उलझी हुई “जिग्सॉ पजल” लगती है जिन्दगी
जब इन्सान अपनी समझदारी के फेर में
रिश्तों को सहूलियत अनुसार खर्च करता है ।
आजकल बच्चों में स्वेच्छाचारिता व् एकान्तप्रियता की भावना भी प्रबल रूप से घर करती जा रही है ! वे अपने पसंद के लोगों के अलावा अन्य किसीसे से बात करना मिलना जुलना बिलकुल पसंद नहीं करते ! कोई घर आ जाए तो कमरे से भी बाहर नहीं आते ! उन्हें मँहगे मँहगे वीडियो गेम्स और बाहर दोस्तों के साथ सैर सपाटा करने में ही आनंद आता है जो बिलकुल गलत है ! वे किसीसे आदरपूर्वक बात नहीं करते !
अतीत और भविष्य के बीच झूलते हुए वर्तमान जीना ही भूल जाते हैं
जवाब देंहटाएंसुंदर अग्रालेख
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
चिन्तन परक भूमिका के साथ सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित बहुत सुन्दर संकलन । मेरे सृजन को संकलन में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंअति उत्तम संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरे आलेख को भी स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
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