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बुधवार, 27 दिसंबर 2017

894..कुछ दिनों की ''जश्ने बहारं '' से कब तक ..

२७दिसंबर२०१७
।।शुभ प्रातः वंदन।।
🙏
सफाई अभियान के तहत सभी अधिकारी, खिलाड़ी, नेता, अभिनेता ,संत सभी जनसेवक
के पात्र निभा रहे हैं पर 
समान्य जनो की प्रवृत्तियों का क्या.. 
जो गलियों, गलियारों ,रास्तों का श्रृंगार करने से बाज नहीं आतें।
कुछ दिनों की ''जश्ने बहारं '' से 
कब तक स्वक्षता अभियान..
इससे अच्छा हो ..आदमीयत के सारे
 रस्म ही पूरे कर लें..✍

चलिए अब रुख करते हैं लिंकों पर
प्रथम प्रस्तुति के अंतर्गत 
ब्लॉग  फ़िज़ूल टाइम्स से..


वक़्त बदले तो रिश्ते बदल जाते हैं
ख्वाहिशें बढ़ी तो अपने बदल जाते हैं
जरूरत के मुताबिक कहाँ सभी को मिलता है
ज़मीं कम पड़े तो नक्शे बदल जाते हैं



द्बितीय लिंक ब्लॉग स्वप्न मेरे ...से
जो जैसा है वैसा ही बनना पड़ेगा
ये जद्दोजहद ज़िन्दगी की कठिन है
यहाँ अपने लोगों को डसना पड़ेगा


तृतीय लिंक है ब्लॉग चौथाखंभा से..
चारा घोटाला फैसला- बैकवर्ड बनाम फॉरवर्ड
चारा घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्रा के बरी होने और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के दोषी करार होने के बाद सोशल मीडिया पर इसे जातीय आधार से जोड़कर न्याय व्यवस्था पर सवाल किए जा रहे हैं।
पार्टी समर्थक अथवा साधारण लोगों के द्वारा ऐसे सवाल किए जाते है तो यह मायने नहीं रखता पर बहुत सारे काबिल और विद्वान लोगों की जातीय टिप्पणी आहत करने वाली है।


चतुर्थी साधना वैद जी की कलम से..

कड़कड़ाती ठण्ड थी
घना कोहरा था
बुझा बुझा सा अलाव था
सीली लकड़ियों से फैला
धुआँ ही धुआँ था चहुँ ओर
और थीं कडुआती आँखें !


पंचम लिंक में आन्नंद उठाए
 ब्लॉग  अब छोड़ो भी से..

पांवों में चप्‍पलों का न होना एक बात है 
और पुरुषों द्वारा अपनी छाती चौड़ी करने को महिलाओं से चप्‍पलें उतरवा देना दूसरी बात 
बल्‍कि यूं कहें कि यह तो फेमिनिज्‍म से आगे की बात है तो गलत ना होगा।

और अब चलते चलते ये दो लाइनें इसी जद्दोजहद पर पढ़िए- 

तूने अखबार में उड़ानों का इश्तिहार देकर,
तराशे गए मेरे बाजुओं का सच बेपर्दा कर दिया।


षष्ठी लिंक में  जीवन के तीनों सोपानों का  वर्णन
दिल तो अभी बच्चा है जी। 
जो काम कभी नहीं किये ,
उन्हें करने की इच्छा है जी। 


और...अब आनंद ले..ब्लॉग जीवनकलश से

दो छंदों का यह कैसा राग?
न आरोह, न अनुतान, न आलाप,
बस आँसू और विलाप.....
ज्यूँ तपती धरती पर,
छन से उड़ जाती हों बूंदें बनकर भाफ,
बस तपन और संताप....
यह कैसा राग-विहाग, यह कैसा अनुराग?



इसी के साथ अब मैं विराम लेती हूँ..
कल फिर एक नए रचनाकार के साथ यहीं पर
।।इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह..✍ 

25 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी पम्मी
    एक सही सोच
    एक अच्छी प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात् पम्मी जी,
    स्वच्छता अभियान के पोल खोलती बहुत अच्छी भूमिका,सुंदर प्रस्तुतिकरण और सारी रचनाएँ अति सराहनीय है। बहुत अच्छा अंक आज का।
    सभी रचनाकारों को बधाई एधं शुभकामनाएँ मेरी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सस्नेहाशीष
    स्वच्छता अभियान चाहे कार्यालय दफ्तरों के फाइलों में दर्ज हो या अखबारों का मुहिम बस फेल है जब जागे नहीं जन

    उम्दा लिंक्स चयन के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सूत्र चयन। बहुत बढ़िया प्रस्तुति पम्मी जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत उम्दा प्रस्तुति
    शानदार रचनायें

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत उम्दा प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को बधाई एधं शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रभावशाली‎ प्रस्तावना संग बहुत सुन्दर‎ लिंक संयोजन पम्मी जी . सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभ‎कामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  8. अपने देश में जाने कितने ही अभियान स्वक्षता अभियान की तरह धूल फांकते हैं ... ये विडंबना है देश की ...
    सुन्दर हलचल ही आज की ...
    आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  9. बढ़िया प्रस्तुति स्वच्छता की भूमिका के साथ! बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरणीया पम्मी जी की आज की प्रस्तुति कई मायनों में विशेष अर्थ रखती है। बधाई पम्मी जी इस शानदार प्रस्तुति के लिए।
    वर्तमान सरकार का स्वच्छता अभियान हो या पूर्ववर्ती सरकार का निर्मल भारत अभियान हो दोनों का यही हाल रहेगा जब तक हम एक सजग नागरिक के तौर पर स्वच्छता को अपने जीवन का जरूरी अंग नहीं बनाते।
    स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ते मैं दिल्ली में रोज़ देखता हूं। पुरानी दिल्ली के जमुनापार इलाक़े में कूड़े के ऊंचे ऊंचे ढेर आपको कभी भी सड़कों पर पड़े दिखाई दे सकते हैं।
    दिल्ली महानगरपालिका को अब तीन हिस्सों में बांट दिया गया है। दक्षिण दिल्ली की महानगरपालिका अपने खर्चे उठा पाने में सक्षम है वही उत्तर पूर्वी दिल्ली और उत्तर पश्चिमी दिल्ली महानगर पालिका ने अपने अपने खर्च का उपयुक्त इंतजाम नहीं कर पा रही हैं। इनका रोना-धोना यही चलता रहता है कि फंड की कमी की वजह से हम शहर में सफाई व्यवस्था का उपयुक्त इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं।
    दरअसल नागरिक कौन है यह साफ-साफ अब समझ लिया है कि इस स्वच्छता अभियान की धज्जियां इसलिए उड़ाई जा रही हैं क्योंकि यह झगड़ा केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच का है।
    ऐसा ही हाल देश के अन्य शहरों में भी हो सकता है।
    बहरहाल दिल्ली में तो दिल्ली उच्च न्यायालय को इस भयावह स्थिति पर संज्ञान लेना पड़ा है।
    आज चुनी गईं रचनाएं देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर विशेष नज़र डालती हैं।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  11. हर नागरिक यदि स्वच्छता रखने में सरकार की मदद करे तभी यह कार्य सम्भव है. सुंदर सूत्रों का चयन..बधाई और शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  12. सभी रचनाकारों को बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  13. खूबसूरत लिंक संयोजन ! बहुत खूब आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं
  14. हलचल का एक और बहुत ही उम्दा संकलन ! सभी रचनाएं अनमोल ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार पम्मी जी !

    जवाब देंहटाएं
  15. बढ़िया प्रस्तुति स्वच्छता की भूमिका के साथ! बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  16. ह्रदय से आभार .. मजबूत संकलन

    जवाब देंहटाएं
  17. शानदार प्रस्तुति सुंदर रचनाओं का समायोजन।
    सभी चयनित रचनाकारों को सादर बधाई।
    सफाई अभियान पर सही प्रहार हमारी मनोदशा कि मेरे एक के करने या न करने से क्या फर्क पडना है।

    जवाब देंहटाएं
  18. मान्यवर अरुण साथी जी ये स्साले तथाकथित पंडित (विद्वान ,ब्रह्मज्ञानी )पद्मावती को भी राजपूत गौरव तक सीमित कर देते हैं इनके लिए यह राष्ट्रीय शौर्य का अपमान नहीं है। और जाधव मामले पर पाकिस्तान की चौदहवीं सदी की जहालत इन्हें जाधव की माँ और पत्नी का अपमान लगता है भारत राष्ट्र का नहीं जिसे पाक लगातार चिढ़ा उकसा रहा है। संसद के दोनों सदनों में कूदते बंदर इस राष्ट्रीय अपमान को मोदी कुछ नहीं कर सका बतला रहे हैं।

    वरना लालू किस खेत की मूली है।ये सब के सब संवेदना शून्य व्यक्ति हैं मणिशंकर एयर के शिष्य हैं। इन्होनें जैचंद मीरजाफर और उससे भी पहले आम्भी नरेश का कद छोटा कर दिया है जिसने सिकंदर के साथ मिलकर पौरुष पे हमला किया था। पाक को इनलोगों की प्रतिमाएं लाहौर चौक पर लगानी चाहिए। काहे के बोधवान हैं ये -सबके सब वित्तेषणा के गुलाम हैं बौद्धिक भकुए हैं।

    बेहतरीन विश्लेशण किया है आपने तथ्य परोस कर चारा काण्ड के।

    लालू कुनबे का तो राष्ट्र को अतिरिक्त सम्मान करना चाहिए जिन्होंने चारा ही नहीं लालू पुत्र ने तो मिट्टी खाने का भी कीर्तिमान स्थापित किया है। ये सब हमारी आज की राष्ट्रीय धरोहरें हैं -भूमि हड़पू ,चारखाऊ ,माटी भक्षी आप चाहें तो इन्हें सर्व -भक्षी कह सकते हैं ओम्नीवोरस कह सकते हैं।

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  19. बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन....

    जवाब देंहटाएं
  20. कर क्षणिक अनुराग, वो भँवरा ले उड़ा पराग....

    दो छंदों का यह कैसा राग?
    न आरोह, न अनुतान, न आलाप,
    बस आँसू और विलाप.....
    ज्यूँ तपती धरती पर,
    छन से उड़ जाती हों बूंदें बनकर भाफ,
    बस तपन और संताप....
    यह कैसा राग-विहाग, यह कैसा अनुराग?

    कर क्षणिक अनुराग, वो भँवरा ले उड़ा पराग....

    गीत अधुरी क्यूँ उसने गाई,
    दया तनिक भी फूलों पर न आई,
    वो ले उड़ा पराग....
    लिया प्रेम, दिया बैराग,
    ओ हरजाई, सुलगाई तूने क्यूँ ये आग?
    बस मन का वीतराग.....
    यह कैसा राग-विहाग, यह कैसा अनुराग?

    कर क्षणिक अनुराग, वो भँवरा ले उड़ा पराग....

    सूना है अब मन का तड़ाग,
    छेड़ा है उस बैरी ने यह कैसा राग!
    सुर विहीन आलाप....
    बे राग, प्रीत से विराग,
    छम छम पायल भी करती है विलाप,
    बस विरह का सुहाग.....
    यह कैसा राग-विहाग, यह कैसा अनुराग?

    कर क्षणिक अनुराग, वो भँवरा ले उड़ा पराग....

    वैरागी मन की क्या कहें -

    न कोई राग न विराग ,

    न द्वेष न मोह ,फिर कैसा मलाल ,

    भंवरा ले उड़ा पराग।

    सुंदर अभिव्यंजना प्रधान अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  21. फ़िज़ूल की ग़ज़ल को स्थान देने के लिए दिल से आभार नमन

    जवाब देंहटाएं
  22. पम्मी जी आज की प्रस्तुति बहुत ही सुंदर है सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं

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