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मंगलवार, 9 मई 2017

662.....चीनी के बारे में सबसे कड़वी बात

सादर अभिवादन...

नज़रिया बदल के देख, 
हर तरफ नज़राने मिलेंगे
ऐ ज़िन्दगी यहाँ तेरी
तकलीफों के भी दीवाने मिलेंगे

प्रस्तुत है आज की चुनिन्दा सूत्र...

सिन्दूर.......रेवा टिबड़ेवाल 
ये तो तुम्हारा प्यार है 
जिसे रोज़ सुबह 
मै 
ख़ुद में भर लेती हूँ , 
इसका लाल रंग 
मुझे तुम्हारे साथ 
बिताये हर सिन्दूरी लम्हे की 
याद दिलाता है ,



चहकी कोयल बाग में, देख आम पर बौर।
कुदरत के उपहार को, धरती है सिरमौर।।
धरती है सिरमौर, खुशी के गीत सुनाती।
अपने मीठे सुर से, खुशियों को उपजाती।।
कह “मयंक” कविराय, आज शाखाएँ बहकी।
होकर भावविभोर, तभी तो कोयल चहकी।।

झेली होगी तुमने जो दुश्मन की  
गोलियां  अपने  सीने  पर
कहते  होंगे  कोई  उसे  भी
शहादत तो उस  से  हमें  क्या

मैं चाहती हूँ
कि मैं कुछ ऐसा लिखूँ
जिसमें से ध्वनि तरंगित हो
एक घर दिखाई दे
दिखे चूल्हे की आग
तवे पर रोटी
जो भूख मिटा दे

हमारा तो फर्ज था 
हमने निभा दिया उसको
तुम ही शायद अपना फर्ज भूल गये,
याद रखना था जिसको 

“देखिये! आप माँ-बाबूजी को समझाइए... मैं आखिर उसकी माँ हूँ...”
मैं उसकी माँ हूँ... यह संवाद भोलू की दादी के कानों में पड़ा तो उन्हें अतीत के दिन याद हो आये जब वह भोलू के पिता के संग अपने अन्य बच्चों की गलतियों पर उनको एक चाँटा तो क्या डंडो से पीटने में गुरेज नहीं करती थी... वह सामने आयी और बोली 
“यह माँ है... इसकी यही भूमिका है

ये समाचार 
पत्र भी
अजीब 
अजीब
समाचार 
छाप के
ले आते हैं

किसी 
दिन 
चीनी
तो 
किसी 
दिन
नमक 
खाने से
परहेज 
करवाते हैं




7 टिप्‍पणियां:

  1. ढ़ेरों आशीष व असीम शुभकामनाओं संग शुक्रिया छोटी बहना

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर! संकलन ,आभार। "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया ank ...sadar aabhar hmaari rachna ko shamil krne ke lie.🙏

    जवाब देंहटाएं

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