूसखोरी,
    बेईमानी,नारी के प्रति असम्मान राजनीतिक अराजकता
    और भी अनगिनत।
    पर सिवाय असंतोष गिनवाने और अपने अधिकार बखानने के
    हम कितने अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हैंं
    यह सोचना भी जरूरी है।

    बहुत सुंदर कहा....

    शानदार धारदार संकलन

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी भूमिका और शशी जी की लेखनी वाकई व्याकुल करती है, जन मानस को। चिंता और चिंतन की परंपरा में अब अमल भी शामिल होना चाहिए। जो जहां है वहीं से अमल करे। भारत माता बड़ी आशान्वित निगाहों से बाट जो रही है। बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी धन्यवाद भाई साहब, आपका यह उत्साहवर्धन मेरी चिन्तन शक्ति को गति देगा।

      हटाएं
  5. सुप्रभात !
    चिन्तनपरक भूमिका और उम्दा लिंक्स का संयोजन ।इस संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के हार्दिक आभार आपक ! सादर !

    जवाब देंहटाएं
  6. एक बार फिर से बुराइयों का पिटारा
    खोलकर अपनी बौद्धिक क्षमता का प्रयोग करेगा।
    चलिए मान लिया लाख़
    बुराइयाँ है हमारे देश में,
    गरीबी,भुखमरी,बेगारी,भ्रष्टाचार, घूसखोरी,
    बेईमानी,नारी के प्रति असम्मान राजनीतिक अराजकता
    और भी अनगिनत।
    पर सिवाय असंतोष गिनवाने और अपने अधिकार बखानने के
    हम कितने अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हैंं
    यह सोचना भी जरूरी है।....बहुत सुन्दर सोच का आह्वान,
    हर रचना अपने आप में अनमोल शब्दों में गुंथी हुई है ..
    शुभ प्रभात आदरणीय
    बहुत सुन्दर हलचल का संकलन ,
    सुन्दर रचनाएँ, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. हर लेखन परिपूर्ण हाव भाव सम्पूर्ण ....👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍

    जवाब देंहटाएं
  8. अब स्वार्थ के आगे कर्तव्य की सुध कौन लेता है
    कर्तव्य पालन भी कई बार स्वार्थ की लाठी करवाती है......बस इतनी संतुष्टि है की देश के प्रति भाव लोगों के हृदय में अभी भी जीवित है पर एक भय है कि ये देश के प्रति जो भाव बचा है कहीं वो भी स्वार्थ में डूब कर मर ना जाए

    सुंदर प्रस्तुति आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर संकलन
    सभी रचनाएँ बेहद उम्दा
    हमारी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार
    सभी को सादर नमन सुप्रभात

    जवाब देंहटाएं
  9. हमेशा की तरह ,उन्दा संकलन ,स्वेता जी ,आप को और सभी रचनाकारों को बधाई एवं गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  10. सादर प्रणाम दी।
    मुझे आगे भी लिखते रहने के लिए सदैव आप प्रोत्साहित करती रहती हैं। जब भी आपके ब्लाॅग पे मेरी रचना को स्थान मिलता है...मुझे इससे और बेहतर रचना लिखने के लिए हिम्मत और प्रोत्साहन मिलता है।

    यहाँ प्रस्तुत सारी रचनाओं को पढ़ने की कोशिश रहती है मेरी और इनसे बहुत ज्यादा सीखने व प्राप्त करने का लक्ष्य रहता है मेरा।
    हृदय से धन्यवाद मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह.......लाजवाब
    सुन्दर प्रस्तुति
    बेहतरीन अंक
    उम्दा रचनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  12. अनमोल शब्दों से रची बसी गई सुंदर प्रस्तुति..
    बहुत सुन्दर हलचल का संकलन ,
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  13. विचारणीय भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  14. वैचारिक सिद्धांतो के साथ सार्थक भुमिका, सुंदर लिंकों का संकलन शानदार प्रस्तुति ।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिये तहेदिल से शुक्रिया।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत रोचक अंक... गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..

    जवाब देंहटाएं

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