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गुरुवार, 22 जून 2017

706...''सेर पर खुद को सवा सेर ''

सादर अभिवादन !
कल विश्व योग दिवस की हलचल से हम गदगद रहे।
आज आपके लिए  पेश है पाँच  लिंकों की हलचल।
पावस ऋतु  ने अपनी दस्तक दे दी है।
छुट्टियों से लौटकर विद्यार्थी
नए शिक्षण -सत्र की चुनौती स्वीकारने को संवर रहे हैं।
उधर पुरी  (उड़ीसा ) में आगामी  रविवार 25 जून
को विश्व प्रसिद्द भगवान  जगन्नाथ की
रथयात्रा  की तैयारियां युद्धस्तर
पर उमंग और उल्लास से ज़ारी हैं तो रमज़ान का पवित्र महीना ख़त्म होने को है और ईद -अल -फ़ित्र की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। 

आइये आज के आकर्षणों  से रूबरू होते हैं-
जीवन के अर्थ समझाती अरुण  रॉय जी की एक गंभीर  रचना -

जीवन शून्य है        अरुण रॉय


जितनी बार दुहराते हैं शून्य 
शून्य का  धागा  
मनोकामना के धागे की तरह 
मजबूती से लिपट जाता है 
हमारे चारो ओर 
कुछ  आशाओं के संग 

नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहन और संरक्षण की ज़रूरत होती  है। 

शीरीं "तस्कीन "जी की यह रचना भले ही संक्षिप्त है किन्तु भाव व्यापक हैं -

 

होसलों और उम्मीदों   शीरीं “तस्कीन”

और तुम हमेशा की तरह
मेरे होसलों और उम्मीदों से बने घर को
हर बार की तरह तोड़ कर चले जाते हो

संजय भास्कर जी की एक बारिश पर आधारित रचना जिसमें शब्द भले ही कम  हैं लेकिन भावों से आपको तर -बतर करने में सक्षम होगी -


बारिश की वह बूँद

जो मेरे कमरे की खिड़की के

शीशे पर

फिसल रही थी


एक और युवा  रचनाकार दीप्ति शर्मा जी की इस रचना में स्त्री जीवन से जुड़ीं वर्जनाओं का ख़ूबसूरती से ज़िक्र हुआ है जिसमें आक्रोश का स्वर भी मुखर हो उठा है -



कहा जाता है

मर्यादा में रहो

समाज की सुनो

प्रेम ना करो

किया तो मार दी जाओगी
बस आँख बंद कर
इस सो कोल्ड समाज की
मर्यादा का पालन करो

आज के जलते सवाल पर प्रकाश डालता शालिनी जी का यह आलेख विचारणीय है जोकि गंभीर सवाल खड़े करता है -

कानून पर कामुकता हावी     शालिनी कौशिक

ये घटनाएं स्पष्ट तौर पर यह सन्देश दे रही हैं कि अपराधी अब बेख़ौफ़ हैं उनपर भारतीय कानून का कोई असर अब नहीं है .उनकी साफ तौर पर यह चेतावनी हम सबको दिखाई दे रही है जो कानून के ''सेर पर खुद को सवा सेर '' मान भी रही है और साबित भी कर रही है .ये बात जब सबको दिखाई दे रही है तो कानून के नुमाइंदो को क्यों नज़र नहीं रही हैं . 



हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रियाओं 
और सक्रिय सहयोग की अपेक्षा रहेगी। 
अब आज्ञा दें....  सादर।
फिर मिलेंगे 
रवीन्द्र सिंह यादव  

10 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात ,
    आदरणीय रवींद्र जी
    आज का अंक विविध रंग लिए हुए ,
    प्रस्तुति को चार-चाँद लगा रहा है ,
    मनमोहक लिंक संयोजन
    उम्दा ! प्रस्तुतिकरण
    आभार।
    "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  2. विविधता लिये हुऐ एक बहुत सुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर लिंकों का चयन रवींद्र जी...शामिल करने हेतु आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभप्रभात....
    सुंदर....
    आभार....

    जवाब देंहटाएं
  5. विविधताओं से भरी लिकों का चयन
    उत्तम प्रस्तुति..
    अच्छी भूमिका..
    बहुत सुंदर।
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर और उम्दा लिंक संयोजन.....
    प्रत्येक लिंक के पहले आपकी भावाभिव्यक्ति बहुत ही सुन्दर... रविन्द्र जी ! बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर समायोजन, लिंकों का उत्तम चयन और सुंदर रचनाएँ।रवींद्र जी सुंदर प्रस्तुति👌👌

    जवाब देंहटाएं

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