अटे सने से दिन,
ठिठुरते परिंदों से दिन,
कनटोपे और
मफलर से दिन,
अम्माँ की गोद में शॉल में
घुसड़े पुसड़े से दिन,
तिल अलसी के लड्डू से दिन,
दिल के चैन के लिए ये है भी लाजमी ।।
मरु लहरियों में फंस खुद को छलता ।
प्यासे हिरण सा भटकता है आज भी ।
फिर से है इठलाया,
पूर्णता, सरसता, रोचकता,
यौवन रस भर लाया,
रसयुक्त हुए पोर पोर,
खिली डार-डार कलियाँ,
नव-श्रृजन का श्रृंगार , शिशिर ले आया !
रवीन्द्र जी प्रस्तुत कर रहे हैं
गजान माधव मुक्तिबोध की रचना..
कदम-कदम पर...
चमकता हीरा है,
हर एक छाती में आत्मा अधीरा है
प्रत्येक सस्मित में विमल सदानीरा है,
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य पीड़ा है,
उलूक के दरबार से
एक पुरानी कतरन
"ये विद्वांसा न कवय:"
बात फख़त इतनी सी है कि हम भी हैं तुम्हारे ।
जवाब देंहटाएंकरते हैं मनुहार..., रूको ! मान भी जाओ
सच में मीना दी,इसी की तलाश तो करता है आदमी,जिसे कोई मित मिला और यह मनुहार ,वह कुछ पल रुक गया ,अन्यथा तो पथिक की तरह भटकता है आदमी।
बहुत सुंदर रचना और प्रस्तुत।
सभी को सुबह का प्रणाम।
शुभ-प्रभात
जवाब देंहटाएंसादर वंदन सभी रचनाकारों का
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग शुभ दिवस छोटी बहना
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
बेतरीन रचनाएँ
सादर
सुप्रभात ! बहुत खूबसूरत संकलन । मेरी रचना को संकलन सम्मिलित कर मान देने के लिए हृदयतल से सादर आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात |मेरी रचना शामिल करने के लिये धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाओं से सजी हलचल।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय अंक। आभार यशोदा जी 'उलूक' की पुरानी कतरन को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन, सुन्दर रचनाओं से सजी हलचल की प्रस्तुति हमेशा प्रेरणास्रोत होती है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय यशोदा दीदी -- बहुत प्रेरक और बचपंन की महक लिए मीठा मधुर संकलन | सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | आपको भी बधाई इस संयोजन के लिए | साभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसादर