सत्य ही है संसार भी एक विचित्र मेला है।
हर दुकान स्वयं में ही विविधता लिए हुए हमें लुभातीं हैं हम अपने जीवन का अनमोल क्षण इस मेले में घूमते हुए व्यतीत करते हैं,यदि कोई वस्तु पसंद आई उसे प्राप्त करने हेतु हम प्रयासरत हो जाते हैं। यदि वह वस्तु हमें मिल भी जाये ,क्षणमात्र की प्रसन्नता हमें प्राप्त होती है किन्तु यदि यह प्रयास हम उस भौतिक वस्तु के यथार्थ को 'अपने जीवन के लिए उपयोगी है या नहीं' को प्रमाणित करने में करें तो हमारा किया गया यह प्रयास हमें दर्शन की ओर आकृष्ट करता है एवं परमानंद की प्राप्ति होती है। उदाहरणार्थ, हमारी लेखनी जो हमें हमारे "पाँच लिंकों का आनंद" की ओर अग्रसर करती है
तो सादर आमंत्रित हैं आपसभी परमानंद प्राप्ति हेतु
आज की इस श्रृंखला में
सर्व प्रथम आप सभी को ईद पर्व की शुभकामनाएँ
आज की श्रृंखला का प्रारम्भ आदरणीय ''साधना वैद'' जी की एक कड़ी
से करते हैं , सत्य ही है हमारे हाथ लाखों लोगों के सिर क़लम तो नहीं कर सकते ,कोटि को प्रणाम अवश्य करने में
सक्षम हैं
यह तय है कि अब ये हाथ
इतने अशक्त हो उठे हैं कि
इनसे एक फूल भी पकड़ना
नामुमकिन हो गया है ।
'मन' एक ऐसा शब्द जिसकी व्याख्या स्वयं मैंने भी कई बार अपनी रचनाओं में की किन्तु आज भी पूर्ण नहीं प्रतीत होती वैसे भी 'वायु से भी तीव्र वेग' से चलने वाले इस अस्थिर मन का आंकलन कठिन है फिर भी एक प्रयास हमारे युवा कवि आदरणीय ''पुरुषोत्तम'' जी अपनी रचना के माध्यम से करते हैं
संताप लिए अन्दर क्यूँ बिखरा है तू,
विषाद लिए अपने ही मन में क्यूँ ठहरा है तू,
उसने खोया है जिसको, वो ही हीरा है तू,
एक शख़्स लोगों के ताने सुनता ,ईमान पे चोट खाता चंद पैसों की ख़ातिर, अपने बच्चों के लिए इस संसार में यदि कोई व्यक्ति है वो हैं हमारे आदरणीय ''पिता'' जिसकी महिमा का बखान हमारे उच्च कोटि के कवि
आदरणीय "ज्योति खरे" जी अपनी रचना के माध्यम से करते हैं
कांच के चटकटने सी
ओस के टपकने सी
पतली शाखाँओं से दुखों को तोड़ने सी
सूरज के साथ सुख के आगमन सी
इन क्षणों में पिता
व्यक्ति नहीं समुद्र बन जाते हैं
गज़लों का काफ़िला गुज़रे और इस शख़्स का नाम न लें ! बहुत ही गुस्ताख़ी होगी,हमारे
आदरणीय "राजेश कुमार राय" जी
लौट के आना था सो मैं आ गया मगर
मेरी रूह तड़पती है मुकद्दर के शहर में
शब्दों का उचित चयन परिस्थितियों के अनुकूल बख़ूबी ज्ञात है
'साहित्य का यह सितारा विश्व' में व्याप्त है
आदरणीय ''विश्वमोहन'' जी
तू चहके प्रति पल चिरंतन,
भर बाँहे जीवन आलिंगन/
मै मूक पथिक नम नयनो से.
कर लूँगा महाभिनिष्क्रमण !
आज्ञा की आकांक्षी "मेरी भावनायें"
गीत गाता,गुनगुनाता
मैं चला था 'सारथी'
स्वप्न बुनता,स्नेह चुनता
आस के दीपक जलाता
अश्व पे वायु सवार
श्रवण में हो,फुसफुसाता
गीत गाता,गुनगुनाता
मैं चला था 'सारथी'
आभार
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति..
लगन से बनाई गई
उत्सव ईद-उल-फितर की शुभकामनाएँ
सादर
एकलव्य जी, इस सुंदर उल्लेखनीय प्रस्तुति हेतु आपकी जितनी भी प्रशंसा करूँ कम है। लेखन विधा में आप प्रगति के सारे पथों पर यशपूर्वक आरूढ हों। शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंसमस्त जनों को मंगलमय सुप्रभात।
सुप्रभात सुंदर संकलन आभार आदरणीय आपका
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रसतुति।
जवाब देंहटाएंईद पर्व की सभी मित्रों व पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मेरा आभार एवं धन्यवाद ध्रुव जी आज की प्रस्तुति में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए ! सभी सूत्र बहुत ही सुन्दर हैं !
जवाब देंहटाएंवाह!चयनित रचनाएँ बढियाँ..
जवाब देंहटाएंविविध रंगो का संयोजन.
प्रस्तुति उम्दा।
धन्यवाद।
खूबसूरत लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंरचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार ।
ईद मुबारक। ध्रुव जी ने आज नए अंदाज में अंक को पेश किया है। सुंदर रचनाओं का संकलन। आभार सादर।
जवाब देंहटाएंsundar link sanyojan badhai
जवाब देंहटाएंhttp://hindikavitamanch.blogspot.in/
सुन्दर लिंक संयोजन ...
जवाब देंहटाएंआज्ञा की आकांक्षी मेरी भावनाएं.......
........मैं चला था सारथी ।
सुंदर पंक्तियों ने प्रस्तुति में चार चाँद लगा दिये...
बधाई, ध्रुव जी !
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंसबको ईद मुबारक!!
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्र संजोय है
जवाब देंहटाएंबधाई ध्रुव जी
मुझे सम्मलित करने का आभार