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गुरुवार, 1 जून 2017

685...... नाज़ुक ख़्वाबों के बियाबान



                                                          सादर अभिवादन!
                                                आज नौतपा का आठवां दिन है।  
                                      गीष्म ऋतु की प्रचंडता का और एक दिन शेष है।
                                इसके बाद उष्णता के तांडव से राहत मिलना आरम्भ होती है।
                            हालांकि दक्षिण -पश्चिमी मानसून केरल में दस्तक दे चुका  है। कल दिल्ली
                        एनसीआर में हुई बारिश से तापमान 32 डिग्री सेल्सियस पर आ गया और मौसम
                    खुशनुमा हो गया।                         
       तब आपको आज की  रचनाओं की  फुहार  से  वैचारिक  बूंदाबांदी  से  क्यों न भिगोकर तर किया जाय...      हमारा यह प्रयास कितना सफल होता है यह आपकी भागीदारी ,सुझाव ,प्रतिक्रियाओं से  तय होगा।  
                                                       इस  अंक के आकर्षण हैं-

जीवन में मनमोहक ख़्वाब बुनती हमारे अहसासों से गुज़रती श्वेता सिन्हा जी की एक सद्यरचित भावप्रवण रचना -

                                                        तुम्हारे मौन स्पर्श की
                                                        मुस्कुराहट से
                                                        खिलने लगी पत्रहीन
                                                        निर्विकार ,भावहीन
                                                        दग्ध वृक्षों के शाखाओं पे
                                                        गुलमोहर के रक्तिम पुष्प
                                                        भरने लगे है रिक्त आँचल
                                                        इन्द्रधनुषी रंगों के फूलों से

भौतिकता से आप्लावित परिवेश में अभी कुछ ऐसा शेष है जो मन को सुकून देता है और विचार को नया आधार मिलता है।  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही " जी की यह प्रस्तुति शब्द वर्णन के साथ सुन्दर चित्रावली से सुसज्जित है-  
एक थीम पर आधारित शाकाहारी रेस्टोरेंट  
राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
शाम के समय यह जगह एक पंजाबी मेले में परवर्तित हो जाता है,  जहाँ आप जीवंत भंगड़ा-गिद्दा प्रदर्शन और सड़क के नाटकों के साथ विद्युतीकरण सौन्दर्य का लुफ़्त उठा सकते हैं। इसके अलावा अन्य कई गतिविधियां हैं जैसे कठपुतली , जादू दिखाने, बर्तनों,ज्योतिष, जीवविज्ञान, ऊंट-सवारी और घोड़े की सवारी, मेहमानों को मोहित करने के लिए काफी है। 

जिजीविषा को नया आयाम देती शांतनु सान्याल जी की भावपरक रचना -
                                                     धूसर वृक्ष कहना नहीं सहज, देह में रहते
                                                     हैं केवल अस्थिपंजर, और सूरज के
                                                     दिए हज़ारों दग्ध निशान, फिर
                                                     भी जीवन सेमल की तरह
                                                     खिला रहता है सुबह
                                                     शाम, सीने में
                                                     समेटे
                                                    अनगिनत कांटों  के गुलिस्तान, सजाता
                                                    है वो हर हाल में लेकिन, नाज़ुक
                                                    ख़्वाबों के बियाबान।

अन्नदाता कृषक अपनी विभिन्न समस्याओं के चलते ख़बरों का केंद्र बिंदु बने रहते हैं।  ऋतु असूजा जी ऋषिकेश  की रचना कृषकों को समर्पित है जो हमें उनके प्रति संवेदनशील होने का सन्देश दे रही है -
मैं किसान अगर अन्न नही उगाऊंगा 
                                                      तो सब भूखे मर जाओगे ।
                                                      दो वक्त की रोटी के लिये ही मानव करता है
                                                      दुनियाँ भर के झंझट ।
                                                      अंत में पेट की क्षुधा मिटा कर ही पाता है चैन
                                                      एक वक्त का भोजन न मिले अग़र हो जाता है बैचैन

ग्रामीण जीवन के बिषयों को हाइकु  के ज़रिये पैनापन देती   डॉ. जेन्नी शबनम की  यह  हाइकु - श्रृंखला बार -बार  पढ़ने के आकर्षण का  गुर हासिल किये हुए है -

झुलसा खेत
उड़ गई चिरैया
दाना न पानी।


दुआ माँगता
थका हारा किसान
नभ ताकता।


आज का यह अंक  मेरी ओर से "पाँच लिंकों का आनंद " के आमंत्रित  सदस्य के रूप में पहली प्रस्तुति है।  आपकी अपेक्षित प्रतिक्रियाओं से हमारा मनोबल बढ़ेगा। "पाँच लिंकों का आनंद " की ओर  से किया गया यह नया प्रयोग नवीनता और परिवर्तन की अवधारणा लेकर आगे बढ़ रहा है।  
          आपकी बहुमूल्य टिप्पणियाँ  पाठकों ,रचनाकारों को  नई  ऊर्जा और स्फूर्ति से भर देती हैं। आपके सहयोग एवं स्नेह की आकांक्षा के साथ आज आपसे  सविनय आज्ञा  लेता हूँ - रवीन्द्र सिंह यादव

25 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    उत्तर
    1. बहुत बढ़िया संकलन सुंदर लिंको का चयन मेरी रचना को मान देने के लिए आभार रवींद्र जी।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. आपके आशीर्वाद का आकांक्षी हूँ। हार्दिक सादर आभार।

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. आपकी स्नेहपूर्ण प्यारी GOOD MORNING का कल समय से जवाब न दे सका। सखेद आभार एवं शुभ प्रभात ।

      हटाएं
  4. हलचल पाँच लिंक ,बहुत सूंदर संकलन, "नाजुक ख्वाबों का बियाबान"तुम्हारा स्पर्श""शाकाहारी रेस्टोरेंट"""रोशनी की बूंद"कृषको को नमन","हमारी माटी"सभी रचनायें स्वयं में उत्तम कोटि की हैं ।सभी रचनाकारों को बधाई ।।

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. शुभप्रभात, आदरणीय रवींद्र जी ,अतिसुंदर
    अलंकृत शब्दों एवं विचारणीय रचनाओं से सजी
    कुछ कहती ,इठलाती ,शब्दों के करिश्माई
    आभास कराती हुई ''पाँच लिंको का आनंद'' को
    चार चाँद लगाती
    अदभुत प्रस्तुति ,
    आभार।
    "एकलव्य"

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  7. उत्तर
    1. बहन जी आपके विशेष योगदान एवं स्नेह से ही यह प्रस्तुति सफल बन पायी है।

      हटाएं
  8. आमंत्रित सदस्य के रूप में यादव जी द्वारा प्रस्तुत हलचल बहुत अच्छी रही !

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  9. आनंद आ गया....
    यादव जी स्नेह बनाए रखे....
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  10. आज की प्रस्तुति मनभावन लगी .

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  11. आज की प्रस्तुति मनभावन लगी .

    जवाब देंहटाएं
  12. मौसम की चर्चा के साथ विचारों की बौछार बहुत अच्छी लगी . सभी लिंक अपनी-अपनी विशेषता लिये हैं. सुन्दर प्रस्तुति के लिये पांच लिंकों का आनंद को बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  13. अलग -अलग बिषयों पर आकर्षक सामग्री का चयन किया गया है . धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिये पांच लिंको का आनंद को.

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  14. आज का अंक आपको सौंपकर मैं दिनभर कहीं और व्यस्त रहा। आपकी सक्रियता ने प्रसन्नता का एहसास कराया। निस्संदेह हमारा उत्साह बढ़ाने में आपने कोई कसर नहीं छोड़ी। उम्मीद है अब कारवां यों ही बढ़ता चलेगा ....अनवरत...अविचल,अथक! चर्चा में देर से शामिल होने के लिये आप सभी से सविनय क्षमा प्रार्थी हूँ।
    आप सभी का हार्दिक आभार.

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