जय मां हाटेशवरी....
कुछ लोग कहते है की बदल गया हूँ मैं,
उनको ये नहीं पता की संभल गया हूँ मैं,
उदासी आज भी मेरे चेहरे से झलकती है,
अब दर्द में भी मुस्कुराना सीख गया हूँ मैं।।
सादर अभिवादन....
2 जी, 3 जी 4 जी और अब 5 जी....
अब तो लगता है....
अन्न से नहीं....
डाटा से ही पेट भरना पड़ेगा....
सरकार को तो अब उनकी ही चिंता है....
हम भी तो डाटा वालों की ही जेबे भर रहे हैं न.....
आलु, गेहूं, चावल 2 रुपये....1 जीबी डेटा...147 रुपये मे...
"वे तुम्हारी आत्महत्या पर अफ़सोस नहीं करेंगे
आत्महत्या उनके लिए दार्शनिक चिंता का विषय है
वे इसकी व्याख्या में सवाल को वहीँ टांग देंगे
जिस पेड़ पर तुमने अपना फंदा डाला था-----अनुज लुगुन"
अब पेश है....कुछ चुनी हुई रचनाएं....
भारतीय सिस्टम फरार है!
समग्र मुल्क फरार है
जिस्म है जाँ फरार है
अवाम बैठी मुँह खोले
और हाकिम फरार है
क़ैदी है जेल में लेकिन
वहाँ सिपाही फरार है
देखो दुनिया दीवानी
जिए वही जो फरार है
सोचे है रवि बहुत पर
उसका कर्म फरार है
इस तरह खुद को बचा के रख लुँगा [कविता]- मनोरंजन कुमार तिवारी
लिखूँगा जीवन को,
महफिलों की रौनक लिखूँगा,
दोस्तों के ठहाकों को, उनकी महक लिखूँगा,
आत्मग्लानि, अफ़सोस, और संताप नहीं लिखूँगा,
जीत का जश्न और संभावनाओं का आकाश लिखूँगा,
मैं तन्हाइयों की उबासी नहीं लिखूँगा,
सफर की उदासी भी ना लिखूँगा,
वे आ रहे है ... - ध्रुव सिंह एकलव्य
आसमां के पार से
स्वयं फंसे,मझधार से
इस धरा पर,धर्म रक्षक
हमको बुलाने !
वे आ रहें हैं.........
लघु कथा - Offline
पूछ लिया कि आपकी उम्र कितनी है?
मैंने प्रॉपर डेट ऑफ़ बर्थ के साथ
उसे जवाब भेज दिया।
तब से वो ऑफलाइन है।
स्मृतियों का ताजमहल---श्वेता सिन्हा
और मन के कोरे पन्नों
पर लिखी इबारत को
सजा दिया है भावहीन
खामोश संगमरमर के
स्पंदनविहीन महलों में,
जिसके खाली दीवारों पर
चीखती है उदासियाँ,
चाँदनी रातों में चाँद की
परछाईयों में बिसूरते है
सिसकते हुए जज्बात,
आदरणीय अनवर जलालपुरी जी ने....
पावन गीता को समझा....
और उस अमर ज्ञान को....
उर्दू शायरी में सजाकर....
उन्हे उपहार स्वरूप दिया है....
जिनके कारण सारा विश्व....
आतंकवाद से पिड़ित है....
जो अमन को भुलाकर....
विश्व में केवल नफरत फैला रहे हैं....
नहीं होती नापाक यह आत्मा....अनवर जलालपुरी
जो समझा करे मुझको पुरूषोत्तम
रखे जो न अज्ञानता में क़दम
उसी की इबादत तो है कामयाब
रहे रूह पर उसकी हरदम शबाब
यही इल्म है जिसमें कुल राज़ है
हे अर्जुन! यही मेरा अंदाज़ है
यही जान ले जो वह आरिफ़ बने
समझ ले वह कश्फ़ और काशिफ़ बने
धन्यवाद।
सुंदर विविधतापूर्ण लिंकों का चयन,मेरी रचना को मान देने के लिए आभार कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात !
जवाब देंहटाएंआज एक से बढ़कर एक
विचारणीय रचनाओं का अंक
लेकर आये हैं भाई कुलदीप जी।
बधाई।
देशभर में चर्चा का बिषय ...
ज्वलंत मुद्दा ..... किसानों का मुद्दा ..
रोशनी डालने के लिए आभार।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति..
सादर
शुभप्रभात, आदरणीय कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति देश के ज्वलंत मुद्दों के सन्दर्भ में विशेष है
इसके लिए आपको हृदय से आभार।
"एकलव्य''
बहुत सुन्दर। शीर्षक लाजवाब दिया है कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंसामायिक विषयों पर प्रस्तुति बहुत बढियाँँ लिंक..
जवाब देंहटाएंशीर्षक उम्दा..
लिंक कुछ इस तरह की होती है जो की न कुछ कम न कुछ ज्यादा बिलकुल उपयुक्त |
जवाब देंहटाएंजखीरा को स्थान देने हेतु धन्यवाद |
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लिंक संयोजन....
जवाब देंहटाएंSUNDAR.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद offline के लिए।
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