प्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल
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ये कैसे शहर..??.....अभिलाषा चौहान
ये शहर ...
पत्थर का,
पत्थर के हैं लोग
दिल भी पत्थर...!
जिसके कान बहरे..!
जो नहीं देख पाता...!
निरीह की पीड़ा..!
बेबस अबला की पुकार..!
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कुछ बोलो तो भी दिक्कत...प्रभात
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खामोशियाँ खुलकर सामने आ भी जाएं अगर
कुछ तुम्हारी नजर में दिक्कत, कुछ मेरी वजह से दिक्कत
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात भाई
जवाब देंहटाएंलाज़वाब प्रस्तुति..
शानदार रचनाएँ..
आभार...
सादर....
शुभ-प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को बधाई
मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार 🙏🙏
सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत अच्छी है। सार्थक प्रस्तुति। रचनाकारों को शुभकामनाएँ। यूँ ही लिखते रहिए।
जवाब देंहटाएंयशोदा जी, भाषा की अशुद्धियाँ भाव-सम्प्रेषण में बाधक होती हैं. 'जलील' का मतलब होता है - वह व्यक्ति जिसमें कि ख़ुदा का जलाल, ख़ुदा का नूर, प्रतिबिंबित होता हो. और 'ज़लील' का मतलब क्या होता है, यह सब जानते हैं. रोमन लिपि से मंगल फॉण्ट के माध्यम से देवनागरी कर हिंदी-उर्दू में लिखने में मुझे भी कई बार कठिनाई होती है किन्तु मैं भाषा की शुद्धि के प्रति सचेत रहने का प्रयास करता हूँ. सभी लेखक-कवियों को भाषा और वर्तनी के दोष दूर करने का प्रयास करते रहना चाहिए और अगर अपनी गलत्ती पर बाद में भी नज़र पड़ जाए तो उसे सम्पादित कर सुधारना अवश्य चाहिए. जब जागो, तब सवेरा.
जवाब देंहटाएंसही मार्गदर्शन सर। सहमत है आपसे।
हटाएंसादर नमन सर।
हटाएंआपकी पाठशाला ज्ञान का भंडार है हम सभी लाभान्वित हो रहे हैं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी। आदरणीय जायसवाल जी से पूर्णतह सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी।
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