साल का छठवाँ दिन
कहने को कुछ खास नहीं
चलिए चलें रचनाओं की ओर....
बड़े घर की बेटी ....विश्वमोहन कुमार
दुर्भाग्य ने अचानक साहब के शरीर में सेंध लगा दी. उनके किडनी ख़राब हो गए. बदलने की नौबत आ गयी. सत्रह लाख रुपये की दरकार थी. साहब ने चारों तरफ नज़रें घुमा लिए, एड़ी चोटी एक कर दी, हाथ पाँव मार लिए, सबसे चिरौरी कर ली. कहीं दाल न गली. हाथ पाँव फूलने लगे. कहाँ से जुगाड़े इतनी रकम. सात लाख तक ही जुटा पाए थे. भाई लाल बिहारी ने दिलासा दी. उसने खेत बेचे. मंगेतर के गहने गिरवी रखे और किसी तरह भीड़ा ली जुगत अतिरिक्त दस लाख रुपयों का. ऑपरेशन सफल रहा. साहब की जान बच गयी.
जब तुम गए .............पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
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निरंतर मुझसे परे,
दूर जाते,
तुम्हारे कदम,
विपरीत दिशा में,
चलते-चलते,
यद्यपि,
तुम्हें दूर-देश,
लेकर गए थे कहीं,
करता है माधो जब कोई इतना ज्यादा प्यार ......उदय प्रकाश
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इतना ज्यादा प्यार कि किसी के भीतर से भी
निकाल लेता हो कच्चे अमरुद और कपास के गुड्डे
इतना प्यार कि कहने लगता हो कि संसार रंग बिरंगी
टिकटों का एक अलबम भर है
जो पैंतालीस साल की उम्र में
खोज निकाले अपने स्कूल की कापी
और उसके पन्नों से बनाये हवाई जहाज
भय ..... प्रकाश शाह
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मनुष्य या कोई भी अन्य जीव इस संसार के जीवनचक्र में जब
प्रवेश करता है तो स्वतः उसमें भय का भाव रहता है....शिशु अवस्था
में उसे अपनी माता से बिछड़ने का भय रहता है; जब जीवन के
प्रत्येक आवश्यक पड़ाव पर असफलता प्राप्त होता है तब हमारे
अंदर भय का आगमन होता है.....यह धीरे-धीरे हमारे जीवन के
साथ बढ़ने लगता है और भय का विभिन्न कारण भी। अगर भय को नियंत्रित करने की कला सीख ले तो लक्ष्य प्राप्ति में हम सहजता
महसूस करते हैं। इस कला को बालावस्था में नहीं सीखा जा सकता....इसे हम जीवन के अनुभवों से सीखते हैं।
हे अज़नबी ........पल्लवी गोयल
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अजनबी !तुम कहाँ से आए
खिल मुस्कान ,तनिक मुस्काए
एक सिरे की बात बहुत थी
पकड़ पकड़ ऊपर चढ़ आए
कहाँ कहाँ की कही कहानी
कहाँ कहाँ की बातें खोदीं
वक़्त ....रवीन्द्र सिंह यादव
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एक शिल्पी है वक़्त
गढ़ता है दिन-रात
उकेरता अद्भुत नक़्क़ाशी
बिखेरता रंग लिये बहुरँगी कूची
पलछिन पहर हैं पाँखुरियाँ
बजतीं सुरीली बाँसुरियाँ
सृजित करता है
मैंने पूछा संविधान से.....मालती मिश्रा 'मयंती'
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संविधान!
क्या हो तुम
तुम्हारा औचित्य क्या है?
मैंने पूछा संविधान से..
मैं!
मैं संविधान हूँ,
अर्थात्...सम+विधान
सबके लिए समान कानून।
बड़े गर्व से बताया संविधान ने
उलूक के दरबार से
डॉ. सुशील कुमार जोशी
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तुम भी
किसी से
पूछने
ना जाओ
मान भी जाओ
पंगे ना उठाओ
वो भी चुप
हो गया है
तुम भी चुप
हो जाओ
सब कुछ
तो ठीक है ।
अब बस
पढ़ते रहेंगे तो आराम कब करेंगे आप
आज रविवार जो है..
जा रहे हैं हम भी आराम करेंगे
...... यशोदा
जी सुबह का सबकों प्रणाम।
अपने मीरजापुर में नया साल फिर से यह सवाल कर रहा था...
नववर्ष के दूसरे दिन इस जनपद के रहनुमाओं की सम्वेदना मानों मर गयी। एक माँ का लाल हमेशा के लिये चला गया। उसके इस असहनीय पीड़ा पर जनप्रतिनिधि खामोश क्यों रह गये। जरा विचार करें। एक बालक कार्यदायी संस्था की लापरवाही से खोदे गये पानी भरे गड्ढे में डूब मरा और प्रशासन और पुलिस के वे अधिकारी जिन्हें मामले को स्वतः संज्ञान में ले इसे ठेकेदार के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करना चाहिए था, वे एक ईंट भट्ठा पर काम करने वाले एक गरीब की तहरीर का इंतजार करने लगें। जब मीडिया को बाइट उसकी लेने ठेकेदार नहीं दे रहे थें, तो फिर उस मजदूर को तहरीर कहाँ देने देते। धन लक्ष्मी का खेल बड़ा विचित्र है। खैर मीडिया के पास पीड़ित परिजनों और जिन्होंने उस मृत बालक को उस गड्ढे से निकलते देखा , उनकी बाइट भी मौजूद है। धन्य हैं यहाँ के जनप्रतिनिधि जिन्होंने घटनास्थल पर जाकर यह देखने का प्रयास नहीं किया कि जिस मार्ग से प्राथमिक पाठशाला के बच्चे पढ़ने जाते हैं। उसी के बिल्कुल करीब गहरा गड्ढा खोद पानी क्यों भरा गया। उसे फिर बांस से घेरा क्यों नहीं गया। मेडिकल कालेज का ढ़िढोरा पिटने वाले रहनुमा खामोश क्यों हैं, इस मासूम की मौत पर वहाँ निर्माण स्थल पर। यह पब्लिक है, वह जानती है कि कितने सम्वेदनशील हैं उनके जनप्रतिनिधि। आज जिनके अच्छे दिन हैं , जो अपनी जिम्मेदारी से कतरा रहे हैं, बालक की मौत पर मौन हैं, कल यह अच्छा दिन जब उनका नहीं होगा, तो जनता उन्हें भी भुला देगी। अतः कुछ अलग करने की सोच होनी चाहिए , कुछ अलग पहचान होनी चाहिए और हृदय में सम्वेदना तथा न्याय करनेवाले की क्षमता होनी चाहिए। परंतु यहाँ रहनुमाओं ने तो कुछ हट कर किया ही नहीं, कुछ ने यह कह दिया है कि यह तो हिन्दुओं का नववर्ष है ही नहीं। तो फिर डायरी और कलेंडर सभी बदल दें,सरकार आपकी है। मीरजापुर की जनता संग नववर्ष मनाने की जगह यदि लखनऊ- दिल्ली में बड़े नेताओं संग दावत काटों या पार्टी दो , तो फिर उसका यहाँ क्या मतलब।
(मेरा द्वारा प्रेषित समाचार का कुछ अंश)
दुःखद समाचार।
हटाएंईश्वर बच्चे की आत्मा को शान्ति दे और पीड़ित परिवार को दुःख सहन करने की शक्ति।
सचमुच मानवता और संवेदनाओं से विहीन होता तंत्र क्या गुल खिलायेगा
हटाएंसस्नेहाशीष संग शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंवाहः
अति सुंदर संकलन
सुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंमेरे लेखनी "भय" को आपने इस प्रस्तुति में शामिल किया एवं और अधिक पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया...इसके लिए सहृदय आभार आपका।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय हलचल। आभार यशोदा जी 'उलूक' के सूत्र को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति। आभार!
जवाब देंहटाएंपठनीय लिंकों के साथ प्रस्तुति बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
खूबसूरत लिंंक्स और बेहतरीन प्रस्तुति । आभार ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशोदा जी बेहतरीन रचनाओं को साझा करने के लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया हलचल प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम
जवाब देंहटाएंएक शानदार संग्रहणीय अंक। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को रविवारीय पत्रिका में सम्मिलित करने हेतु सादर आभार।
शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा पठनीय लिंक्स...।
जवाब देंहटाएंअर्थ परक रचनाओं का सुंदर समावेश।
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक।
सभी रचनाकारों को बधाई।