कभी जिन्दगी का
ये हुनर भी
आजमाना चाहिए,
जब अपनों से
जंग हो, तो
हार जाना चाहिए
आज का पसंदीदा रचनाएँ.....
गुज़र गया है वक्त,.....कालीपद "प्रसाद"
मीना–ए-मय में’ मस्त सहारा शराब है
गुज़र गया है’ वक्त, नहीं अब शबाब है |
संसार में नहीं मिला दामन किसी का’ साफ
प्रत्येक चेहरा ढका, काला नकाब है |
मुद्दा तीन तलाक का,.....डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मुसलमान सारे नहीं, करते कहाँ विरोध।
मगर डालते हैं यहाँ, कठमुल्ला अवरोध।।
सबके लिए बने यहाँ, अब समान कानून।
मज़हब के दो पाट में, पिसे नहीं खातून।।
मुझे यह निर्मम समाज नहीं चाहिए
मुझे ले चलो जहाँ निर्जन हो
मै अम्बर के साथ रो लूँगा
धरती पर निखहरा सो लूँगा
पर इस क्रूर और शुष्क समाज में नहीं !
क्या बात है...डॉ. सुशील जोशी
आज भी माँ
जब भी कोई
तारा टूटता है
मुझे कोई इच्छा
नहीं याद आती है
उस समय
बस और बस
मुझे तुम्हारी बहुत
याद आती है ।
आज्ञा दें यशोदा को..
उम्दा प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' के टूटते तारे को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार।
बहुत अच्छी प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर ! संकलन आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल। मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंhttps://halchalwith5links.blogspot.com
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