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बुधवार, 16 जनवरी 2019

1279..दुःख नहीं होगा तो क्या जी सकेंगे ...



।।उषा स्वस्ति।।
"आ गए तुम?
द्वार खुला है, अंदर आओ..!
पर तनिक ठहरो..
ड्योढी पर पड़े पायदान पर,
अपना अहं झाड़ आना.!
मधुमालती लिपटी है मुंडेर से,
अपनी नाराज़गी वहीं उड़ेल आना..!
तुलसी के क्यारे में,
मन की चटकन चढ़ा आना..!
अपनी व्यस्ततायें, बाहर खूंटी
 पर ही टांग आना.!"
निधि सक्सेना

इन खूबसूरत विचारों के साथ नज़र डालें आज की लिंकों पर...✍
🕊🕊

प्रथम प्रस्तुति के अंतर्गत आनंद ले दिगंबर नासवा जी की रचना जो सवाल,जबाब करती है...

खिलती हुई धूप के दुबारा आने की उमंग
स्याह रात को दिन के लील लेने के बाद जागती है
सर्दी के इंतज़ार में देवदार के ठूंठ न सूखें
तो बर्फ की सफ़ेद चादर तले प्रेम के अंकुर नहीं फूटते
🕊🕊
द्वितीय रचना में आप सभी आंनद ले..आदरणीय विश्वमोहन जी की , कुछ,कुछ सपनों में देखा सपना -- फिर भी हो ना सका अपना !!!! 

मैं आई.सी.सी. के समक्ष लज्जावत सर झुकाए खड़ा था. मुझ पर 'वर्क-प्लेस पर वीमेन के सम्मान को आउटरेज' करने का इलज़ाम था. यह आरोप मेरे लिए बिलकुल अप्रत्याशित था.मेरी शुचिता और मेरे निर्मल चरित्र का सर्वत्र डंका बजता था. स्वयं आई.सी.सी. के सदस्य हैरान थे. लोगों की अपार भीड़ भी आहत मुद्रा में बाहर खड़ी थी. मुझे तो काठ मार गया था . अभियोग की बात..
🕊🕊
तृतीय रचना है..आदरणीय अंशुमाला जी .. 
पंचम वेद - भाग एक 
क्या आप को पता है एक ऐसा वेद भी है जिसे शूद्र भी पढ़ सकते है |
क्या आप पांचवे वेद के बारे में जानतें हैं |
कभी सोचा है अप्सराओं का जन्म क्यों कब और कैसे हुआ |
क्या अप्सराओं के भी विवाह होते हैं |..
🕊🕊
चतुर्थी प्रस्तुति के अंतर्गत मौसम के अनुरूप ..

कुहासे की चिलमन से झाँकते सूर्य ने
भेज दीं कुछ किरणें भूमि पर
वे लगीं बड़ी भली
सर्द शरीरों में पड़ गई जान
खुल गए अंग..
🕊🕊
पंचम प्रस्तुति में आदरणीय जाफर आरोली जी के खूबसूरत ग़ज़ल के साथ..

किसी के आगे अब खुलने को हम तैयार नही
दोस्त बहुत हैं यहाँ कोई यार नही,
मुश्किलों का समुन्दर हैं,तकलीफों के पहाड़ हैं,
इस ताल्लुख़ से उबरने के कोई आसार नही,

चलते हुए एक और रचना

उलूक के दरबार से



गाँधी खुद 
एक इतिहास 

और इतिहास 
शुंड भिशुंड हो गया 

गली मोहल्ले 
शहर जिले
प्रदेश से 
बाहर कहीं 

‘उलूक’ 
कौन 
जानता है तुझे 



🕊🕊
जाते जाते पुरानी गलियों से..


🕊🕊
हम-क़दम का नया विषय
🕊🕊
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍

15 टिप्‍पणियां:


  1. मैं ही प्यासा हू और मुझी में समुन्दर हैं
    ज़िन्दगी तुझ सा कोई अय्यार नही

    सुंदर अंक और गीत भी क्या खूब-

    "कुछ नहीं चाहिए , तू अगर साथ है.."
    सभी को सुबह का प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात..
    गाँधी खुद
    एक इतिहास
    हो गया..
    एक बेहतरीन अंक...
    सादर....

    जवाब देंहटाएं
  3. सर्दी के इंतज़ार में देवदार के ठूंठ न सूखें
    तो बर्फ की सफ़ेद चादर तले प्रेम के अंकुर नहीं फूटते

    सुप्रभात,
    अत्यंत सुंदर अंक और लाज़वाब रचनाये।
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सूत्रों से सजी खूबसूरत प्रस्तुति। आभार 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय पम्मी बहन --मनभावन प्रस्तुति। खासकर भूमिका में जो रचना लगाई है आपने बेहद संदेशपरक् और हृदयग्राही है। दिगम्बर जी और जफर जी की खूबसूरत गज़लें और उलूक वाणी बहुत उल्लेखनीय है।सभी रचनाकारों मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई। आपको हार्दिक स्नेह के साथ मेरी बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. भूमिकाओं की उत्कृष्ट लड़ियों से सजी सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह्ह्ह.. बहुत सुंदर पंक्तियाँ भूमिका की पम्मी जी।
    बहुत अच्छी रचनाएँ है सारी आज के अंक में..सुंदर संकलन पढ़वाने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय पम्मी जी बहुत ही सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर प्रस्तुति पम्मी जी द्वारा। विविध विषयक सुन्दर रचनाओं का चयन। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ। एक यादगार गीत से तरोताज़ा करता वीडियो। भूमिका में निधि सक्सेना जी रचना सबका ध्यान आकृष्ट करती है।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत आभार आपका पम्मी जी मेरी रचना से आज के लिंक्स की शुरुआत करने के लिए ...
    सभी लिंक्स कमाल के हैं ... अनुपम साहित्य की धरा ...

    जवाब देंहटाएं
  11. शानदार प्रस्तुतिकरण लाजवाब लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुन्दर हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. मेरी रचना शामिल करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद पम्मी जी।

    जवाब देंहटाएं

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