जबकि
सुख-दुःख
सूरज रहा चूम
सागर का आंचल
रंग सिंदूरी चमक रहा
आसमां भरा गुलाल
सुख-दुःख
ये पल दो पल की रिश्तेदारी नहीं,
ये तो फ़र्ज है उम्र भर निभाने का,
जिन्दगी में आकर कभी ना वापस जाने का,
ना जानें क्यों एक अजीब सी डोर में बन्ध जाने का,
सुख-दुःख
दुख हममें धैर्य , संयम , सहनशीलता और सरलता की भावना बढ़ाता है
जबकि सुख कहीं न कहीं हमें अहंकारी , लालची व उच्छृंखल बनाता है ।
दुख हमें वैराग्य अनुभव कराता है । दुख हमें जो अनुभव करा सकता है
वह सुख कभी नहीं करा सकता । तो क्या दुख , सुख से ज्यादा अच्छा है ?
निर्माण
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
><><
मिलेंगे जल्द
विभा रानी श्रीवास्तव
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
आना-जाना
धूप-छाँव
सुख-दुख
जीना-मरना
खाना-पीना
...
उत्तम प्रस्तुति
सादर
शुभ प्रभात,
जवाब देंहटाएंरात के उत्पात-भय से, भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की, मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,नेह का आह्णान फिर-फिर!
हरिवंश राय बच्चन की इस कालजयी रचना को पुनं हलचल लिंक में पढ मन प्रसन्न हो गया।
विभा रानी श्रीवास्तव जी को धन्यवाद
सुन्दर अन्दाज में प्रस्तुति विभा जी की हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात आदरणीय, ''विभा जी''
जवाब देंहटाएंआज का अंक जीवन के सत्य से
साक्षातकार करा रही है
श्रेष्ठ रचनायें ,उत्तम प्रस्तुति
शुभकामनायें ,आभार।
"एकलव्य"
सारगर्भित लिंक..
जवाब देंहटाएंबहुत बढियाँ।
धन्यवाद!
सर्वोतम लिंक...आदरणीय आंटी जी....
जवाब देंहटाएंशनीवार के दिन आप की प्रस्तुत चर्चा की हम सब को आदत पड़ गयी है....
सादर नमन....
सुख दुख पर आधारित विमर्श के लिए उत्तम प्रस्तुति। आदरणीय दीदी का संकलन विचारणीय विषयों को पेश करता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लिंक संयोजन.....
जवाब देंहटाएंमेरी रचना "सुख-दुख"को यहाँ स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार एवं धन्यवाद ....आदरणीय विभा जी !
अद्भुतलाइफ का लेखांश यहाँ प्रस्तुत करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...
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