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शनिवार, 7 सितंबर 2024

4239 ...प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है

 नमस्कार


परहित : स्व उपकार
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एक बार पचास लोगों का ग्रुप किसी सेमीनार में
हिस्सा ले रहा था। सेमीनार शुरू हुए अभी कुछ
ही मिनट बीते थे कि- स्पीकर अचानक ही रुका और सभी पार्टिसिपेंट्स को गुब्बारे देते हुए बोला , ”आप सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है।” सभी ने ऐसा ही किया।
अब गुब्बारों को एक दूसरे कमरे में रख दिया गया। स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा। सारे पार्टिसिपेंट्स तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने लगे। पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था… 5 पांच मिनट बाद सभी को बाहर बुला लिया गया।
स्पीकर बोला , ” अरे! क्या हुआ , आप सभी खाली हाथ क्यों हैं ? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला ?” "नहीं ! हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया”, 
एक पार्टिसिपेंट कुछ मायूस होते हुए बोला।
“कोई बात नहीं , आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये , पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उसपर लिखा हुआ है।“, 
स्पीकर ने निर्दश दिया।
एक बार फिर सभी पार्टिसिपेंट्स कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे , और - कमरे में किसी तरह की अफरा- तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दुसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए 
और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये।
स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा ,” बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है। हर कोई अपने लिए ही जी रहा है , उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है , पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता।
मित्रों हमारा सुख दूसरों के सुख के साथ प्रतिबद्ध है। स्वार्थी मानसिकता त्याग कर दूसरों को अर्पण की गई खुशियाँ हमारी ही ख़ुशी का द्वार होती है। जब हम औरों को उनकी खुशियां देने की प्रवृति बना लेंगे, हमारी खुशियाँ हमें खोजती चली आएगी।

अब देखिए रचनाएँ..



एकदंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे ,मूसे की सवारी।।
लंबी है सूंड सुंदर, बदन विशाला।
रूप है निराला।।
नजरें मेहर की करदो....




आंध्र प्रदेश के फूल निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि आंध्र प्रदेश में फूलों की खेती हमेशा से ही एक प्रमुख स्थान रखती रही है। आंध्र प्रदेश में, ढीले फूलों की खेती वर्तमान में 54,363 एकड़ में फैली हुई है, जिससे सालाना 1.26 लाख मीट्रिक टन फूल पैदा होते हैं। कटे हुए फूलों की खेती के लिए 50 ग्रीनहाउस हैं, जिनमें से प्रत्येक एक ही फसल में 1 लाख फूल पैदा कर सकता है।




प्रेम दुनिया में
धिरे धिरे
बाजार की शक्ल
ले रहा है
प्रेम भी
कुछ इसी तरह
किया जा रहा है
लोग हर चीज को
छूकर दाम पूछते है
मन भरने पर
छोड़कर चले जाते हैं




अक्सर
कहाँ मिलता ईश्वर?
ईश्वर, तुम मत सिमट जाना
श्रावण की पार्थी में
या मंदिर के किसी लिंग में





शिक्षक संस्कृतियों  का रक्षक
कल से जुड़ भविष्य  दिखाएं,
कोमल पौधों को दे पोषण
सबल बृहत् वटवृक्ष बनाये !

आज बस
सादर वंदन

5 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री गणेश
    सुंदर अंक
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    बहुत सुन्दर अंक धन्यवाद🙏💕

    जवाब देंहटाएं
  3. "जब हम औरों को उनकी खुशियां देने की प्रवृति बना लेंगे, हमारी खुशियाँ हमें खोजती चली आएगी"। यही तो गणपति का संदेश है, वह मुदिता बाँटते चलते हैं।
    सार्थक भूमिका और सुंदर प्रस्तुति, गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ,
    'मन पाये विश्राम जहाँ को' आज के अंक में स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,
    Ganesh Chaturthi की हार्दिक शुभकामनाएं सभी को,,,

    जवाब देंहटाएं
  5. गणेश चतुर्थी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। रिद्धि सिद्धि के दांता गणपति सभी को आरोग्य व सुख समृद्धि प्रदान करें 🙏
    सुंदर रचनाओं का संकलन।
    मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार।

    जवाब देंहटाएं

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