घर की बुनियादें, दीवारें, बमोबर-से थे बाबूजी
सबको बांधे रखने वाला, ख़ास हुनर थे बाबूजी
अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
अम्मा जी की सारी सजधज, सब ज़ेवर थे बाबूजी
कभी बड़ा सा हाथ ख़र्च थे, कभी हथेली की सूजन
मेरे मन का आधा साहस, आधा डर थे बाबूजी
अभिनंदन है.... आप सभी का....
आज माह मई का अंतिम दिन है....
साथ ही आज....विश्व तंबाकू निषेध दिवस भी है....
इस लिये आज की चर्चा का आरंभ इन सत्य कथनों से....
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• “तंबाकू छोड़ना इस दुनिया का सबसे आसान कार्य है। मैं जानता हूँ क्योंकि मैंने ये हजार बार किया है।” - मार्क 'ट्वैन• “तंबाकू मारता है, अगर आप मर गये, आप अपने जीवन का बहुत महत्वपूर्ण भाग खो देंगे।”- ब्रुक शील्ड
• “तंबाकू का वास्तविक चेहरा बीमारी, मौत और डर है- ना कि चमक और कृत्रिमता जो तंबाकू उद्योग के नशीली दवाएँ बेचने वाले लोग हमें दिखाने की कोशिश करते हैं।” -डेविड बिर्न
• “ज्यादा धुम्रपान करना जीवित इंसान को मारता है और मरे सुअर को बचाता है।”- जार्ज डी प्रेंटिस
• “सिगरेट छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है तुरंत इसको रोकना- कोई अगर, और या लेकिन नहीं।”- एडिथ जिट्लर
• “सिगरेट हत्यारा होता है जो डिब्बे में यात्रा करता है।”- अनजान लेखक
• “तंबाकू एक गंदी आदत है जैसे कथन के लिये मैं समर्पित हूँ।”- कैरोलिन हेलब्रुन
पापा
पापा बहुत दर्द होता है
जब मुझे एक दोस्त चाहिए
होता है समझने
और प्यार करने के लिए ,
पर एक बात की खुशी
हमेशा रहेगी कि भगवान ने
आपको दर्द से सदा के लिए
मुक्त कर दिया ,
इसी आस के साथ मैं भी
ज़िंदा हूँ पापा
कि एक दिन हम फिर मिलेंगे
अनंत से आगे इस दुनिया से दूर
जन्नत में।
सपना
ऐसे ही काफी समय बातें चलती रही और वहां से आगे बढे और अपने खेत में कदम रखा तो काव्या के सामने वह सब कुछ किसी फिल्म की तरह दिखने लगा | उसे याद आ रहा था जब वह इन खेतों में काम करती थी | और जब वह विद्यालय से घर आती तो बाबा उसे अपने साथ खेत में ले जाते थे और वहां अड़ावे (जहां कोई फसल नहीं बोई जाती हो और ख़ास तौर से पशुओं के चरने के लिए छोड़ी गई भूमि ) में भेड़ें हांका करती थी | पर समय कभी एक सामान नहीं रहता क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है |
हितेश साथ में मौन अवस्था में यात्रा कर रहा था | काव्या ने अपने घर के ओटे पर पैर रखा ही था की सामने उसका छोटा भाई आया और अपनी दीदी से गले लगा और फिर घर में गए | अन्दर भुवन और काव्या की अम्मा भी काव्या के पास आए | हितेश ने भुवन को प्रणाम किया |
जब आँखों ही आँखों में, मिलते जवाब
जब आँखों ही आँखों में, मिलते जवाब,
कह दूँ कैसे नहीं होती उनसे मुलाक़ात |
लोग कहते हैं मुझसे...खफा वो जनाब,
उठता फिर भी नहीं मेरे लब पे सवाल |
पीपल , को सनातन संस्कृति में देववृक्ष क्यों माना जाता है
जब प्रदूषण नहीं था तब भी प्रदूषण की इतनी चिंता थी और उसका जबरदस्त इंतजाम किया गया था ! उसके बारे में ग्रंथों कथाओं और परम्पराओं के माध्यम से संरक्षित किया गया ! इससे ठीक उलट , आज जब चारों और प्रदूषण ही प्रदूषण पैदा किया जा रहा है इस पर कोई बात नहीं करता ! अब कोई पीपल नहीं लगाता ! इसे लगाने के लिए किसी से कहे तो वो कहेगा की आज के बाजार के युग में इसे लगाने का क्या फायदा, कोई फल भी तो नहीं होता, ना ही इसकी लकड़ी किसी काम की , कोई भला ऐसा कोई काम कैसे कर सकता है जिसमे दो पैसे ना कमाया जा सके ! कितना अज्ञानी है आज का आदमी जिसे पीपल के अनमोल मोल का मूल्य ही नहीं पता ! वो उसकी पूजा क्यों करने लगा ! पीपल के गुणों को वो लोग क्यों पढ़ाना चाहेंगे जो इस देवभूमि को सपेरों का देश और यहां की समृद्ध संस्कृति को जंगली कहते नहीं थकते ! पी से पेप्सी के युग
में पी से पीपल कौन पढ़ायेगा ! और अगर किसी ने अति उत्साह में आकर पढ़ाना चाहा तो उसे साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जाएगा ! सेक्युलर देश में वेद ज्ञान पढ़ने से दूसरे धर्म खतरे में पड़ सकते हैं !यह सब बाते कितनी हास्यास्पद लगती है ! जबकि पीपल के पेड़ की ऑक्सीजन का कोई धर्म नहीं, ना ही उसके औषधीय गुण व्यक्ति में भेद कर सकता है ना ही उसकी छांव का कोई मजहब है ! लेकिन इस सांस्कृतिक जीवन दर्शन की महत्ता को ना तो वो लोग समझते हैं जिनका जीवन रेगिस्तान के सूखे में प्यासा भटकता रहा ना ही उनको जो बर्फ की भयंकर ठण्ड में जीवन की तलाश में इधर से उधर भागते रहे ! ये दोनों समूह इस देव् भूमि पर आये ही इसलिए की यहाँ भरपूर जीवन है कोई जमाना था की सड़क किनारे पीपल के पेड़ अक्सर मिल जाते ! इन पेड़ो के पास अमूमन एक कुआ होता और साथ ही छोटा सा मंदिर ! यहां कोई थका हारा राहगीर छांव में दो
पल सुस्ता लेता ! अब सड़क किनारे पेड़ लगाने का चलन नहीं है ! अब तो मॉल और ढाबे का कल्चर है ! इसलिए आज हर शहर प्रदूषित हैं !और जहां वातवरण ही प्रदूषित हो जाए वहा मानव जीवन कितना कष्टमय हो सकता है, किसी भी महानगर को देख ले ! हर शहर ने कैसे कैसे ओड इवन जैसे हास्यास्पद प्रयोग भी देखे मगर कोई हल नहीं निकला !
हमारी सारी समस्या का समाधान हमारी सनातन परम्परा से रचे बसे हमारी संस्कृति में है ! उसी के आधार पर अब एक साम्प्रदायिक सुझाव है ! शहर के चारो तरफ रिंग रोड बना कर सड़क के दोनों तरफ पीपल के पेड़ लगा दो। किसी किले की मजबूत दीवार की तरह ! और शहर वालो को कह दो की इन पेड़ों की पूजा करना ही उनका धर्म है ! और ऐसा करने पर जिसे अपना धर्म खतरे में नजर आये और जो सेक्युलर इस पर आपत्ति करे उसे हिन्दू ऑक्सीजन की जगह हिन्दू विरोधी जहरीली कार्बन डाई ऑक्साइड को निगलने का ऑप्शन दिया जा सकता है ! ऐसा करते ही उनका महान धर्म भी सुरक्षित रहेगा और वे भी दीर्घ आयु को प्राप्त होंगे !
तुम नद्दी पर जा कर देखो चाँद - अफ़सर मेरठी
अब पानी में चुप बैठा है
क्या क्या रूप दिखाए
जब तुम उसे पकड़ने जाओ
पानी में छुप जाए चाँद
तानाशाह का काम किसी भी बहाने से चल सकता है
कायर अपने आप को सावधान कहता है।
कंजूस अपने आप को मितव्ययी बताता है।।
बहानेबाजों के पास कभी बहानों की कमी नहीं रहती है।
गुनाहगार को बहाना बनाने में दिक्कत पेश नहीं आती है।।
अब चलते-चलते....
अरे अब तो हटाओ पश्चिमी रंगों की बदरंगी
नयी पीढ़ी के बच्चों को यही लोफर बनाते हैं ।
यहाँ बस लूट के मंजर हैं, कैसी लोकशाही है
ये खुदगर्जी के आलम देश को बदतर बनाते हैं ।
हमारे इस घरौंदे में अभावों का सुशासन है
बड़ी शिद्दत से हम चादर को ही बिस्तर बनाते हैं ।
धन्यवाद।
शुभ प्रभात.....
जवाब देंहटाएंवाह भाई कलदीप जी
ग़ज़ब की रचनाएँ चुनी
वाह..
सादर
सिगरेट पर अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुतीकरण
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन कुलदीप जी
सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात
जवाब देंहटाएंआदरणीय,कुलदीप जी
आज की प्रस्तुति सामाजिक दृष्टि से अत्यंत सार्थक व उपयोगी है ,आभार "एकलव्य"
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन बेहतरीन रचनाएँ
जवाब देंहटाएंविश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर आज पाँच लिंकों का आनंद में पिता पर शोधपरक सामग्री का सुन्दर संकलन किया गया है। पीपल पर विस्तृत जानकारी और विविध रचनाओं से पाठकों का रसास्वादन। भाई कुलदीप जी इस प्रस्तुति के लिए बधाई के पात्र हैं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंGood morning
जवाब देंहटाएंWow
Regards
Good morning
जवाब देंहटाएंWow
Regards
Good. Say No to tobacco...
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