दासी-उदासी के चक्कर में फंस गया.....
कुछ अलग सी रचनाएँ पढ़ने को मिलेगी....
आज मैं हूँ और मेरी पसंद है....
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एशियाई कोयल , यह कोयल कुकुलीफ़ॉर्मिस पक्षी ग्रुप का सदस्य हैं। यह भारतीय उपमहाद्वीप, चीन और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है। पुरुष कोयल के परिचित गीत कू-ओउ है महिला कोयल किक-किक-किक ... की आवाज़ निकालती करता है।
राकेश की रचनाएँ....राकेश कुमार श्रीवास्तव
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अंततः चले जाना है हमें, इस जहाँ से कहीं दूर,
शाश्वत सत्य व नि:शब्द चिरशांति के पार,
उजालों से परिपूर्ण होगी वो अन्जानी सी जगह,
चाह की चादर लपेटे धूलनिर्मित इस देह को बस,
चलते हुए कुछ और दूरियाँ करनी है तय।
"जीवन कलश".....पुरुषोत्तम सिन्हा
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उषा की लालिमा पूरब में
नजर आई.......
जब दिवाकर रथ पर सवार,
गगन पथ पर बढने लगे.....
निशा की विदाई का समय
निकट था......
चाँद भी तारों की बारात संग
जाने लगे ..........
नई सोच...सुधा देवरानी
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कोई अनजान सी चाहत लिए
फिरता रहा अब तक
कभी थी धूप की ख्वाहिश तो
अब जागी छाँव की इच्छा
साहित्य शिल्पी... बृजेश नीरज
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मैंने किसी जगह बेटी की बाप से मुहब्बत के बारे मैं एक प्यारी बात पढ़ी थी कि एक बाप बेटे के साथ फुटबॉल खेल रहा था और बेटे की हौसला अफजाई के लिए जान बूझ कर हार रहा था दूर बैठी बेटी बाप की शिकस्त बर्दाश्त ना कर सकी और बाप के साथ लिपट के रोने लगी और बोली बाबाजान आप मेरे साथ खेलें, ताकि मैं आपकी जीत के लिए खुद जान बूझ कर हार जाऊं
किसी के पास इतने न जा...... व्हाट्स एप्प से
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श़ायरियाँ और ग़ज़लें
पहले भी लिखी जाती थी
और अब भी लिखी जाती हैं
पर उलूक की लिखी ग़ज़ल..वाह वाह
पहले तो उनकी हर बात पे दाद देते थे वो
अब बात बात में नुक्ताचीनी का बहाना ढूंढते हैं ।
जब से खबर हुवी है उनकी बेवफाई की
पोस्टमैन को चाय पिलाने का बहाना ढूंढते हैं ।
उल्लूक टाईम्स .... डॉ. सुशील जोशी
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इज़ाज़त दें दिग्विजय को
दिन पर दिन निखरते पाँच लिंकों के आनन्द के आज के अंक में 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये आभार दिग्विजय जी।
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंदिग्विजय जी आज की प्रस्तुति में
कुछ रचनायें अत्यंत ही संवेदनशील हैं जो जीवन के सत्य
विचारों की ओर हमें उन्मुख करती हैं ,बढ़िया संकलन
सभी रचनाकारों एवं आदरणीय पाठकों को हार्दिक
शुभकामनायें ,आभार।
"एकलव्य"
बढियाँ लिंक..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल
जवाब देंहटाएंआज का विशेषांक अधिक लिंक्स लेकर प्रस्तुत हुआ है जिसे आदरणीय दिग्विजय जी ने बखूबी संवारा है ताकि भाव गांभीर्य से लवरेज रचनाओं का पाठक और रचनाकार अधिक से अधिक रसास्वादन कर सकें। आदरणीय दिग्विजय जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब halchal with five links
जवाब देंहटाएंकाश वक्त भी
जवाब देंहटाएंहमारे साथ होता
न कोई दूर होता
न दिल कभी उदास होता
शानदार शुरुआत के साथ उम्दा संकलन....
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार एवं धन्यवाद ।
अच्छी रचनाएं पढ़कर आनंदित हुआ. वाह क्या बात है इस साइट की पेशकश मज़ेदार रहती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई
शुभ-प्रभात दिग्विजय जी पाँच लिंकों के आनन्द लेते हुए आज के सुबह का आगाज़ हुआ, मेरे द्वारा ली गई फोटोग्राफ पाठकों तक पहुंचाने के लिए आभार एवं समयाभाव के कारण समय पर टिपण्णी न दे पाने के लिए क्षमा चाहता हूँ.
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