।।प्रातःवंदन।।
"कुछ अहले-ज़ुबां आए तो हैं देने गवाही,
आँखों से मगर खौफ़ का साया न गया है,
ये रात है नाराज़ जो देखा कि हवा से,
दो-एक चरागों को बुझाया न गया है.."
गौतम राजरिशी
बुधवारिय प्रस्तुति की छटा और..जूते का भ्रम..✍️
जूते
उनके जूते
बहुत ताक़तवर हैं
उसके फीते
सत्ता और रूपयों से
✨️
बदले अपनी #तकदीर ।
करने रोजगार की पढ़ाई,
तकनीकी शिक्षा से रिश्ता जोड़े भाई ,
तकनीक ज्ञान और कौशल पाकर,
बदले ज्ञान की तासीर ।
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अश्वमेघ सा विचरण करता यह उच्छृंखल मन मयूर दर्पण नाचे मेघों साथ l
खोल जटा रुद्र हारा सा रूप त्रिनेत्र मल्हार सप्तरंगी बाण धुनों रंग जमाय ll
✨️
हमने वो दौर भी देखा है.......
हालातों के हाल तत्काल न मिला करते थे।
तार के नाम से दिलो जान हिला करते थे।
15 पैसे का पोस्टकार्ड हफ्तों घूमा करता था।
'बैरंग' होता था कभी गुमा करता था।
आवाजें आती थीं घरों से पुराने गानों की।
आवभगत अच्छी होती थी आने वाले मेहमानों की।
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
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जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंक धन्यवाद
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