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शनिवार, 3 जून 2017

687... बचपन



सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

इस महीने का तीसरा दिन
तीन टिकट महाविकट
बेईमानी से जीतना हो तो तीन चांस की बात हम बचपन में करते थे
छप्पन में भी की जा सकती है बचपन शुरू ही तो होने वाला होता है फिर से


बचपन


थक   की  कहानी  थी,
परियों  का  फ़साना  था;
बारिश  में  कागज़  की  नाव  थी, हर  मौसम  सुहाना  था|
हर  खेल  में  साथी  थे,
हर  रिश्ता  निभाना  था;
गम  की  ज़ुबान  ना  होती  थी ,
ना  ज़ख्मों  का  पैमाना  था|



बचपन


बस रैन-बसेरा सड़कों पे,
और साँझ-सबेरा सड़कों पे।
वह हर दम पूछा करता, “क्यों?”
दुनिया में कोई मरता क्यों?
यूँ फंदे कसे ग़रीबी के,
घर पहुँचा मोटी बीबी के।
घर क्या था बड़ी हवेली थी



बचपन


आम के पेड़ अमरूद्ध की डाली ।
बेरों के कांटे मकड़ी की जाली॥
पापा की डांट मम्मी का प्यार।
छोटा सा बछड़ा था अपना यार॥
पतंगो की डोर खीचें अपनी ओर।
दादा के किस्सों का मिलता न छोर॥


बचपन


ज़िंदगी का लम्हा
बहुत छोटा सा है...
कल की
कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल
सिर्फ सपने में ही है


बचपन



अनोखी है इसकी चाल
अक्सर ये चुपचाप खड़ा
देखता दुनिआ  का सब हाल
न हम देख पाते इसे
न सुन पाते इसकी आहट  हैं
ये तो सिर्फ एक अहसास है
जो आकर गुजर जाता है।
दुःख में रबर सा खिंच कर.

><><

फिर मिलेंगे

विभा रानी श्रीवास्तव



7 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सादर नमन
    उम्दा प्रस्तुति
    पचपन माने बचपन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सही बात है पचपन छप्पन पर ही पता चलता है जो जो पढ़ा लिखा था गलत हो गया था चलो दुबारा शुरु करें समझना :) बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात आदरणीय दीदी!
    अंकों का ज़िक्र खूबसूरती के साथ और अनुभव की पाठशाला का सबक शिद्दत के साथ. बधाई. सुन्दर लिंकों का संकलन.

    जवाब देंहटाएं
  4. बचपन को समर्पित यह अंक जीवन की ऊंची-नीची घाटियों से लेकर कल्पनालोक के सुन्दर सपनों का संग्रहणीय संयोजन है.

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय, शुप्रभात बचपन की मीठी स्मृतियों का
    बहुआयामी संकलन
    अतिसुन्दर ! आभार
    "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  6. बचपन भुलाए न भूल पाता कोई
    बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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