सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
1275 , 1300 से 25 कम या 1200 से 75 ज्यादा...
कोई कहता है कैसी
अनसुलझी किताब हूँ मैं .....
और ...!
कोई पढ़ लेता हैं यूँ
जैसे कोई खुली किताब हूँ मैं ...
आज जिन ढेर सारे रहस्यों से पर्दा उठ चुका है, उन्हें भी निहित स्वार्थों के कारण स्वीकार न करने वाली जड़मति ही अंधविश्वास के मूल में है । गुफाओं और जंगलों से अन्तरिक्ष तक की अपनी यात्रा में मनुष्य ने प्रकृति के रहस्यों को समझा, उसके नियमों और कार्य–कारण सम्बन्धों का पता लगाया और उनकी मदद से प्रकृति को काफी हद तक अपने वश में कर लिया।
- ”हे वीर हृदय! भारत मां की युवा संतानों! तुम यह विश्वास रखो कि अनेक महान कार्य करने के लिए ही तुम लोगों का जन्म हुआ है। किसी के भी धमकाने से न डरो, यहां तक कि आकाश से प्रबल वज्रपात हो तो भी न डरो।”
फिर मिलेंगे...
अब बारी है तिरपनवें अँक की
विषय
सब
उदाहरण
सबको हक है
सबके बारे में
धारणा बनाने का ......
सबको हक है
अपने हिसाब से
चलने का .........
सबकी मंज़िलें
अलग अलग होती हैं
कुछ थोड़ी पास
कुछ बहुत दूर होती हैं .....
..रचनाकार..
आदरणीय यशवन्त माथुर
अंतिम तिथिः 12 जनवरी 2019
यानी आज शाम तकप्रकाशन तिथिः 14 जनवरी 2019
आदरणीय दीदी...
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
सदा की तरह एक
अलग नजरिए से..
पढ़वाया..रचनाओं को
सादर...
बहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसभी को प्रणाम।
सचमुच एक सार्थक जीवन के लिये नजरिया से महत्वपूर्ण ओर शायद ही कुछ हो।
प्रणाम दी,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह सबसे अलग जानदार संकलन है।
बहुत सुन्दर संकलन ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर!! नजरिया बस अपना अपना कुछ अलग अलग।
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन।
सभी रचनाकारों को बधाई।
खूबसूरत नजरिया।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंकोई कहता है कैसी
जवाब देंहटाएंअनसुलझी किताब हूँ मैं .....
और ...!
कोई पढ़ लेता हैं यूँ
जैसे कोई खुली किताब हूँ मैं ...बहुत खूब ...
सुंदर अंक
बेहतरीन रचनाएं
Nice Post
जवाब देंहटाएंHindi Poems On Trees