शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा
रचनाएँ-
न्याय बिके बाजारों में जब,
पीड़ित घिसता जूते रोज।
अंधा है कानून यहाँ पर,
खोता जाता उसका ओज।।
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हैरानी होगी परिणाम अनुकूल न निकलने पर,
परेशान होने से भी तो आराम नहीं मिलता।
राहों में बहुत मिलेंगे जो मन को भाएंगे।
केवल मन भाने से भाव नहीं मिलता।
जय जय
जय गणपति गणनायक। गणपति वंदना। गणेश जी की आरती
सिद्धि-बुद्धि-सेवित, सुषमानिधि,
नीति-प्रीति पालक, वरदायक।।
शंकर-सुवन, भुवन-भय-वारण,
वारन-वदन, विनायक-नायक।
मोदक प्रिय, निज-जन-मन-मोदक, गिरि-तनया-मन-मोद-प्रदायक।।
अमल, अकल अरु
सकल-कलानिधि, ऋद्धि-सिद्धिदायक, सुरनायक।
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असीम आसमान और निस्सीम समुन्दर की तरह
अनन्त तक चली जाती है आवाज़,
रखी रहती है गुदगुदी बनकर,
मन की आवाज़ वही गुनगुनाहट है
जो तुम कभी-कभी अनचाहे अपने होंठों पर ले आते हो
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औरतों के प्रति जब कभी पुरानी धारणा की मुठभेड़
आधुनिकता से होती है, तो भारतीय मन-मनुष्य और समाज को पुरुषार्थ के उजाले में देखने-दिखाने के लिए
मुड़ जाता है. पर हमारी परंपरा में पुरुषार्थ की साधना वही कर सकता है, जो स्वतंत्र हो.
हिंदी साहित्य के शेक्सपीयर कहे जाने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार भारतेंदु
हरिश्चंद्र की ज़िंदगी में मल्लिका अकेली स्त्री नहीं थीं, जिनके साथ उनके
संबंध थे, लेकिन मल्लिका का उनके जीवन में विशेष स्थान था.
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
अप्रतिम अंक
जवाब देंहटाएंआभार वंदन
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार
जवाब देंहटाएं