आशियाना, बसेरा, ठौर, ठिकाना,
आपने भी ध्यान दिया होगा
संसार में उत्पन्न प्रत्येक जीवन अपने
जीवन काल में अपने लिये एक
आशियाना अवश्य बनाते हैं।
जीव-जंतु,पक्षी सभी की महत्वपूर्ण आवश्यकता
होती है एक अदद आशियाना।
गुफा,कंदरा,पेड़,डाल,नदी,तालाब पोखर जंगल
जिसे जीव को जहाँ सुरक्षित और उचित लगता है
जीव अपना आशियाना बना लेते हैं।
उसी प्रकार जग जीवन में प्रवेश करने के बाद
प्रत्येक मनुष्य का पहला आशियाना उसकी
माँ की गोद का होता है।
जीवन जीने की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं
में रोटी,कपड़ा और मकान होता है।
मकान यानि एक ऐसा आशियाना जिसमें वह
खुद को सुरक्षित महसूस करे, सांसारिक जीवन
में बने संबंधों के साथ अपनी आवश्यकताओं
की पूर्ति करते हुये जीवन जी सके।
आदरणीय दीदी साधना वैद
मेरा कमरा- मेरा आशियाना
मल-मलकर
छुड़ा देना चाहती हूँ !
मेरे इस आशियाने में
किसी का भी प्रवेश
सर्वथा वर्जित है
शायद इसीलिये यहाँ मैं
स्वयं को बहुत सुरक्षित पाती हूँ !
इस कमरे के एकांत में
बिलकुल अकेले
नि:संग, नि:शब्द, शिथिल
आँखें मूँदे यहाँ की खामोशी को
बूँद-बूँद पीना मुझे
बहुत अच्छा लगता है !
★★★★★
आदरणीया आशा सक्सेना जी
आशियाना
की थी कल्पना
एक छोटे से आशियाने की
हुई साकार
पर पापड़ बहुत बेलने पड़े
आखिर सफलता मिल ही गई
उस की खोज में
जितना सुकून मिला वहां आकर
शब्द कम पड़ जाते हैं
उसकी प्रशस्ति में
सोचा न था
कभी वह अपना होगा
आदरणीय शम्भू नाथ जी
हमसफ़र
सोन चिरैया आंगन में आके,
मन का गीत सुनाएगी।
जो पल-पल साथ तुम्हारा देगा,
उसको तो भी साथ ले ले।
एक आशियाना मेरा होगा,
उस पर अधिकार तुम्हारा होगा।
★★★★★
आदरणीय सुरभि सोनम जी
छोड़ अपना आशियाना
छोड़ कर वो घर पुराना,
ढूंढें न कोई ठिकाना,
बढ़ चलें हैं कदम फिर से
छोड़ अपना आशियाना।
ऊंचाई कहाँ हैं जानते,
मंज़िल नहीं हैं मानते।
डर जो कभी रोके इन्हें
उत्साह का कर हैं थामते।
★★★★★
आदरणीय मुईन अहसन जज़्बी जी
मिले ग़म से अपने फुरसत
यही ज़िन्दगी मुसीबत यही ज़िन्दगी मुसर्रत
यही ज़िन्दगी हक़ीक़त यही ज़िन्दगी फ़साना
कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मदावा
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक़्र-ए-आशियाना
★★★★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान जी
उजड़ते आशियाने
पाई-पाई जोड़ कर,
दुनिया थी जो बसाई।
निष्ठुरों ने अतिक्रमण,
के नाम पर थी मिटाई।
कुचल गए सपने सारे,
उजड़ते इन आशियानों में।
रह गए बाकी निशां बस,
बाकी बचे जो अरमानों में।
बहुत गुरुर था हमें,आसमांं में आशिया बनाना था
आदरणीया कुसुम कोठारी जी
एक नादानी
कहीं एक तलैया के किनारे
एक छोटा सा आशियाना
फजाऐं महकी महकी
हवायें बहकी बहकी
समा था मदहोशी का
हर आलम था खुशी का
न जगत की चिंता
ना दुनियादारी का झमेला
★★★★★
आदरणीय कौशल शुक्ला जी
आधार न जाने क्या होगा
कोशिश की है आशियाँ बने, तैयार न जाने क्या होगा?
इस दुनियां की निष्ठुरता का आधार न जाने क्या होगा?
मेरे कल्पित इस गृह की नीवों में विश्वास समाएगा
प्रेम की दीवारें होंगी, कर्तव्य फर्श बन जायेगा
स्वच्छ चांदनी आँगन में किलकारी करती आएगी
मंद पवन शीतल होकर मन मंत्र मुग्ध कर जाएँँ
★★★★★
आशियाना
खुश हूँ ना मैं खुद से
आशियाना क्या ...
साकार सपनें थे हमारे
सींचा था जिसको
प्यार के नीर से
विशाल कमरे
खुला आँगन
आँगन के बीच
एक आम का पेड़
गूँजती थी जिसमें
★★★★
आशियाना
आदरणीय डॉ. सुशील जोशी जी
समापन
कह गये वो
रोशन है आशियां
रोशनी भी आयेगी
बेवफाओं को
तमगे बटे हैं
वफा ही क्यों
ना शर्मायेगी
यकीं होने लगा
है पूरा मुझको
दुनियां यूं ही
बहल जायेगी
★★★★★
आदरणीय सुधा देवरानी
चाहिए था तुम्हें बस अपना आशियाना
लगता बुरा था तब किरायेदार कहलाना....
पाई-पाई बचा-बचाके
जोड़-जुगाड़ सभी लगाके
उम्र भर करते-कमाते
आज बुढ़ापे की देहलीज पे आके
अब जब बना पाये ये आशियाना
चलते-चलते
आदरणीय शशि गुप्ता जी की लेखनी से
आशियाना ढूँढता है
आशियाना कभी किसी का नहीं होता है।
जिन्होंने महल बनवाये आज उसमें उनकी पहचान धुंधली पड़ चुकी है। फिर भी आशियाना है,
तो जीवन है। ब्रह्माण्ड है , पृथ्वी है, तभी
प्राणियों की उत्पत्ति है।
हर प्राणी को ठिकाना चाहिए ।
★★★★★★
हमक़दम का यह अंक
आप सबों को कैसा लगा?
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया
की प्रतीक्षा रहती है।
★
अगले अंक में हमक़दम का एक साल
पूरा हो रहा है।
आप के महत्वपूर्ण सहयोग से
एक विशेष अंक
अवश्य बन पायेगा ऐसी उम्मीद
करते हैं।
और साथ ही एक महत्वपूर्ण दिन भी है।
जिसकी सूचना उसी दिन
दी जायेगी
आप सभी का हृदय से धन्यवाद।
हमक़दम के विशेष अंक के विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले।
-श्वेता सिन्हा
शुभ प्रभात सखी...
जवाब देंहटाएंमनु मुसाफ़िर भटका आजीवन
आशियाना जग का सर्वस्व समझ बैठा
अंत समय फिर प्रश्न में उलझा
अब कौन धाम तेरा डेरा है?
आज बेहतरीन उल्लास रचनाकारों का
वर्ष तो हो गया पूरा...
आगे की योजना सोच कर रखिए..
आभार...
सादर..
जवाब देंहटाएंबहुत गरूर था हमे,आसमानों में आशिया बनाना था,
मगर किश्मत में टूटकर पंख,बस फड़फड़ाना था,
"आशियाना" पर इस सुंदर प्रस्तुति और अनेक भाव लिये रचनाओं के लिए सभी को नमन/ आभार ..।
मेरे विचारों को भी श्वेता जी आपने स्थान दिया,इसके लिये आपकों पुनः प्रणाम। आप सभी का आशियाना पूरे वर्ष खिलखिलाता,मुस्काता और प्रेम पुष्प बरसाता रहे।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार।
आत्मा का आशियाना ,
प्रभु का दिया शरीर।
जिसमें रमती आत्मा
जैसे मलय समीर
जिसमें रमती आत्मा,
प्रभु मिलन की रखें चाह।
पंचविकारों की बंदी बन,
न पावे प्रभु की थाह।
आशियाना चाहे संसार में हम बनाए या आत्मा इस शरीर को बनाए,सत्य यही है
कि आशियाना कभी न कभी छूट जाता है।
नहीं तो मोह बन सत्य से भटका देता है।
सुप्रभात ! बेहतरीन प्रस्तुति बेहतरीन भूमिका संग । बहुत खूबसूरत विविध लिंक्स का संयोजन । मेरी रचना को इस अंक मे स्थान देने के लिए सादर आभार ।
जवाब देंहटाएंकह गये वो
जवाब देंहटाएंरोशन है आशियां
रोशनी भी आयेगी
बेवफाओं को
तमगे बटे हैं
वफा ही क्यों
ना शर्मायेगी
वाह क्या खूब प्रस्तुति हैं।एक से एक रंग बिखरे हैं रचनाओं के।मुझे भी इस इंद्रधनुष में स्थान देने के लिए आभार।
आशियाना का बेहद खूबसूरत प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंसुन्दर हमकदम अंक। आभार श्वेता जी 'उलूक' के पुराने एक पन्ने को खोज लाने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात बड़े खूबसूरत आशियाने बनाए है अपनी अपनी कलम से |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आशियाना, सभी रचनाएं और रचनाकारों को शुभकमनाएं ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत हमकदम अंक 👌👌👌
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं ।
बेहद खूबसूरत सभी रचनाकारों को शुभकमनाएं ।
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है!
जवाब देंहटाएंअब कौन धाम तेरा डेर है शाश्वत पंक्तियाँ, शाश्वत भाव, शानदार संकलन श्वेता बहुत सुंदर प्रस्तुति आपकी सभी रचनाकारों के सुन्दर काव्य के साथ मेरी रचना को स्थान देने का तहे दिल से शुक्रिया । सभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत ही बेहतरीन हमक़दम का संकलन 👌
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाएँ ,सभी रचनाकारों का हार्दिक शुभकामनायें,
श्वेता जी बहुत बहुत आभार मेरी रचना का स्थान देने के लिए ,
सादर
सादर स्नेह.... श्वेता जी ,सारे आशियाने लाजबाब... ,बेतरीन.. ,सभी रचनाकारों को ढेरो बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन.. सभी रचनाएँ लाजवाब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
बहुत सुंदर अंक बेहतरीन रचनाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाएं।
जवाब देंहटाएंइतने खूबसूरत इन्द्रधनुषी आशियानों को देख कर मन प्रफुल्लित हो उठा ! मेरी दोनों रचनाओं को आज के संकलन में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सभी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर ! दिन भर इन्टरनेट आज बाधित रहा ! विलम्ब से प्रतिक्रिया देने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत आशियाने ...शानदार प्रस्तुति दमदार भूमिका....
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हदयतल से धन्यवाद एवं आभार।
प्रिय श्वेता -- आशियाना पर इतना सुंदर सार्थक चिंतन और सभी के आशियाने पर मनमोहक सृजन ने मन मोह लिया |सभी ने बसेरे के प्रतीक आशियाने को बड़ी ही रोचकता से शब्दबद्ध किया है और अपने दार्शनिक . अध्यात्मिक और सामाजिक चितन का मौलिक परिचय दिया है | सभी रचनाकारों को सादर सस्नेह शुभकामनायें और तुम्हे इस मर्मस्पर्शी प्रस्तुति के लिए ढेरों बधाई और मेरा प्यार |
जवाब देंहटाएं