सलाम ऊपर वाले को
वो अपनी वस्तु वापस लेने में माहिर है
और देता भी है छप्पर फाड़ के
श्रीमद् भगवदगीता में सही लिखा है
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?
किससे व्यर्थ डरते हो?
कौन तुम्हें मार सकता है?
आत्मा ना पैदा होती है,
न मरती है।
तुम्हारा क्या गया,
जो तुम रोते हो?
तुम क्या लाए थे,
जो तुमने खो दिया?
तुमने क्या पैदा किया था,
जो नाश हो गया?
न तुम कुछ लेकर आए,
जो लिया यहीं से लिया।
जो दिया, यहीं पर दिया।
जो लिया, इसी (भगवान) से लिया।
जो दिया, इसी को दिया।
काम तो करना ही है..सो कर करो ..या फिर रो कर करो
बदलाव नियम है..प्रकृति का..हम इससे अलग नहीं है
थोड़े से अव्यवस्थित रहेंगे हम..सहयोग के आकांक्षी है..
कुछ दिनों के लिए या फिर हरदम के लिए..
हम अपने पाठकों के पसंद के पाँच लिंक यहां उनके नाम के साथ प्रकाशित करने की योजना है ..और लागू कर रही हूँ..
प्रत्येक रविवार व गुरुवार को वे लिंक यहा सुशोभित होंगे...
आप यहां पर लगे सम्पर्क फार्म से वे लिंक हम तक पहुँचा सकते हैं..
आज की रचनाओं पर एक दृष्टि...
हम आए अकेले, इस दुनियां में,
न लाए साथ कुछ दुनियां में,
शख्स ही रहे तो मर जाएंगे,
बनो शख्सियत इस दुनियां में।
जो भी मन में प्रश्न हैं,
उनका उत्तर गीता में पाओ,
जब ज्ञान दिया खुद ईश्वर ने,
क्यों भटक रहे हो दुनियां में।
सुबह-सुबह न रात-अंधेरे घर में कोई डर लगता है
बस्ती में दिन में भी उसको अंजाना सा डर लगता है
जंगल पर्वत दश्त समंदर बहुत वीराने घूम चुका है
सदा अकेला ही रहता, हो साथ कोई तो डर लगता है
आज मज़दूर दिवस है...
यानी हमारा दिन...
हम भी तो मज़दूर ही हैं...
हमें अपने मज़दूर होने पर फ़ख़्र है...
हमारे काम के घंटे तय नहीं हैं....
सुबह से लेकर देर रात तक कितने ही काम करने पड़ते हैं...
यह बात अलग है कि हमारा काम लिखने-पढ़ने का है...
इसके अलावा हम घर का काम भी कर लेते हैं...
रुखड़े से मेरे मन की पहाड़ी पर,
तप्त शिलाओं के मध्य,
सूखी सी बंजर जमीन पर,
आशाओं के सपने मन में संजोए,
धीरे-धीरे पनप रहा,
कोमल सा इक श्वेत तृण..
आँखों के समंदर में
विश्वास कीगहराई से
बन जाते हैं
रिश्तों के पुल
सार्थक लिंक।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
सुंदर संकलन।।।।।
जवाब देंहटाएंसुंदर व रोचक संकलन !आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया आईडिया है । शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंहुत सुन्दर रचनाओं का संकलन.....
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