सादर अभिवादन !
साल का 180 वां दिन है आज।
विक्रम संवत् 2074 आषाढ़ शुक्ल छठी तिथि दिन गुरूवार।
हमारा 709 वां अंक 25 जून को शीर्षक
हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी सबसे अलग होती है
ये बहुत ही साफ बात है
नाम से प्रकाशित हुआ था जिसे आदरणीय यशोदा जी ने
बेहतरीन रचनाओं के साथ पेश किया था।
हमारे आदरणीय प्रोफ़ेसर डॉ. सुशील कुमार जोशी जी की यह रचना
सोचनीय सवालों को हमारे समक्ष खड़े करती है।
इस रचना पर मेरी टिप्पणी पर चर्चा को मीना शर्मा जी,
दीपक भारद्वाज जी और विश्व मोहन जी ने आगे बढ़ाया है।
उपयोगी और सारगर्भित बिंदुओं को जोड़ा है।
हिंदी के विस्तार और सृजन पर सारगर्भित चर्चाओं
का आयोजन होना चाहिए ताकि नयी पीढ़ी
कुछ आत्मसात कर सके और हिंदी के
वैभवशाली इतिहास को समझ सके
और सर्जना में अपना यथोचित
योगदान दे सके।
साथ ही हिंदी की धरोहर को सहेजने का सलीका भी सीख सके।
चलिए अब आपको आज की रचनाओं की ओर ले चलते हैं -
लाख अँधेरे छाए हों फिर भी आशावाद का स्वर हमारी मायूसी को दूर भगा देता है। भाई कुलदीप जी की यह रचना नई कविता के आयाम पेश करती है -
क्या झपट लेगा कोई मुझ से
रात में क्या किसी अनजान में
अंधकार में क़ैद कर देंगे
मसल देंगे क्या
जीवन से जीवन
महानगरीय सभ्यता ने हमसे बहुत कुछ छीन लिया है जिसे बखूबी पेश किया है
मीना शर्मा जी ने अपनी इस रचना में -
अंतर्जाल के आभासी रिश्तों में
अपनापन ढूँढ़ने की कोशिश,
सन्नाटे से उपजता शोर
उस शोर से भागने की कोशिश !
जीवन के विविध रूप पेश करती डॉक्टर सुभाष भदौरिया जी की ख़ूबसूरत रचना -
बीच में अपने जो दूरियां हैं.
कुछ तो समझो ये मज्बूरियां हैं.
भीड़ में कोई ख़तरा नहीं हैं,
जान लेवा ये तन्हाइयां हैं.
मासूम बचपन के कोमल मन को क्या-क्या झेलना पड़ता,एक मार्मिक कहानी कविता रावत जी की-
उसका मन इतना व्यथित था कि वह एक नज़र भी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहता था। कभी सहसा चल पड़ता कभी रूक जाता। उसके आंखों में आसूं थे किन्तु सूखे हुए। वह सहमा-सहमा बाजार की ओर भारी कदम बढ़ाता जा रहा था। उसकी आंखों में चाचा-चाची की हर दिन की मारपीट का मंजर और कानों में गाली-गलौज की कर्कश आवाज बार-बार गूंज रही थी। बाजार पहुंचकर उसने निश्चय किया कि वह शहर की ओर जाने वाली सड़क के सहारे चलता रहेगा।
बहुत ढूंढ़ने पर मिलती हैं बाल -साहित्य पर रचनाऐं। रेणु बाला जी की बचपन को याद करती सुन्दर रचना। थोड़ी देर के लिए आप भी खो जायेंगे अपने बचपन की सुखद स्मृतियों में -
झुक -सा गया गगन नीला
अनायास धरती के गोद मे -
कोई फूल सा आन खिला
फेंक दिया किताबों का झोला--
चलते -चलते
ब्लॉग पढ़ते -पढ़ते कुछ शब्द टकरा जाते हैं उन पर मनन होना चाहिए अतः उनके शुद्ध -अशुद्ध रूप की चर्चा को आगे बढ़ा रहा हूँ। ऐसा शायद भाषा पर स्थानीय प्रभाव के कारण हो रहा हो ...
अशुद्ध शब्द शुद्ध शब्द
ना न
बढ़ियाँ बढ़िया
दुनियाँ दुनिया
साँझा साझा
सिर सर
दिमांग दिमाग़
मित्रों,दोस्तों,बच्चों (सम्बोधन के लिए ) मित्रो,दोस्तो ,बच्चो
अब आज्ञा दें
फिर मिलेंगे
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंसुंदर व पठनीय रचनाओं का चयन
आभार
सादर
शुभप्रभात
जवाब देंहटाएंआदरणीय,रवींद्र जी
आज का अंक बहुत ही सराहनीय है
प्रस्तुतिकरण एवं रचनाओं के बीच
बढ़िया तालमेल ,उम्दा ! रचनायें
आपसभी पाठकगणों की समीक्षा
अपेक्षित है ,आभार।
"एकलव्य"
बिल्कुल सही। आज के संकलन में कुछ खास है। बाला की बाल कविता संकलन को एक नया रूप देती है। घुटन मन को छू जाती है। सभी रचनाये अपने विशिष्ट कलेवर को परोसती हैं। रविंद्रजी को बधाई! और पाठकों को भी!
हटाएंबहुत सुंदर सार्थक एवं पठनीय लिंकों का चयन,रवींद्र जी सुंदर संकलन के लिए बधाई स्वीकार करे।
जवाब देंहटाएंआदरणीय,रवींद्र जी
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति बहुत ही सराहनीय है कुछ विषयों पर
चर्चा अपेक्षित है।
उम्दा संकलन..
धन्यवाद।
बिल्कुल सही। गंभीर चर्चा आप सभी विद्वतजनों को करनी चाहिए। समाज को आप लोगों से बहुत अपेक्षाएं हैं। निष्क्रिय सज्जन सक्रिय दुर्जन से ज्यादा घातक है। और यह चर्चा विचारों की जुगाली या बौद्धिक विलास तक सीमित नही होना चाहिए। हमारे जैसे पाठकों को आप लोगों की चर्चा से ज्ञान और सुख दोनों मिलेगा।
हटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसर, आप जैसे विद्वतजनों की टिप्पणी बहुमूल्य है..
जवाब देंहटाएंआपकी शाब्दिक प्रस्तुति और वर्णन उत्कृष्ट होती है,
भईया..मेरी लेखनी अभी तो बाल्यावस्था के दौर से ...
अभी बहुत कुछ जानने की जरूरत है।
बहुत ही लाजवाब लिंक संयोजन....
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति...
आज की विचारणीय प्रस्तुति के लिए पांच लिंकों का आनंद का धन्यवाद। हिंदी पर चर्चा अच्छी लगी। अंत में हिंदी के शुद्ध -अशुद्ध रूप की चर्चा ज्ञानवर्धक है।
जवाब देंहटाएंरेणु जी ने लिखी है बहुत सुन्दर कविता बचपन की। उनके पेज पर पोस्ट करना संभव नहीं हो पा रहा है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुधिजन , सादर व सस्नेह अभिवादन | पांच लिंकों के आनन्द में मेरी रचना का चुना जाना मेरा सौभाग्य है | यहाँ आकर पांच लिंकों में साहित्य के पञ्च - रस मिले | बहुत अच्छा लग रहा है यहाँ आना और वैचारिक लाभ लेना | सभी लेखकों और पाठकों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंआदरणीय रेणु जी "पाँच लिंकों का आनंद " आपके अपार स्नेह का स्वागत करता है। सादर आभार।
हटाएंआदरणीय विनोद जी बहुत आभार आपका जो आपने रचना का मर्म समझ कर अपनी पसंद जाहिर की| मैं भी आदरणीय कविता जी की मर्मस्पर्शी कहानी के लिए उन्हें बधाई देना चाह रही थी पर मैं वहां असफल रही | मैं यहीं से उन्हें हार्दिक शुभकामना देती हूँ | कविता जी आपकी कहानी दिल को छु गयी | छोटी सी कहनी शिल्प , भाव और भाषा सभी दृष्टि से सराहनीय है | आपको पुनः शुभकामना |
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुभाष जी के ब्लॉग पर टिप्पणी नहीं हो पा रही |उनकी रचना अच्छी लगी उन्हें यही से अपनी हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित कर रही हूँ | सुभाष जी आपको बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों के आनन्द पर टिप्पणियाँ देख कर आनन्द आ रहा है। धीरे धीरे ही सही कारवाँ बढ रहा है यशोदा जी के छोटे से लगाये गये पौंधे को इसी तरह खाद पानी मिलता रहे। शुभकामनाएं । बहुत सुन्दर प्रस्तुति। स्वस्थ बहस होनी बहुत जरूरी है। आभार रवींद्र जी 'उलूक' की बकबक को तरजीह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम सर।
हटाएंआपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन की सतत अपेक्षा रहेगी "पाँच लिंकों का आनंद " को। सादर आभार।
हिंदी पर चर्चा का आयोजन अच्छा लगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआज का अंक चर्चा को समृद्ध करता गया। आप सभी सुधि पाठकों ,रचनाकारों एवं स्वजनों का हार्दिक आभार चर्चा में सक्रिय भागीदार बनने के लिए। सादर।
जवाब देंहटाएंआज की सभी रचनाओं का सुंदर संकलन हम सभी पाठकों तक पहुँचाने के लिए बहुत बहुत आभार रवींद्रजी । अपनी रचना को पाँच लिंकों में पाना प्रसन्नता एवं लेखन की संतुष्टि दे जाता है। सादर धन्यवाद एवं शुभकामनाओं के साथ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिली। बचपन की कविता बहुत अच्छी है .
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