शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशालता सक्सेना जी की रचना से-
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िरहूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
ऋतु वासंती
मोहक हवा चली
आसमान में
प्रभू मै जानता हूं, आपने ही उसे गौ बनने की प्रेरणा दी होगी, मेरी आपसे याचना है कि उसे कम से कम मरकही गौ ही बना दीजिये। उम्र के इस मोड पर मै अपनी ओरीजिनल पत्नी को खोने का दुख अब और सहन नहीं कर सकता।
रंगों को चेहरे पर मलता
स्याह आदमी
पूरा जीवन
कुछ नहीं खोजता
केवल
अपने आप को
भीड़ में टिमटिमाता
पाने की जिद में
भागता रहता है
कभी कनखियों से दर्पण मैं देखूँ ऐसे
देखूँ दर्पण मैं, दिखती छवि तेरी जैसे
शरम के मारे मेरा खुद से ही शर्माना
ये बारिश का मौसम लगता बड़ा सुहाना।।
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंऋतु वासंती
मोहक हवा चली
आसमान में
आज के अंक मे धार है
आभार
सादर..
खूबसूरत संकलन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक,सुंदर और विविधतापूर्ण संकलन 👌👌
मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन,मेरी हार्दिक शुभकामनाएं💐💐
बहुत आभार आपका... मेरी रचना को मान देने के लिए साधुवाद...।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
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