मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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शीशा है ज़िंदगी यारो,
जैसी सूरत बनाओगे
वैसी ही तस्वीर पाओगे।
जीना तो है हर हाल में
गम़ रोको हँसी की ढाल में
चुनना हो गर जीवनपथ पे
अनदेखा कर के आँसू यारों
प्यारी-सी मुस्कान उठा लो।
आज की रचनाएँ
शब्द मंत्र हैं,
उच्चरित-गुञ्जित
अंतराग्नि में आहुतियाँ देते
चलता रहे जीवन-यज्ञ!
फिर-फिर हरियाये धरा.
जीवन-गंध बाँटे पवन
विश्व-मंगल और ,
सृष्टि का नव-नवोन्मीलन!
सबसे बढ़कर आप हैं, कर देना संहार।
युद्ध नहीं यह आम है, नहीं चाहता हार ।।
भीष्म किया रणघोष है, करने को तैयार।
बिगुल बजाया कृष्ण ने, किया युद्ध स्वीकार।।
चिट्ठी : सुधियों की सौगात
फिर सिलसिलेवार,
उस पार के समाचार ।
कभी मदद की गुहार ।
याद रखने की फ़रियाद।
लौट आने की मनुहार।
व्याकुल मन की पुकार ।
विचारों का आदान-प्रदान,
अनुभव से अर्जित समाधान ।
लेखक मेरा विचित्र प्रेमी
मुझे…हाँ मुझे
गढ़कर अपने शब्दों में
नाम ज़िंदा रखेगा मेरा
तब, जब जा चुका होगा इनमें से
हर एक प्रेमी मुझसे दूर
तब, जब मैं भी नहीं रहूँगी
तब, जब कोई भी न रहेगा
तब भी जब सृजन
प्रलय में बदल जायेगा
बस प्रेम रह जायेगा
आनंद हर्षुल की कहानी हत्यारा
बेंच पर सिर झुकाए बैठे आदमी को, अपने करीब किसी के होने का आभास हुआ। वह सोच से बाहर आया या आया नींद की झपकी से बाहर, ठीक कह नहीं सकते, पर उसने अपनी आँखें खोली और उसे माली दिखा, ठीक अपने सामने-- नीचे घास पर बैठा। बैठा और एकटक देखता अपनी ओर। वह आदमी भी माली को एकटक देखने लगा। उस आदमी के चेहरे पर ‘क्या है?’ का सवाल चिपका हुआ था। साफ दिख रहा था कि माली को अपने सामने देख वह बिल्कुल भी खुश नहीं हुआ था, पर वह हड़बड़ाया भी नहीं था। वह आदमी अपनी बर्फ-सी ठंडी, लाल आँखों से माली को घूर रहा था।
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आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
शब्द मंत्र है
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
वंदन
बहुत ही सुन्दर अंक सादर
जवाब देंहटाएंशानदार अंक !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंब्लॉग साहित्य सुरभि की पोस्ट अर्जुन विषाद योग भाग - 2 को इस चर्चा में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंआपकी मेहनत को सलाम आदरणीय
बहुत शानदार अंक
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंनवरस के दो छोर हैं इस अंक में। एक छोर सहमा हुआ। शेष जीवन के सहज रंग। मेरी चिट्ठी को इस अंक में स्थान देने के लिए धन्यवाद। नमस्ते।
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