सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
महान संत कबीर साहब का ग़ज़ल शैली का अंदाज़ पढ़िए-
"हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या?
रहें आज़ाद या जग से,हमन दुनिया से यारी क्या?"
-कबीर
अब पढ़िए आज की पाँच चुनिंदा रचनाएँ-
कोकिला कूजित मधुर स्वर
मधुकरी मकरंद मोले
प्रीत पुलकित है पपीहा
शंखपुष्पी शीश डोले
शीत के शीतल करों में
सूर्य के स्वर्णिम उजेरे।।
युद्ध नहीं चाहती मां
युद्ध नहीं चाहता पिता
युद्ध नहीं चाहते नाना-नानी
युद्ध नहीं चाहते दादा-दादी
युद्ध नहीं चाहते बच्चे
फिर कौन चाहता है युद्ध?
वे जिन्हें नहीं होना पड़ता अनाथ
न बनना पड़ता है शरणार्थी
और न नहाना पड़ता है रक्त से
समाज
को आईना दिखाती हुई नई कविता-फटा जूता
फटे जूते के छेद से
समाज करता है
आकलन,
किसी की प्रतिष्ठा,
किसी के रुतबे का,
और उस मोची ने
सिल दिया उस
फटे जूते को,
और बचा ली
किसी की
इज़्ज़त।
नई किताब-वह चिड़िया क्या गाती होगी
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
आभार..
सादर..
सुप्रभात बेहतरीन अंक।मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशानदार..
जवाब देंहटाएंसंत कबीर साहेब को नमन
सादर..
बेहतरीन हलचल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर सूत्रों से संकलित हलचल के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंहर सूत्र रोचक और पठनीय दिख रहा है, अभी दो रचनाएँ पढ़ीं सभी पर जरूर जाऊंगी आदरणीय सर । आपके श्रमसाध्य कार्य को नमन और वंदन 💐🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंभूमिका में कबीरदास जी का एक अलहदा रूप ,
जवाब देंहटाएंशानदार अंक, सुंदर लिंक्स ।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
रवीन्द्र सिंह यादव जी, मेरी कविता को "पांच लिंको के आनंद" में स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार 🌷🙏🌷- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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