हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
बावन पत्तों को फेटना, चौसठ खानों में उलझना, उलझे रिश्तों को सुलझाना
कभी आसान नहीं लगा समझना वक्त और नियति के...
मेहनत और विश्वास से हम भी होंगे बड़े,
पदक जीतकर सबसे आगे होंगे खड़े.
पढ़ाई के साथ-साथ खेल भी जरूरी है,
दोनों आपस में जुडी हुई एक कड़ी है.
लहू के आग को अब जलाना है मुझे,
पूरी दुनिया को कुछ करके दिखाना है मुझे।
जितने वालें हमेशा कुछ अलग नहीं करते
बल्कि वही चीज वो अलग तरीके से करते हैं।
अपने से दूर, अपने मन से दूर,
न जाने कब परायी हो गयी
चहकना भूल गयी, उड़ना भूल गयी ,
पिंजड़े में बैठी, मैना के जैसी,
आसमान से क्यों लड़ाई हो गयी ?
वो लंगडी़-टांग का खेल
नियंत्रण सिखाता, बचपन बढ़ाता
काश !लंगड़ी-टांग का खेल वापस आ जाते।
वो आंख -मिचौली का खेल
आत्म-शुद्धि,बल-बुद्धि,भाईचारा बढ़ाता
काश!आंख-मिचौली का खेल वापस आ जाते
हर कोई तेरा अपना ना कोई गैर होगा
नित बहता एक रौ में
जीवन के साथ रहता
तुझमें जो भी ये मैं है
वो ही है तेरा दुश्मन
अहं भी वही तो बस
बहम भी वही है।
सादर नमन..
जवाब देंहटाएंएक नया खेला
टूलकिट भी नया
लहू के आग को अब जलाना है मुझे,
पूरी दुनिया को कुछ करके दिखाना है मुझे
एक बरसात तो निकल ली
दूसरी बरसात अभी शुरू होना बाकी है..
सादर
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंखेलों को समर्पित बहुत ही सुंदर, सार्थक रचनाओं का अंक, हर रचना अर्थपूर्ण और पठनीय👌💐
सुंदर रचनाओं से परिपूर्ण अंक।
जवाब देंहटाएंविषय आधारित बेहतरीन संकलन दी।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अच्छी हैं।
प्रणाम दी
सादर।
सादर प्रणाम🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
बहुत-बहुत धन्यवाद जी
मेरी रचना को "पांच लिंको के आनंद" में स्थान देने के लिए बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन संकलन
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