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मंगलवार, 16 मई 2017

669....ओ मेरे आकाश पिता... टूट गए हम.

जय मां हाटेशवरी...

30 अप्रैल 2017 को मेरे पूजनीय पिता जी श्री ईश्वर  सिंह ठाकुर निजी कार से शिमला जा रहे थे। मां हाटेशवरी के पावन स्थल हाटकोटी से 2 किलो मीटर की दूरी पर प्रातः पांच बजे कार अनयंत्रित हो कर 100 फुट नीचे गिर गयी। जिस में मेरे पिता जी को काफी चोटें आयी। उसके बाद तुरंत उन्हे EGMC शिमला ले जाया गया। जहां 3 बजकर 10 मिनट पर वे हमे हमेशा के लिये छोड़कर स्वर्ग सिधार गये।
उन्हे भूल पाना तो मेरे लिये बिलकुल असंभव है।
"मुझे ईश्वर   ने  बिना दृष्टि के ही....
 असीम अंधकार के साथ धरती पर भेजा था...
मेरे जन्म पर सब कहते थे....
ये बेचारा क्या करेगा....
पर मेरे लिये धरती पर.....
पहले ही ईश्वर  आ चुके थे....
मेरे पिता के रूप में....
जिन्होंने ईश्वर  की चनौती को स्वीकारा....
सब से पहले  मुझे अंधकार में चलना सिखाया...
कभी ऐहसास न होने दिया कि मैं दृष्टिहीन हूं....
सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार किया....
मुझे उच्च कोटी की शिक्षा दी...
जिससे मैं रोजगार पा सका....
वे अक्सर कहते थे....
संपूर्ण इस संसार में कोई नहीं है....
न कोई  इतना अपूर्ण जो कुछ न कर सके....
वे कर्म को प्रधान मानते थे...
कहते थे...जो भी कार्य  करो....
उसे दिल लगा कर करो....
सफलता अवश्य मिलेगी....
वे विश्वास को हर सफलता की पूंजी मानते थे....
उन्होंने जीवन भर कठिन प्रिश्रम किया....
उन्होंने हमे वो सब कुछ दिया...
जो विरले ही पिता अपने बच्चों को दे सकते हैं...."
मायावी सरोवर की तरह
अदृश्‍य हो गए पिता
रह गए हम
पानी की खोज में भटकते पक्षी
ओ मेरे आकाश पिता
टूट गए हम
तुम्‍हारी नीलिमा में टँके
झिलमिल तारे

ओ मेरे जंगल पिता
सूख गए हम
तुम्‍हारी हरियाली में बहते
कलकल झरने

ओ मेरे काल पिता
बीत गए तुम
रह गए हम
तुम्‍हारे कैलेण्‍डर की
उदास तारीखें

हम झेलेंगे दुःख
पोंछेंगे आँसू
और तुम्‍हारे रास्‍ते पर चलकर
बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल
ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल।-----एकांत श्रीवास्तव

"हे ईश्वर...मेरे पूजनीय पिता जी को... परम गति प्रदान करके अपने चरणों में स्थान देना...."

आज चर्चा करने का मन तो नहीं है....
बहुत दिन हो गये चर्चा न किये हुए....
आप कहते थे न....
"पूजा करना भले ही भूल जाओ....कर्तव्य को कभी न भूलना...."

सारा मकां सोया पड़ा है.....आबिद आलमी
अजनबी बन कर वो मिलता है उन्हीं से
जिन को वो अच्छी तरह पहचानता है
चीखती थी ईंट एक इक जिसकी कल तक
आज वो सारा मकां सोया पड़ा है

बेटी-माँ.
पढ़ लेती सबके मन .
माँ, तुम्हारा मन कहाँ रहा था लेकिन ?
जानने लगी हूँ तुम्हें, सचमुच ,
बेटी जब माँ बनती है,
समझ जाती है.
एक आँख से सोती है माँ,
पहरेदार,हमेशा तत्पर.
कुछ नहीं से कितना कुछ बनाती
सारे रिश्ते ओढ़े चकरी सी नाचती ,
निश्चिन्त कहाँ थी माँ .
जब बेटी माँ बनती है
समझ जाती है -
कैसी होती है माँ .

नार मनोहर
अब कौन मिले तुझसा रि जवाबी।~~~~~~~~

जन्म दिया हमें जगत में लाया माँ ने
मत करना कभी भी  अपमान उसका तुम
गोद  में  अपनी    हमको   खिलाया माँ ने

अनशन वार - सामयिक दोहे
संग थे जब तक कर रहे थे बढ़ चढ़ गुणगान
उठा रहे हैं आज वे प्याले में तूफान
धन्यवाद।














6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    अच्छी प्रस्तुति
    ईश्वर है न
    अभी भी
    आपके साथ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी मनोस्थिति समझने की कोशिश में हूँ
    विनम्र श्र्द्धांजलि आपके पिता जी को

    जवाब देंहटाएं
  3. हिम्मत रखें कुलदीप जी। पूज्य पिताजी को नमन और श्रद्धाँजलि।

    जवाब देंहटाएं
  4. मर्मस्पर्शी ........ईश्वर आपको इस अपूरणीय क्षति को सहने के लिए सम्बल प्रदान करें।
    पूज्य पिताजी को सादर श्रद्धा सुमन!

    जवाब देंहटाएं
  5. ओ मेरे आकाश पिता....
    मर्मस्पर्शी.......
    पूज्यनीय पिताजी को सादर श्रद्धांजली !

    जवाब देंहटाएं
  6. अनुमान कर सकती हूँ आपकी मनस्थिति का क्योंकअ ्समय ही मुझेभी यह दुख झेलना पड़ा था- मेरी साश्रु श्रद्धांजलि -आप यह महान् दुख झेलने की शक्ति मिले !

    जवाब देंहटाएं

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