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शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

3287...लीक से हटकर भी सोचा करो

शुक्रवारीय अंक में 
मैं श्वेता आप सभी का 
स्नेहिल अभिवादन करती हूँ।
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
शब्द मात्र की साधारण अभिव्यक्ति का साधन नहीं, भावनाओं का विशाल समुंदर होता है जिसकी गहराई में उतरकर ही विचारों के बेशकीमती रत्नों की थाह मिलती है।
शब्द मन से मन तक पहुँचने का सहज,सरल माध्यम है किंतु इसके लिए अभिव्यक्त शब्दों के अर्थ समझ पाना आवश्यक है।

 मौन हृदय के आसमान पर
जब भावों के उड़ते पाखी,
चुगते एक-एक मोती मन का 
फिर कूजते बनकर शब्द।

शब्द ब्रह्म को मेरा प्रणाम



उनके कथ्य को मेरा प्रणाम !
उनके लक्षणों को मेरा प्रणाम !

उनके लक्ष्य को मेरा प्रणाम !
उनके शिल्प को मेरा प्रणाम !
मुखौटाधारियों की नीयत समझने के लिए सजगता आवश्यक है-

मछलियाँ खुली आँखों से निरीह बेफ्रिक्रनींद सोती हैं,

बगुले सोने का अभिनय करके झपटकर शिकार पकड़ते हैं ।




दान धर्म की बातें थोथी
दाँत दिखाने वाले दूजे
छोड़ छाड़ सब गोरखधंधा
देव मानकर उन को पूजे
शुद्धिकरण कर तन का गंगा
मैल मिटा मन का कब पाई।।

बुजुर्ग माता-पिता के लिए क्या कहें-
जिनकी दुआओं से हासिल है बच्चों को
शोहरत और मकाम,
उनको वृद्धाश्रम का उपहार न दीजिए
आइये न बनाये हम उनके चरणों में
 चारों धाम।


वृद्धाश्रम नहीं खोलूंगी बल्कि मैं किसी भी मां-बाप को उसके दो बेटे से अलग नहीं होने दुंगी।मैं ऐसा काम करूंगी कि लोग अपने मां बाप को वृद्धाश्रम भेजने के बारे में सोचें भी ना, मैं लोगों की नजरिया बदलने का काम करूंगी! लोगों को जागरूक करूंगी।लोगों के मन में अपने मां-बाप के लिए प्रेम का पौधा लगाऊंगी और खुद ही सींचुंगी कि हमेशा हरा भरा रहे और जिससे मैं अपने समाज को वृद्धाश्रम मुक्त बना सकूं।

बात स्थान विशेष की नहीं न ही विशेष धर्म से संबंधित यह समस्या है
वस्त्र जो प्रतीक हैं गर्वित संस्कृति और इतिहास के
उसकी आड़ में गोरखधंधा धर्म सम्मान में ह्रास के


वस्त्र - वस्त्र का अंतर है साहब । यह लोग भगवा पहन कर हम लोगों से भी गए बीते हैं। हम लोग कभी जबरदस्ती नहीं करते परंतु इन लोगों के द्वारा कई लोगों से बहुत बदतमीजी की जाती है। परंतु हम लोग ही तिरस्कार पाते हैं। नाम पता पूछने पर जौनपुर निवासी...।
और चलते-चलते एक शानदार अभिव्यक्ति-
खुरपी गाने को तत्पर है गीत सामाजिक बदलाव के लिए
जड़ों की गुड़ाई आवश्यक है पीढियों के घनी छाँव के लिए।


बोल - बोल कर, हँसुए का ब्याह कराते हो और मेरा गीत गाते हो। अरे कभी हमारा भी तो ब्याह करा दो और हँसुए का गीत गा दो। मगर ऐसा करोगे नहीं आपलोग। आप इंसान लोगों को तो बस एक ही लीक पर चलने की आदत है। अरे कभी लीक से हट कर भी सोचा करो आप लोग।"

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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।

14 टिप्‍पणियां:

  1. मौन हृदय के आसमान पर
    जब भावों के उड़ते पाखी,
    चुगते एक-एक मोती मन का
    फिर कूजते बनकर शब्द।
    शानदार अंक..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. विविधतापूर्ण और सारगर्भित रचनाओं से परिपूर्ण अंक । सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 👏💐

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय श्वेता
    यूँ तो शब्द अभिव्यक्ति का ही माध्यम होते हैं चाहे वो अभिव्यक्ति जगजाहिर हो या मन ही मन हो , इस अभिव्यक्ति के सफर पर तुम्हारे साथ चलते हुए ,शब्द ब्रह्म को प्रणाम करते हुए पहुंच ही तो गए बनारस के घाट पर जहाँ छोटे छोटे बच्चे धर्म के पाखंड में लिप्त दिखे और भीख मांगने के नए तरीके से अवगत हुए ,वहां से निकले ही थे कि सोच का नया नज़रिया लिए मनीषा खड़ी दिखयीं जो अलख जगाना चाहती हैं कि वृद्धाश्रम की कभी किसी को ज़रूरत न पड़े , इस पर विचार करते थोड़ा आगे बढ़े तो सफेद वस्त्र धारण किये बगुले भी दिख गए जो जनता रूपी मछलियों का शिकार करने को तत्पर थे । और इन सबसे अप्रभावित खुरपी से मुलाकात हुई तो वो इंसान की फितरत से बेज़ार हो शिकायतों का पुलिंदा लिए विफ़र रही थी । उसकी व्यथा कथा सुन अब अपने घर वापस आ सब पर मनन चिंतन हो रहा है ।
    बेहतरीन संयोजन और प्रस्तुति करण ।
    सस्नेह ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. क्या बात है! कथ्यों को कितनी सुन्दरता से एकसूत्र में पिरोया है। यदि इजाजत हो तो शब्दों की इस जादूगरी की तारीफ में फिर से अतिश्योक्तियों की कतार लगा दूँ? इस सुन्दर प्रस्तुति में चार से ज्यादा ही चाँद की तरह.....

      हटाएं
    2. अमृता जी ,
      यह लिख कर अतिशयोक्ति तो हो गयी ।।
      आभार । 🙏🙏🙏

      हटाएं
    3. जी दी कोई अतिशियोक्ति नहीं कह रही अमृता जी। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा प्रस्तुति में बहुत सारे रंग भरकर उसे ज्यादा सुंदर बना देती है।
      स्नेह मिलता रहे दी।

      प्रणाम
      सादरः

      हटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. समस्त सम्माननीय, शब्द ब्रह्म में लीन चर्चाकारों जैसे बेशकीमती रत्नों को भी मेरा प्रणाम! प्रतिदिन आनन्दवर्धन के लिए भी हार्दिक आभार! चरैवेति-चरैवेति....

      हटाएं
  5. इन खूबसूरत रचनाओं के साथ मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद
    सभी अंक बहुत ही खूबसूरत व उम्दा है बनारस में धर्म का धंधा बहुत ही बेहतरीन है सभी अंक पढ़ने योग्य है!
    सादर...
    आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. भूमिका शानदार पंक्तियों से आगे बढ़ती हर रचना पर रचना में निहित भावों पर सुंदर प्रतिपंक्तियों से स्वागत करता शब्द सामर्थ्य ।
    सुंदर अतिसुंदर अंक ।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई, मेरी रचना को पांच लिंक पर प्रस्तुत करने के लिए हृदय से आभार आपका श्वेता।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  7. जी ! नमन संग आभार आपका .. मेरी इस सतही बतकही को एक स्तरीय मंच की अपनी विशेष प्रस्तुति में अन्य पारंगत रचनाकारों की पंगत में स्थान प्रदान करने के लिए ...
    प्रस्तुति की अनूठी भूमिका के साथ-साथ हर रचना पर की गयी टिप्पणियाँ ध्यानाकर्षित करती हैं। विशेषकर ...
    "मछलियाँ खुली आँखों से निरीह बेफ्रिक्रनींद सोती हैं,
    बगुले सोने का अभिनय करके झपटकर शिकार पकड़ते हैं।"
    और
    "खुरपी गाने को तत्पर है गीत सामाजिक बदलाव के लिए
    जड़ों की गुड़ाई आवश्यक है पीढियों के घनी छाँव के लिए।"
    भूमिका में आपके द्वारा शब्दों के महिमामंडन पर अनायास बिहारी लाल जी याद आ जाते हैं -
    "कहति नटति रीझति मिलति खिलति लजि जात।
    भरे भौन में होत है, नैनन ही सों बात॥" .. बस यूँ ही ...

    जवाब देंहटाएं

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