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गुरुवार, 26 सितंबर 2024

4258...वक़्त का फ़लसफ़ा भी पढ़ना था पर अंगूठा छाप रह गए हम तो...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

माँ ...

बड़े बुजुर्गों ने कहा
अड़ोसी-पड़ोसियों ने कहा
आते-जाते ने कहा
माँ नहीं रही

पर मैं कैसे मान लूँ तू नहीं रही

*****

शायरी | फ़लसफ़ा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

*****

685. बोलो

तुम चुप रहोगे,

तो सबको लगेगा

कि तुम्हारे पास

कहने को कुछ नहीं है,

सब समझेंगे

कि दूसरे ही सही हैं,

जो बोल रहे हैं।

*****

मिलन धरा का आज गगन से

उड़ते पत्ते, पवन सुवासित

धरती को छू-छू के आये,

माटी की सुगंध लिए साथ

हर पादप शाखा सहलायें!

*****

1433 रश्मि विभा त्रिपाठी 

एक शब्द वो आग भड़का दे
जीवन छीन ले या फिर से

किसी का दिल धड़का दे

नीरव को कलरव में बदले,

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


3 टिप्‍पणियां:

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