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गुरुवार, 17 जनवरी 2019

1280...ये शहर ... पत्थर का...

सादर अभिवादन। 

ये 
मेले 
झमेले 
अलबेले 
जीवन-रेले 
लॉरी-गाड़ी-ठेले    
 चलते  न  अकेले। 

आजकल लिखी जा रहीं कुछ रचनाओं में वर्तनी और मात्रा सम्बन्धी त्रुटियाँ मिलती हैं जिसके लिये कहा जाता है भाव देखिये ग़लतियाँ नहीं .... 
आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें- 

प्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल 


मेरी फ़ोटो 


ऊंचे-ऊंचे सिद्धांतों की बात करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा एक बात में बहुत कमज़ोर दिखाई दिए. जिस से उनके मधुर सम्बन्ध हों, उसकी बुराइयाँ उन्हें दिखाई नहीं देतीं. इमरजेंसी लगाने वाली इंदिरा गाँधी और राबड़ी जैसी अनपढ़ को मुख्यमंत्री बनाने वाले लालू उन्हें बेदाग दिखाई देते हैं क्यों कि उन से उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं या बहुत अच्छे थे. अपने पैर छूने वाले हाईस्कूल फ़ेल तेजस्वी का भविष्य उन्हें बड़ा उज्जवल दिखाई देता है और मायावती जी उन्हें इसलिए अच्छी लगती हैं क्योंकि उनकी किसी बड़ी मुसीबत में उन्होंने उनकी बड़ी मदद की थी. यही वह सज्जन हैं जो पाकिस्तान के ज़ालिम तानाशाह जियाउल-हक़ के खासुल-ख़ास थे.



 

खामोशी का आलम 


आहें कसक हैं 

होती हैं आहट 
लो वो जा रहा हैं  




ये कैसे शहर..??.....अभिलाषा चौहान


 

ये शहर ...
पत्थर का,
पत्थर के हैं लोग
दिल भी पत्थर...!
जिसके कान बहरे..!
जो नहीं देख पाता...!
निरीह की पीड़ा..!
बेबस अबला की पुकार..!





आज वो पहले से भी ज्यादा 
खूबसूरत लग रही थी 
पर मुझे विश्वास नहीं 
हो रहा था !


कुछ बोलो तो भी दिक्कत...प्रभात 




खामोशियाँ खुलकर सामने आ भी जाएं अगर
कुछ तुम्हारी नजर में दिक्कतकुछ मेरी वजह से दिक्कत




हम-क़दम का नया विषय


आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

10 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई
    लाज़वाब प्रस्तुति..
    शानदार रचनाएँ..
    आभार...
    सादर....

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ-प्रभात
    बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
    सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को बधाई
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी रचनाएँ बहुत अच्छी है। सार्थक प्रस्तुति। रचनाकारों को शुभकामनाएँ। यूँ ही लिखते रहिए।

    जवाब देंहटाएं
  4. यशोदा जी, भाषा की अशुद्धियाँ भाव-सम्प्रेषण में बाधक होती हैं. 'जलील' का मतलब होता है - वह व्यक्ति जिसमें कि ख़ुदा का जलाल, ख़ुदा का नूर, प्रतिबिंबित होता हो. और 'ज़लील' का मतलब क्या होता है, यह सब जानते हैं. रोमन लिपि से मंगल फॉण्ट के माध्यम से देवनागरी कर हिंदी-उर्दू में लिखने में मुझे भी कई बार कठिनाई होती है किन्तु मैं भाषा की शुद्धि के प्रति सचेत रहने का प्रयास करता हूँ. सभी लेखक-कवियों को भाषा और वर्तनी के दोष दूर करने का प्रयास करते रहना चाहिए और अगर अपनी गलत्ती पर बाद में भी नज़र पड़ जाए तो उसे सम्पादित कर सुधारना अवश्य चाहिए. जब जागो, तब सवेरा.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही मार्गदर्शन सर। सहमत है आपसे।

      हटाएं
    2. सादर नमन सर।

      आपकी पाठशाला ज्ञान का भंडार है हम सभी लाभान्वित हो रहे हैं।

      हटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी। आदरणीय जायसवाल जी से पूर्णतह सहमत हूँ।

    जवाब देंहटाएं

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