पिछले सप्ताह हमारे ब्लॉग
"पाँच लिंकों का आनंद"
परिवार के सभी आदरणीय सदस्य व पाठकगणों ने
'देश की रीढ़'
कहे जाने वाले हमारे आदरणीय अन्नदाता
'किसान'
के मूलभूत आवश्यकताओं एवं उनकी समस्याओं पर गहरा विमर्श किया, जिसमें हमारे गणमान्य पाठकों और उनकी मूल्यवान टिप्पणियों का अतुलनीय सहयोग रहा। चर्चा का विषय 'किसान' हो या कुर्सी पर बैठे 'माननीय' हमारे विमर्श का उन पर प्रत्यक्षरूप से तो नहीं
परोक्षरूप से अवश्य ही एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
हम हमारे राष्ट्र की प्रगति में अपनी लेखनी कौशल से
एक नया 'इतिहास' लिखने को आतुर हैं
एवं इसमें आप सभी प्रबुद्धजनों का अमूल्य सहयोग अपेक्षित है,
इन्हीं कभी न अंत होने वाले विचारों के साथ मैं अपने 'परिवार' का सबसे छोटा सदस्य आपको आज के 'अंक' की ओर ले चलता हूँ
हार्दिक अभिवादन।
आज के अंक का आगाज़ इस 'लेखनी के जादूगर' की
एक सुन्दर 'कृति' के साथ करता हूँ
आदरणीय, ''रवींद्र सिंह यादव'' जी
ख़ामोशियों के साये में
दिल शोलों में जलता है
ज़ुबाँ पत्थर की होती है
एहसास गुज़रें कहाँ से
रास्ते के पत्थर भारी हो चले हैं।
आज का माहौल जो हमने तैयार किया है अपने स्वार्थपरक कर्मों से इसका परिणाम निश्चित तौर पर विध्वंसक ही होगा,जिसके भुक्तभोगी हम स्वयं भी होंगे इन्हीं सत्यपरक विचारों से हमारा साक्षात्कार कराती
आदरणीय,''साधना वैद'' जी की कृति
वाणी में ज़हर उतर आया है ,
आँखों में नफ़रत है और
हृदय में बदले की आग
इतनी तीव्रता से धधक उठी है कि
प्रतिघात करने में
कहते हैं यदि आपके जीवन में एक सच्चा मार्गदर्शक है तो उससे बड़ा गुरु कोई और नहीं एवं जिसने यह अमूल्य गुरुनिधि पा ली उसको किसी और निधि की आवश्यकता नहीं ,इन्हीं कोमल भावनाओं के साथ हमारे आदरणीय,राकेश जी ''राही'' की उनके परम 'श्रद्धेय' गुरु को समर्पित उनकी एक कृति
ना था होश में, जो ख्वाहिश मैं करूँ,
तेरा जलाल देख, मदहोश हो गया।
सत्य ही है हमें दूसरों के सुख-दुःख का एहसास तभी हो सकता है जब हम दूसरे के स्थान पर स्वयं को रखकर सोचें ! इन विचारों को नई उड़ान देती
आदरणीय, ''पम्मी सिंह" जी की
'सक्षम कृति'
आराम कुर्सी पर
फितूर सोच,
नींद से बोझिल पलकें...
जो खुली 'संजू' की आवाज़ ..
"बीसन जूता मरबै और एक गिनबै"
इस अंक के अंतिम चरण में
आदरणीय,"आशा सक्सेना" जी की मीठी यादें
जिसे इन्होंने अपने शब्दों में पिरोया है
म्याऊं म्याऊं करती
अपनी ओर
आकृष्ट करती
चूहों का लगता अकाल
या शिकार न कर पाती
अंत में "मेरी भावनायें"
मशालें जलती रहेंगी
अंधेरा जाता रहेगा
कुछ कुचलेंगे हमको
मौक़ापरस्त,हस्ती दिखाकर
लेखनी चलती रहेगी
हक़ पाने को आतुर
हम ना झुकेंगे ! उनके दिखावे
चोंचलों से
लिखते रहेंगे,स्याही ना बची तो
'रक्त' से
देश की 'प्रगति' के आने तक !
आपकी प्रतीक्षा में
आभार
शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा चयन
साधुवाद
सादर
प्रस्तुतीकरण अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंरचनाओं के साथ विशेष टिप्पणी लिंकों को प्रस्तुत करने का सुंदर ढंग और बहुत सुंंदर विविधतापूर्ण रचनाओं का चयन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शूभकामनाएँ आपको आदरणीय ध्रुव जी।
शुभ प्रभात!
जवाब देंहटाएंसुन्दर ढंग से संजोया है लिंक्स को ध्रुव जी ने। मेरी रचना को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आरम्भ से अंत तक रोचक ...उत्तम .... सादर।
विचार पूर्ण मन में ही नव-शब्द उदित होते हैं
जवाब देंहटाएं...लाजवाब अभिव्यक्ति।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद।
शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर ,आज का *पाँच लिंको का आनन्द *
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संयोजन ,क़लम की ताक़त की आवाज ,
बेहतरीन ।
सुन्दर हलचल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्र आज की हलचल में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार एकलव्य जी ! आशा दीदी की ओर से भी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! वे इन दिनों कुछ अस्वस्थ है इसलिए नेट से दूर हैं !
जवाब देंहटाएंनए कलेवर और नूतन विचार से सजी है ध्रुव जी की ये पोस्ट। इस पोस्ट में सम्मलित सभी रचनाओं के रचनाकार को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।
जवाब देंहटाएंनिखर रहा है दिन-ब-दिन पाँच लिंकों का आनन्द।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति एवं उम्दा लिंक संयोजन....
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावी और सुंदरता से सभी लिंक संजोय हैं
जवाब देंहटाएंबढ़िया संयोजन के लिए साधुवाद
सादर