दर्द कोई बोलता हुआ....लोकेश नदीश
है मेरा अपना हौसला परवाज़ भी मेरी
मैं एक परिन्दा हूँ मगर पर कटा हुआ
मजबूरियों ने मेरी न छोड़ा मुझे कहीं
मत पूछना ये तुझसे मैं कैसे जुदा हुआ
नकारत्मकता से सकारात्मकता की ओर.......ऋतु आसूजा
बुराई को अच्छाई में बदलने की मेरी सोच बन आयी
नकारात्मक से सकारात्मक दृष्टि मैंने पायी
नकरात्मक सोच से करके विदाई
अब सकारत्मकता के बीज मैं बोता हूँ
समय तू पंख लगा के उड़ जा.......सुधा देवरानी
तब ना थी कोई टेंशन-वेंशन ना था कोई लफड़ा
ना आगे की फिकर थी हमको ना पीछे का मसला।
घर पर सब थे मौज मनाते खाते-पीते तगड़ा...
खेल-खेल में हँसते गाते या फिर करते झगड़ा ।
आज्ञा दें यशोदा को
शुभप्रभात ,आदरणीय दीदी
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंको का चयन ,लेख जानकारी से भरी
उम्दा ! लिंक संयोजन
आभार।
"एकलव्य"
वाह ! बहुत ही खूबसूरत लिंक संयोजन । बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआज का संकलन प्रेरक और अतिसुंदर है। साधुवाद
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष छोटी बहना
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुतीकरण
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जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात ।खूबसूरत रचनाओं का समागम। मौसम से लेकर रिश्तों की महक। सादर आभार।
जवाब देंहटाएंवाह!उम्दा लिकों का चयन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
सुंदर लिंक संयोजन ,मेरी रचना को मान देने के लिए बहुत आभार यशोदा दी।
जवाब देंहटाएंशुभ दोपहर....
जवाब देंहटाएंक्या बात है.....
आनंद आ गया.....
बहुत सुन्दर लिंक संयोजन.....
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार एवं धन्यवाद, यशोदा जी !
टिप्पणियाँ जैसे बढ़ते हुऐ बच्चे आनन्द देते हैं पाठकों लेखकों का बढ़ता उत्साह ब्लॉग की दुनियाँ के अच्छे दिन आने का संकेत देते हैं। आज की सुन्दर प्रस्तुति में 'उलूक' की बकबक को भी जगह देने के लिये आभार यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक संयोजन किया है आपने आज के लिए।
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