अचिन्हित तट....पुरुषोत्तम सिन्हा
निश्छल, निष्काम, मृदुल, सजल तेरी ये नजर,
विरान फिर भी क्यूँ तेरा ये तट?
सजदा करने कोई, फिर क्यूँ न आता तेरे तट?
बिन पूजा के सूना क्यूँ, तेरा मंदिर सा ये निर्मल तट?
जमाना जाने क्या समझे...आशा ढौंडियाल
शेर लिखो,ग़ज़ल या कलाम लिखो
ख़ुद ही पढ़ो, ख़ुद ही दाद भी दो
ख़ुद ही ढूँढो ख़ामियाँ बनावट में
ख़ुद ही तारीफ़ के अल्फ़ाज़ कहो
क्यूँकि ज़माना ना जाने क्या समझे?
रविकर के दोहे.....रविकर
सच्चाई परनारि सी, मन को रही लुभाय।
किन्तु झूठ के साथ तन, धूनी रहा रमाय।।
सच्चाई वेश्या बनी, ग्राहक रही लुभाय।
लेकिन गुण-ग्राहक कई, सके नहीं अपनाय।।
बात सोचने की....डॉ. सुशील कुमार जोशी
कूँऐं के अंदर से
चिल्लाने वाले
मेढक की
आवाज से परेशान
क्यों होता है
उसको आदत होती है
शोर मचाने की
उसकी तरह का
कोई दूसरा मेंढक
हो सकता है
वहाँ नहीं हो
जो समझा सके उसको
दुनिया गोल है और
बहुत विस्तार है उसका
आज्ञा दें यशोदा को
सादर..
आज तो सजदा किए जाता है ये मन इस तट....
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन।।।। सादर धन्यवाद
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह । आभार यशोदा जी 'उलूक' के मेंढक को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्ञापन में विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ यशोदा जी ! आज आपने बहुत ही सुन्दर लिन्क्स का चयन किया है ! मेरी प्रस्तुति को भी स्थान देने के लिए आपका हृदय तल से धन्यवाद एवं आभार !
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