आओ ! बैठो ,देश की बात करें
हृदयस्पर्शी,मुलाक़ात करें
कुछ खट्टी ,कुछ मीठी सी
यादों की बारात करें
आओ ! बैठो ,देश की बात करें
सादर अभिवादन !
आप भी विचारते होंगे एक कवि मन सहसा देशभक्त क्यूँ बनने लगा। बीती रात से ही ये कवि मन कुछ प्रश्नों का शिकार हो गया है, जिन प्रश्नों का उत्तर सूझ नही रहा
सर्वप्रथम धर्म आया या मानव ,
देश आया अथवा देशवासी
सत्ता आई या प्रजा
जहां तक मेरा दिमाग़ सोच सकता है
मानव ! हो सकता है मैं गलत हूँ ,
मेरे विचार तर्कहीन हों,
किन्तु वे आपके विचार होंगे
मानवों में श्रेष्ठ ! किसान
जो राष्ट्र का आधार है ,उनकी बर्बादी हम देख रहें हैं ! किन्तु हम ये भूल गए हैं, हमारा आधार जो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर आया है अपनी व्यथा सुनाने ! जिनके कठिन परिश्रम के बलबूते हमारी उदरपूर्ति होती है। यदि भविष्य में उनका यही हाल रहा तो संभव है, आटे की रोटियां ! अजायबघरों में देखने को मिलें, दालें ! दवा विक्रय केंद्रों पर
एवं हमारी खाने की थाली दवाओं से सजी हो
संभव है ! भूख का निवारण करने में सक्षम हों
ख़ैर आज की चयनित रचनाओं की ओर डग भरते हैं
बहुआयामी रंगों को समेटे ,प्रकृति के सुन्दर एहसासों में लिपटी ,जीवन के कई व्यक्तित्व से परिचय कराती
आदरणीय, ''स्वाति जी'' की रचनायें
देवदारों के बीच से
धूप का आ जाना
कठिन होता है
प्रेम शब्द भी अज़ीब है अपने अर्थ के विपरीत ,दुःख लिए हुए ,यादों के भँवर में फांसती !
डूबते-उतराते आदरणीय,'अनुपम चौबे' जी की रचना
कुछ भ्रम थे मेरे टूट गए थे ,जब अपने ही रूठ गए थे
जब मैं बदला और वो बदले ,कुछ बदले उसूल लाया हूँ
आदरणीय ''विभा जी'' की भावनायें लिए,उनकी रचना जो स्वयं बहुत कुछ कहती है
रात की नींद सपनो में कटने लगी
जाम के ही बिना मस्त रहने लगे
दिल गुज़रते गए मन मचलते रहे
राह में रोज़ उनसे हम मिलते रहे
आदरणीय, ''कालीपद प्रसाद'' जी की ग़ज़लें लघु किन्तु, मारक प्रकृति की होती हैं जिसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए मेरी वाणी विराम नहीं लेती
निग़ाहें तेरी क़ातिल बेरहम किन्तु
बिना ये क़त्ल,मुहब्बत का नशा क्या ?
''उलूक टाइम्स''
आदरणीय, ''सुशील कुमार जोशी'' व्यंग विधा में पारंगत एवं समाज की कुरीतियों पर सदैव कटाक्ष करते दिखते हैं ,सत्य विचारों का समर्थन करती इनकी आज की रचना प्रशंसा योग्य है
जरूरी नहीं
होता है हर
किसी को
खून का रंग
लाल ही
दिखाई देता है ।
चर्चा के समापन पर हमेशा की भाँति अपने कवि मन को रोक नहीं पाता एवं अपनी भावनाओं को चंद शब्दों में व्यक्त करता हूँ,
आओ ! हम याद करें,थोड़ी सी बात करें
धुंधली सी तस्वीरें जो ,उनको थोड़ा साफ़ करें
कुछ कालजयी अभिलेखों को ,किरणों से
प्रकाशमान करें !
आओ ! हम याद करें,थोड़ी सी बात करें
आप सभी आदरणीय, पाठकों एवं रचनाकारों की
प्रतीक्षा में
आभार,
"एकलव्य"
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएँ ..
विभा बहन की रचना पहली बार
पढ़ी...सही व सटीक लिखती हैं वे
सादर
सुंदर रचनाएँ।।।।।।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। सुन्दर सूत्र चयन। आभार एकलव्य 'उलूक उवाच' को जगह दे कर सम्मानित करने के लिये।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंध्रुव जी आज का नया अंक लेकर आए हैं । हम जहां एक ओर ़ देश के ज्वलंत विषय पर विमर्श के लिए भाव-भूमि तैयार करते हैं वहीं दूसरी ओर एक से बढ़कर एक सुंदर रचनाओं का चयन किया है। बधाई।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लिंक
प्रस्तुति उम्दा।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंकों का चयन।
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंको का संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन है
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई
बहुत ही शानदार चर्चा मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए सहृदय धन्यवाद
जवाब देंहटाएंउम्दा