सोच रही थी क्या विषय बनाऊं
Google से उधार मांगी तो देखिये क्या मिला
युद्ध मोरयां दगडीयूँ का भूतों का दगडू थेय ,
दगड कत्ल का टपकदा उंका स्वीणा ,अर उ फक्र करला
शानदार लडै फर जैन्ल ख़तम कैर द्याई उन्कू सरया हंकार
आदिम , जू चलीं ग्यें लडै मा , छीं गंभीर अर खुश
नफरात करद आंखि त्वे से , दुखी अर बोल्या बच्चों क़ि
वहीं पर एक और कारगिल युद्ध करने को उतारू हो जाते।
एक-दो लोगों ने तो सीधे-सीधे चुनौती दे डाली कि
तुम्हीं कोई कविता लिखकर बता दो
कि युद्ध पर ऐसे नहीं तो कैसे लिखना चाहिए।
युद्ध शक्ति मे कम ना भक्ति मे कम, जीत की खुशी ना हार का गम ।
खूब लडे वतन दीवाने, घर के बन गये थे बेगाने ॥
लूट खसोट कर देव का धाम, लूट खसोट कर शहर व ग्राम ।
वापस लौटा जब महमूद, करदिया उसका राह अवरूद्ध ॥
भीम भयंकर आंधी तूफान, सुल्तान भूल गया औसान ।
दब गए उसके सारे हाथी, बिछडे उसके सारे साथी ॥
युद्ध व्यक्ति हो या राष्ट्र यदि उसकी वाणी में आग नहीं है
तो उसकी वंदना भी व्यर्थ हो जाएगी।
वीरता के अभाव में विनयशीलता क्रंदन बन जाती है।
माथे की शोभा तलवार के घाव से या रक्त चंदन के तिलक से होती है।
युद्ध
><><
फिर हम मिलेंगे
विभा रानी श्रीवास्तव
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
चेतावनी देता हुआ आज का अंक
सादर
इस युग का युद्ध मतलब विनाश । सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं👌👌👌
जवाब देंहटाएंइतिहास गवाह है कोई भी युद्ध विनाश का ही कारण बनता है
जवाब देंहटाएंप्रेरक हलचल प्रस्तुति