साहित्य में समाज की विविधता, जीवन- दृष्टि और लोककलाओं का संरक्षण होता है। साहित्य समाज को स्वस्थ कलात्मक ज्ञानवर्धक मनोरंजन दृष्टिकोण प्रदान करता है जिससे सामाजिक संस्कारों का परिष्कार होता है। रचनाएँ समाज की भावना, भक्ति, समाजसेवा के माध्यम से मूल्यों के संदर्भ में मनुष्य हित की सर्वोच्चता का अनुसंधान करती हैं। हिन्दी लिखने पढ़ने वालों के हिन्दी महज एक दिवस नहीं
होती बल्कि आत्मा को उदात्त करने में, मनुष्य के गुणों का परिष्कार करने में, उसे आनंद की अवस्था में पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साहित्य अतीत से जीवन मूल्यों को लेकर आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने में सेतु की तरह है।
मुझे लगता है
वर्तमान समय में हिंदी अशुद्धियों और संवाद में बढ़ते 'भदेसपन' से जूझ रही है।
साधारण वाक्यों में मात्राओं की त्रुटियाँ ,लिंग और वचन की गलतियों को सहज रूप से स्वीकार किया जाना हिंदी के भविष्य के लिए घातक है। हम सभी की जिम्मेदारी है गलतियों को इंगित करें।
दूसरी बड़ी समस्या है 'भदेसपन' यानि भाषा का
बिगड़ता स्वरूप । हिंदी फिल्म के संवाद हो, गीत हो या किसी हिंदी राष्ट्रीय समाचार चैनल का खुला बहस मंच सभी जगह धड़ल्ले से अपशब्दों के प्रयोग ने हिंदी भाषा का चेहरा बिगाड़कर रख दिया है।
बहुत सुंदर और
जवाब देंहटाएंसारगर्भित रचनाएं
आभार
वंदन, अभिनंदन
सारगर्भित और बहुत कुछ विचार करने को प्रेरित करती भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं का चयन आज के अंक को विशेष बना रहा है, बधाई व आभार श्वेता जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंस्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
सादर