पाँच लिंकों के आनंद के साथ हाज़िर हूँ फिर एक बार , आपकी ही संगीता स्वरुप !
देखते देखते इस वर्ष का एक महीना गुज़र गया .... , मतलब कि वक़्त रोके कब रुका है ..... शिशिर ऋतु जा रही है और बसंत देहरी पर खड़ा आगमन के इंतज़ार में है .... लेकिन अभी ब्लॉग जगत में बसंत नहीं छाया है , मतलब कि कुछ नयी रचनाओं ने बसंत का स्वागत नहीं किया है .... जब बसंत की बात सोचती हूँ तो महसूस होता है कि क्या सच ही कुछ ऐसा है जो बासंती हो ? मन कह उठता है कि ......
मेरे इस शहर में
बसंत नहीं आता ,
न गमकती
बयार चलती है
और न ही
महकते फूल
खिलते हैं
ये तो हुई मेरे मन की बात , अब आपको बताती हूँ कि कैसे ये समाज और समाज के ठेकेदार बसंत न आने देने के लिए क्या कर गुज़रते हैं और बने रहते हैं --
बचपन की किलकारियाँ
नदी की कलकल
चिड़ियों का चहकना
शोर लगता है जिन्हें ....
अब आप ही बताइए कि भला ऐसे में कैसे लिखी जायेंगी कवितायेँ बसंत पर ....और ऐसे माहौल को देखते हुए हमारी एक ब्लॉगर चिंतित होते हुए पुकार उठी हैं कि चित्रकार अपने चित्र को बचाने के लिए आ जाओ ....
अरे ओ चित्रकार
कौन है तू ,कभी देखा नहीं
रहता है कहाँ तू ?
कैसे भरता है रंग इस जगत में
कहाँ से लाता है इतने ?
ये हरे भरे पर्वत ,ये नदियाँ ,ये झरनें
अब ये चिंतन मनन तो हमेशा चलता रहेगा ...... लेकिन ज़रूरी है कि जीवन में संतुलन बना कर रखें ... और जो कुछ ईश्वर प्रदत्त है उसका उपभोग भी करते रहें .... इसी आशय से ले आई हूँ एक लेख --
लेख लिंक पर ही जा कर पढ़ें ...... क्यों कि मजबूत ताला है मुझसे खुला नहीं ... यूँ तो ऊपर भी एक ब्लॉग का ताला नहीं खुला ,लेकिन कविता की पंक्तियाँ टाइप करना सरल था सो कर दीं.... ब्लॉगर्स से निवेदन कि ऐसा ताला न लगायें कि चर्चाकार आपकी पोस्ट न ले पायें .... बहुत मुश्किल हो जाता है और बहुत कोशिश करके जब सफलता नहीं मिलती तो सच ही मन ही मन श्राप सा दे देने का मन हो आता है .....
अब केवल ये श्राप मेरे मन की उपज नहीं है ...... एक सर्जक भी क्रोधित हो न जाने क्या क्या सोच लेता है और वो तो स्वर्ग और नर्क तक का चक्कर काट देवताओं से प्रेरित हो न जाने क्या क्या लिख डालता है ...एक बानगी देखिये ...
कभी-कभी इस सर्जक का क्रोध सातवें आसमान से भी बहुत-बहुत ऊपर चला जाता है। शायद बहुत-बहुत ऊपर ही कोई स्वर्ग या नर्क जैसी जगह है, बिल्कुल वहीं पर। हालाँकि उस जगह को यह सर्जक कभी यूँ ही तफरीह के लिए जाकर अपनी आँखों से नहीं देखा है। वह इसका कारण सोचता है तो उसके समझ में यही बात आती है कि वह दिन-रात अपने सृजन-साधना में इतना ज्यादा व्यस्त रहता है कि वहाँ जाने का समय ही नहीं निकाल पाया है। वर्ना वह भला रुकने वाला था।
मैं तो बस यही कहूँगी कि भई ये श्राप की बात छोड़ कर कुछ चिन्तन मनन करें और थोडा ध्यान लगायें कि श्री कृष्ण ने क्या उपदेश दिए ...... और सोचिये कि गीता सुनते या पढ़ते क्या क्या भाव मन में आते हैं जो एक प्रश्न बन मन में घुमड़ते रहते हैं ...... तो ज़रा उत्तर देने पहुँचिये ....
दो-चार दिन पहले सम्पूर्ण गीता को सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वैसे तो कौन नहीं जानता कि गीता का मुख्य सार है- आत्मा अजर-अमर, अविनाशी है तो मृत्यु का शोक कैसा, मृत्यु आत्मा के नये वस्त्र बदलने की प्रक्रिया मात्र है और दूसरा निष्काम कर्मयोगी बनो अर्थात कर्म करो फल की चिंता नहीं करो।
प्रत्येक व्यक्ति अर्थात आत्मा बचपन से ही ये ज्ञान सुन रहा है या यूं कहें कि कई जन्मों से सुन रहा है फिर भी इसे आत्मसात नहीं कर पाता। फिर क्या मरणासन्न स्थिति में गीता का ज्ञान सुन कर किसी को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है अर्थात किसी को जीवन का ज्ञान मिल सकता है ?
अगर आपको उत्तर सूझ गया हो तो बहुत अच्छा . यूँ कृष्ण के दिए उपदेशों पर न जाने कितने ग्रन्थ लिखे गए और उन पर न जाने कितने शोध हुए लेकिन क्या कृष्ण कभी राधा के प्रेम और उसकी विरह वेदना को पढ़ पाए ? वैसे तो ये प्रश्न अनुचित है ...क्यों कि राधा के बिना कृष्ण नहीं ..... फिर भी राधा के मन की बात को अपने शब्द दिए हैं इस रचना में ........
न भाये कछु राग रंग,
न जिया लगे कछु काज सखि।
मोती टपके अँचरा भीगे,
बिन मौसम बरसात सखि।
हम यहाँ राधा की पीड़ा से प्रभावित हुए बैठे हैं .... जबकि सारी दुनिया ओमीक्रोंन वायरस से जूझ रही है ..... और इसकी सही - सही पहचान हो सके उसके लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार करी है किट ...
नई दिल्ली, 24 जनवरी (इंडिया साइंस वायर): कोरोना वायरस उत्परिवर्तित (Mutate) होकर निरंतर अपना रूप बदल रहा है। ऐसे में, वायरस के नये उभरते रूपों की पहचान और उपचार चुनौतीपूर्ण हो गया है। ऑमिक्रॉन जैसे कुछ रूपांतरित कोरोना वायरस के संक्रमण के मध्यम लक्षण देखे गए हैं, और इसके संक्रमण के कारण होने वाली मौतों के मामले भी कम हैं। लेकिन, कोरोना का ऑमिक्रॉन संस्करण दुनिया भर में जंगल की आग की तरह बेहद तेजी से फैल रहा है।
इस जानकारी के साथ हमें गर्व है अपने देश के वैज्ञानिकों पर ...... और गर्व है ऐसे रचनाकारों पर जो हमेशा ही आशावादी रह कर प्रेरित करते हैं संघर्षों से जूझने के लिए ....
है अंधियारी रात बहुत,
अब तुमको ही तम हरना होगा...
हवा का रुख भी है तूफानी, फिर भी
मेरे दीप तुम्हें जलना होगा !!!
और इस रचना के साथ ही मन के निराशावादी विचार कहीं तिरोहित हो जाते हैं और जो बसंत नहीं आता मेरे शहर ....... वो भी कहीं न कहीं दिखने लगता है ....
आवो सखी आई बहार बसंत
चहूं और नव पल्लव फूले
कलियां चटकी
मौसम में मधुमास सखी री......
आज की प्रस्तुति बासंती न हो कर भी कुछ कुछ बासंती रंग में रंगी है ....... आशा है आपको ये रंग पसंद आया होगा ...... फिर मिलते हैं अगली बार कुछ नए रंगों को लेकर .... तब तक के लिए इंतज़ार करें ......
नमस्कार
संगीता स्वरुप ...
ताला नहीं खुला?
जवाब देंहटाएंसामान्य सी बात है
बातों की भी हद होती है
एक प्रख्यात कवि जो अब
इहलोक में नहीं हैं..
एक रचना पढ़ना चाहती थी
ब्लॉग पर गई..क्लिक किए
एक संदेश उभर कर आया....
कृपया ओटीपी बताएँ..
अब आप बताइए आदरणीय हरिवंशराय बच्चन से
कईसे ओटीपी मांग कर लाएँ..
क्या बच्चन जी ने ओटीपी के लायक भी रचना
लिखते थे?
सादर नमन
आदरणीय प्रतिभा दीदी के ब्लॉग मे ताला नहीं न है
जवाब देंहटाएंअगर मीठा-मीठावाले अपना कल्याण चाहते हैं तो जीवन में कड़ुआहटों का भी स्वाद लेना सीख लें .
मिर्ची की आदत डाल लें - शुभस्यशीघ्रम् !
प्रिय यशोदा ,
हटाएंलगता है हर जगह घूम आयी हैं आप । प्रतिभा जी के ब्लॉग से कुछ कॉपी नहीं किया जा रहा था । इसीलिए ताला लगने की बात कही ।
बाकी मिर्ची तो सबको लग जाती , आदत डालें या न डालें ।😆😆😆😆
प्रिय यशोदा ,
हटाएंतुम्हारे लिखने पर वापस प्रतिभाजी के ब्लॉग पर गयी । उनसे क्षमा मांगते हुए कि कल नहीं कर पा रही थी कॉपी । अभी तो सेलेक्ट हो रहा है ।
और वो मेरी आदरणीय हैं तो कभी कुछ गलत नहीं कहना चाहूँगी , यूँ कुछ गलत कह भी दिया तो वो मुझे हमेशा माफ कर देंगी ,ये विश्वास है ।
अच्छा हुआ तुमने यहाँ इंगित कर दिया ।
बहुत बहुत आभार ।
आभार दीदी
हटाएंताला आज अक ब्लॉग में है
रीडिंग लिस्ट से कापी की हूँ
निवेदिता दिनकर दी का ब्लॉग है
प्रस्तुति में हरदम डेस्कटॉप पर ही बनाती हूँ
सभी अक्षर एक समान बनते हैं
मोबाईल स्क्रीन पर माथा झुकाना पड़ता है
सादर नमन
"बसंत नहीं आता" से "आयो बसंत" तक का सफर कई पड़ावों से गुजराता राहों से दर्शनीय स्थलों की थाती साथ लिए
जवाब देंहटाएंअति सुहाना रहा संगीता जी।
आपकी श्रमसाध्य श्र्लाघ्य प्रस्तुति आनंदित कर रही हैं।
सभी पड़ाव अप्रतिम रहे।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
एक पुराने बसंत को फिर से महकाने के लिए हृदय से आभार।
मेरी रचना को इस शानदार प्रस्तुति में स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका।
सादर सस्नेह
कुसुम जी ,
हटाएंबसंत न आने से बसंत आने तक के सभी पड़ावों पर आपके हस्ताक्षर की दस्तक मिली । प्रस्तुति पसंद करने के लिए हार्दिक आभार ।
शुरुआत एक शिकायत या यूं कहें चिन्तन से कि-"मेरे इस शहर में,बसंत नहीं आता..जो सचमुच एक अत्यंत विचारणीय विषय है, और फिर प्रेम, ज्ञान का रसपान करते हुए, ये सन्देश कि- शहर में बसंत नहीं आया तो क्या हुआ दिलों में बसंती रंग भर लो.. वाकई लाजवाब सफर रहा। और इस सफर में मुझे भी सहयात्री बनाने के लिए हृदयतल से धन्यवाद दी। बहुत ही सराहनीय प्रस्तुति, सभी लिंक्स पर जाने की कोशिश करूंगी, हार्दिक आभार एवं नमन आपको
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी ,
हटाएंयूँ तो हम ब्लॉग के ज़रिए सहयात्री ही हैं , प्रस्तुति की सराहना के लिए आभार । वैसे बसंत ने तो आना है ,आ कर चुपचाप चला भी जाएगा , वक़्त भला कब रुका है ।
बहुत सुन्दर वसंत की बयार लिए हलचल प्रस्तुति अंक
जवाब देंहटाएंकविता जी ,
हटाएंहलचल पसंद करने के लिए आभार ।
बसंत की सुंदर सुगबुगाहट लिए सुंदर रचनाओं का श्रमसाध्य संकलन । कुछ रचनाओं तक गई कुछ पर जाना है ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई ।
आपको मेरा सादर नमन और वंदन 👏👏💐💐
प्रिय जिज्ञासा ,
हटाएंरचनाओं तक पहुँचाना ही ध्येय है । तहेदिल से शुक्रिया ।
हिय बगिया में तो बसंत हिलोरें मारने लगा और कलियाँ चटकने लगी। साथ ही मन मलंग हुआ और भाव-पुष्प खिल उठा। जब यहाँ रुत इतनी सुहानी हो तो बसंत कहीं भी हो आना ही होगा। कारण प्रस्तुत सर्जक वरदान ही है हम सबों के लिए। हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंअमृता जी ,
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया आते आते बसंत ही बसंत खिल गया । उस सर्जक का क्रोध कुछ शांत होता दिख रहा है , बस यूं ही मन मलंग रहना चाहिए ।
मेरी रचना पर आपकी और प्रतिभाजी की 9 साल पहले की टिप्पणी भी सहेज रखी है । सच ही कहा कि उस समय के कितने साथी छूट गए , कुछ हैं तो फेसबुक पर । उस समय की टिप्पणियों से गुजरते पुराना ज़माना आँखों के सामने आ जाता है ।
आपकी वो रचना ढूँढना चाह रही थी जिसे मनोज जी ने आँच पर चढ़ाया था । यदि हो सके तो लिंक दीजियेगा ।
हृदय तल से आभार ।
आपने याद दिलाया तो... सच मे आँच की लहक में फिर से गर्माना हुआ अन्यथा पूर्व के सृजन को शायद कभी देखना होता है। अच्छी आलोचना हुई थी इस रचना की आँच पर। लेकिन अभी देखा कि हमने गलतियों को सुधारा भी नहीं है। उन दिनों की मुस्कान फिर से देने के लिए बस हृदय झुककर आभारी है आपका ।
जवाब देंहटाएंhttps://amritatanmay.blogspot.com/2012/08/blog-post_10.html?m=1
बहुत आभार अमृता जी ,
हटाएंउन दिनों आलोचना भी बहुत बड़ी उपलब्धि हुआ करती थी क्योंकि आँच पर कोई कोई रचना ही जगह पाती थी । इस पोस्ट का लिंक सहेज लिया है । वैसे ब्लॉग पर पुरानी पोस्ट से ज्यादा टिप्पणियाँ पढ़ने का आनंद आता है । पुराने साथियों से मिलना हो जाता है ।
बसंत और पतझड़ से होती हुई चर्चा ताले और कोरोना तक पहुंची :) । बड़े परिश्रम का काम है। ऐसे म्मइन ताला न खुले तो श्राप देने का मन कर ही जाता है।
जवाब देंहटाएंप्रिय शिखा
हटाएंबसंत तो कभी भूल नहीं सकती वो भी पंचमी ।
बाकी आज कल कोरोना दिल - दिमाग पर छाया हुआ है ।। और ये हमारी वाणी हैं जो ताला लगाए बैठी हैं , इनको तो कुछ कह भी नहीं सकते । वैसे तो किसी को भी नहीं कह सकते ,सब अपने ही तो हैं ,बस झुँझला कर राह जाते हैं ।😄😄😄
बसंती बयारों संग हम भी बह चले.. श्रमसाध्य प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाइयाँ।
शुक्रिया पम्मी , बस सब साथ बहते रहें ,और क्या चाहिए ।
हटाएंएक से बढ़कर एक लिंको से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति और वही मजेदार तानाबाना जो आप हमेशा बुनती हैं...शहरों में बसंत आये ना आये हलचल के मंच पर बसंत की बहार आयी है..सच में आपकी प्रस्तुति का जबाब नहीं..🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
सुधा जी ,
हटाएंआपको लिंक्स पसंद आये और आप इस ताने बाने में कहीं उलझती नज़र नहीं आतीं । हलचल पर बसंत हो न हो लेकिन आपकी प्रतिक्रिया बासंती हो रही है ।
आभार ।
गोया ये तो वही बात हुई
जवाब देंहटाएंबसंत न आया अबतक तो कान पकड़ ले आओ:))
प्रिय दी,
अति मनमोहक अंक जाने कितनी मेहनत लगी होगी लिंक्स ढूँढने में... सबसे पहले तो आपके इस श्रम के लिए साधुवाद।
सभी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं-
पतझड़ के पहरेदार कहते हैं
या सर्जक का श्राप है कि
अब बसंत नहीं आता
राधा की पीड़ा उकेरता
चित्रकार
गीता ज्ञान सत्य या असत्य नहीं जानता
मन कहता है कि
मेरे दीप तुम्हें जलना होगा
शुभस्य शीघ्रम्
ओमीक्रोन वायरस खत्म हो तो
प्रकृति कहेगी
आयो बसंत बहार...।
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मेरी पुरानी रचना जिसे मैं भूल चुकी थी उसे दोहराने के लिए अत्यंत आभारी हूँ दी।
पाक्षिक सोमवारीय विशेषांक के अगले अंक की प्रतीक्षा में-
सप्रेम प्रणाम दी।
सादर।
प्रिय श्वेता ,
हटाएंगोया के चुनांचे ....बसंत नहीं आएगा तब भी मैं तो कान पकड़ कर भी ले ही आऊँगी । आखिर ज़िन्दगी की दूसरी पारी की शुरुआत की थी , खैर ये गोया के पढ़ कर अपने समय की " मनोरंजन " मूवी याद आ गयी ।
सारे लिंक्स जोड़ कर बड़ी सुगढ़ता से अपनी बात कह दी । और ये तो सच है कि पुरानी रचना लाने में मेहनत कहूँ या समय ज्यादा तो लगता है , लेकिन इस बहाने काफी कुछ पढ़ने को भी मिल जाता है ।।
सराहना के लिए ....स्नेह 😘😘
तुम्हारी दी
बहुत सुंदर प्रस्तुति बसंत ने दे दी दस्तक
जवाब देंहटाएंभारती जी ,
हटाएंआभार ।
प्रिय दीदी,
जवाब देंहटाएं😀😀😀👌👌
ब्लॉग जगत में वसंत छा गया आपकी इस सुंदर प्रस्तुति से। सुधा जी, कुसुम बहन और प्रिय श्वेताकी पुरानी रचनाओं ने भावुक कर दिया। आपकी रचना ने साघनहीनों के अबसंत से उदास कर दिया
। प्रतिभा जी और अमृता जी के लेखन का तो कोई जवाब ही नहीं। बहुत ही प्यारी और मनमोहक प्रस्तुति के लिए ढेरों आभार और अभिनंदन। असल में वसंत के बारे में क्या कहूं! ये किसको प्यारा नहींं होता। शस्य-श्यामला धरा का ये अनूठा रूप किसका मन न मोह ले। सभी रचनाकारों को नमन और शुभकामनाएं। आपको पुनः आभार 🙏🙏🌷🌷💐💐
बसंत पर मेरी कुछ पंक्तियां 🙏
खिलो बसंत -- झूमे दिग्दिगंत
सृष्टि के प्रांगण उतरे
सुख के सुहाने सूरज अनंत |
झूमो रे !गली-गली ,उपवन उपवन
लुटाओ नवसौरभ अतुलित धन
फैले करुणा- प्रेम उजास .
ना हो आम कोई ना हो खास ;
आह्लादित हो मन आक्रांत !
खिलो बसंत -- झूमे दिग्दिगंत !
प्रिय रेणु ,
हटाएंबसंत तो अपने हिसाब से आता है , कहीं उल्लास लिए तो कहीं पता भी नहीं चलता कि कब आया और निकल लिया । बहरहाल हर रचना पर तुम्हारी संक्षिप्त प्रतिक्रिया अमिट छाप छोड़ती है ।
बसंत की मादक सुगंध सबको ही मोह लेती है । तुम्हारी लिखी पंक्तियाँ मुझे " निराला जी " की याद दिला रही हैं ।
सखि वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया ।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृन्द बन्दी--
पिक-स्वर नभ सरसाया ।
लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर,
बही पवन बंद मंद मंदतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया ।
आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे,
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया ।
सूर्यकांत त्रिपाठी " निराला "
बहुत से स्नेह के साथ
दीदी
बहुत सुन्दर लिंकों से सजी मनमोहक प्रस्तुति है इस बार भी…जहाँ मिर्च के गुणगान हैं, तो प्रकृति चित्रकार की महिमा भी है।
जवाब देंहटाएंकामिनी जी ने बहुत सुन्दर तरीके से गीता के महत्व पर प्रकाश डाला है सच है गीता को पढ़ने का और अनुकरण करने का अभ्यास तो बचपन से ही डालना चाहिए न कि मरते समय सुनानी चाहिए…यदि अभिभावक व बच्चे ये समझ लें- ` कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनम्‘ …तो असफल होने परआत्महत्या करना बन्द हो जाए ।
यहाँ राधा की पीड़ा है तो ,आयो बसन्त बहार, मेरे दीप तुम्हे जलना होगा, राधा की पीड़ा जैसी सुन्दर कविताएं भी हैं…संगीता जी की कसक…वे कहती हैं कि …मेरे शहर में बसन्त नहीं आता…कंक्रीट के जंगलों की त्रासदी व्यक्त करती हैं । कुल मिला कर पठनीय अंक बन पड़ा है…सभी को बधाई!
उषा जी ,
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया पर तो शब्द ही नहीं मिल रहे आभार व्यक्त करने के । हर रचना तक पहुँच कर गहनता से पढ़ा है । तहेदिल से शुक्रिया ।