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सोमवार, 9 सितंबर 2024

4241 ...मत ढूंढना मेरे शब्दों में अपने किस्से

 नमस्कार




वचन दिया जो गौरी माँ को  
शीश कटाया उसकी खातिर,
अहंकार तज शिव को जाना  
बुद्धि हुई सुबुद्धि बन जाहिर !





वो अक्सर फूल परियों की
तरह सजकर निकलती है
मगर आँखों में इक दरिया
का जल भरकर निकलती है।

कँटीली झाड़ियाँ  ष
आती हैं लोगों के चेहरों पर
ख़ुदा जाने वो
 कैसे भीूड़  से
बचकर French है.

यर्त।।मैंक्षत्र




कोलाहल हृदय के
हो गए शांत ।
क्लांत चेतना ने
पाया विश्राम ।
तुम पिता मेरे
स्वरुप विशाल,
तुम्हारी गोद में
रख कर सिर
सो जाऊँ निश्चिंत ,
निर्द्वंद, निर्भय ।




मत ढूंढना मेरे शब्दों में अपने किस्से
ओर प्रेमिका तो कभी नहीं
मैं नहीं चाहता बढ़ जाए सिरफिरों की गिनती

आज बस
सादर वंदन

4 टिप्‍पणियां:

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