शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
बड़े बुजुर्गों ने कहा
अड़ोसी-पड़ोसियों ने कहा
आते-जाते ने कहा
माँ नहीं रही
पर मैं कैसे मान लूँ तू नहीं रही
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शायरी | फ़लसफ़ा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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तुम चुप रहोगे,
तो सबको लगेगा
कि तुम्हारे पास
कहने को कुछ नहीं है,
सब समझेंगे
कि दूसरे ही सही हैं,
जो बोल रहे हैं।
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उड़ते पत्ते, पवन सुवासित
धरती को छू-छू के आये,
माटी की सुगंध लिए साथ
हर पादप शाखा सहलायें!
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एक शब्द वो आग भड़का दे
जीवन छीन
ले या फिर से
किसी का दिल धड़का दे
नीरव को कलरव में बदले,
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत डर लगता है तुम्हें,
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात, एक से बढ़कर एक रचनाओं का संयोजन, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन। हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए ...
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