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शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

4252...नक्षत्र ने कहा...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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जीवन भी अबूझ पहेली सी महसूस होती है  किसी पल ऐसा महसूस होता है कुछ भी सहेजने की,समेटने की जरूरत नहीं। न सेहत, न रिश्ते, न पैसा या कुछ और...
फिर अनायास एक समम ऐसा आता है जब सब कुछ खुद ब खुद सहेज लिया जाता है।
एक उम्र में सबकुछ सहेजना खासा संतुष्ट करता है, उपलब्धि-सा लगता है,
और सब पाकर भी कभी-कभी कुछ भी सहेजे जाने की,,पाने की इच्छा और ऊर्जा दोनों ही नहीं बचती।
विरक्ति का ऐसा भाव जब महसूस होता है
जो चला गया, गुजर गया, रीत गया,छूट गया  दरअसल वो आपका, आपके लिए था ही नहीं। 
परिवर्तन तो निरंतर हो रहा है पर मन स्वीकार नहीं कर पाता है और परिवर्तन को स्वीकार न कर पाने के  दुःख में मनुष्य बहुत सारा बेशकीमती समय गँवा देता हैं।
 प्रतिपल हो रहे परिवर्तन को महसूस कर, स्वीकार करना ही निराशा और हताशा के भँवर से बाहर खींचकर
जीवन  को सुख और संतोष से भर सकता है।

आज की रचनाएँ-

अगर सम्मान नहीं है एक दूसरे के लिए 
आँख उठाकर देखने की भी इच्छा नहीं
तो किसी तीसरे की यह सीख
कि भूल जाइए 
क्षमा कर दीजिए 
आप ही बड़प्पन निभा दीजिए... आग में घी ही है !
सूक्ति बोलनेवाले को अपना वर्चस्व दिखाना है
वरना सोचनेवाली बात है
कि कोई महाभारत को भुलाकर 
चलने की सलाह कैसे दे सकता है !



प्रेम सदभाव पले,साथ सब मिल चले।
जीवन का पुष्प खिले ,बीज ऐसा चाहिए।।

बो रहे बबूल सब,वृक्ष सारे काट अब।
जैसे बीज बोये जाएँ, फल वैसा खाइए।।




गुरु कृपा से ही तो हमने ,
नव ग्रहों का सार जाना ।
भू के अंतस को भी समझा, 
व्योम का विस्तार जाना ।
अनगिनत महिमा गुरु की, 
पा कृपा जीवन सँवारें ।
ज्ञान के भंडार गुरुवर, 
पथ प्रदर्शक है हमारे ।


प्रेम


प्रेम!
सांसों का मौन विलाप नहीं 
पुराने पीले पड़ चुके
 इतिहास के पंन्नों से होकर गुजरा 
एक नया विलाप भी नहीं 
तुम! 


मथुरा की गलियों में

बिहारीपुरा के पश्चिम में छत्ताबाजार को पार करके 'ताज पुरा' है। यहाँ मुग़ल बेगम ताज का आवास था। ताज बेग़म ब्रजभाषा की कृष्ण भक्त कवयित्री हुई हैं। इन्होंने वल्लभाचार्य जी के द्वितीय पुत्र गो. विट्ठलनाथ जी से दीक्षा ली थी। इन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति से युक्त बहुतसे पद और छंद लिखे हैं। इनकी यह पंक्ति "हों तौ मुग़लानी हिंदुआनी बन रहों गी मैं" बहुत प्रसिद्ध हुई है। कहा जाता है, श्रीनाथजी के समक्ष होली की धमार गाते गाते ताज बेगम ने अपनी देह छोड़ी थी। महावन में कविवर रसखान की समाधि के निकट ही, एक स्थान पर इनकी भी समाधि बनी हुई है।


नक्षत्र ने कहा


तुम्हारे अंदर दाखिल होते वक्त मुझे पता चला कि जीवन में प्लस और माइनस के अलावा भी एक चुम्बकीय क्षेत्र होता है जिसकी सघनता में दिशाबोध तय करना सबसे मुश्किल काम होता है तुमसे जुड़कर मैं समय का बोध भूल गई थी संयोगवश ऊर्जा का एक ऐसा परिपथ बना कि यात्रा युगबोध से मुक्त हो गई नि:सन्देह वो कुछ पल मेरे जीवन के सबसे अधिक चैतन्य क्षण है जिनमें मैं पूरी तरह होश में थी।



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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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1 टिप्पणी:

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