हाज़िर हूँ पाक्षिक हलचल ले कर । यूँ हलचल तो पाक्षिक नहीं है क्योंकि आपको प्रतिदिन पांच लिंकों के आनन्द पर नए लिंक्स मिलते हैं । बस मैं ही यहाँ पाक्षिक रूप से उपस्थित हो पाती हूँ ।
आप सबका असीम प्यार मिलता है तो ये मंच छोड़ भी नहीं पा रही । वैसे यूँ ही सोच रही थी कि प्यार के कितने पर्यायवाची शब्द हैं ? जैसे प्रेम , मुहब्बत , इश्क , नेह, स्नेह, चाहना अभी इतने ही याद आये बाकी आप सोचियेगा । वैसे भी कवि / कवयित्री / शायर सभी प्रेम में डूब कर ही तो कुछ लिख पाते हैं । हमारे चारों ओर प्रेम के रंग बिखरे पड़े हैं किसको कौन सा रंग भाता है ये हर व्यक्ति के लिए अलग है .......
आपको कुछ रंग दिखाने का प्रयास मैं भी करती हूँ .......
एक नारी अपने ख्वाबों में , खयालों में क्या सोचती है ? जानिए इस रचना में ----
कितना कुछ सोच लेती है एक नारी कि उसके लिए उसको प्रेम करने वाला ऐसा होगा क्या ? और जब हकीकत के धरातल पर कदम पड़ते हैं तो सब बिखर सा जाता है । उस समय खुद को संभालना होता है , गर नहीं समेटते तो सब बिखर जाता है ।खुद को समेटने का गुर जानना है तो पढ़िए ये रचना --
स्नेह-शिशु कभी निश्छल कौतुकों से ठिठक कर, इस भर्राये कंठ में जमे सारे अवसाद को पिघलाने के लिए, प्रायोजित उपक्रम कर रहा है। तो कभी वह ओठों के स्वरहीन गति को, निर्बंध गीतों में तोतलाना सिखा रहा है। वह येन-केन-प्रकारेण हृदय को, अपने अनुरागी स्नेह-बूँदों की आर्द्रता देकर, नव रोमांच से अभिसिंचित करना चाह रहा है
इस लेख को पढ़ कर कुछ तो मनोबल ज़रूर बढ़ा होगा । हम सब जानते हैं कि जीवन में जहाँ इतने अवसाद हैं , उनसे उबरने के लिए बहुत कुछ साधन भी हैं .... साहित्य क्षेत्र में माने तो हास्य और व्यंग्य की विधा में किया गया लेखन मन के उदास भाव को बदल भी देता है .... तो माहौल को बदलते हुए एक व्यंग्य पढ़िए ...
बेचारे बदरंगे बैंगन
यूं तो जब से कड़ाके की ठंड पड़नी शुरू हुई तब से रजाई और कंबल से कुछ अधिक ही प्रेम बढ़ गया है। घड़ी का निठल्ला कांटा जिसे समय दिखाने के अलावा और कुछ काम ही नहीं है, जब सुबह के सात पर जा पहुंचता है तो झक मार कर रजाई से विदा लेनी पड़ती है। रजाई भी इस बात से व्याकुल हो उठती है कि उसे अब दिन भर मेरा विरह सहना पड़ेगा।
अब चुनाव का मौसम है ..... वैसे ये मौसम पूरे सालभर चलता है ...बस जगह बदल जाती है ...लेकिन ये उत्तर प्रदेश के चुनाव की बात है तो सबकी नज़र इस पर है .इसीलिए ये व्यंग्य बहुत समसामयिक है | इसी रंग में रंगी एक और रचना ....
प्यारे राजनीति में आएँ
चलिए नेताओं पर तो हो गयी थोड़ी छींटाकशी की बौछार और अब बात उनके लिए जो ग़ज़लों को करते हैं प्यार ..... जी हाँ कुछ लोगों को ग़ज़लों से भी प्यार होता है खाली प्यार में ही ग़ज़ल नहीं कहते .....
गजल में दीन- दुनिया की बात करने में माहिर जो हैं उनकी ग़ज़ल पेश है ....
परवाज़ परिंदों की अभी बद-हवास है ...
तबका न कोई चैनो-अमन से है रह रहा,
सुनते हैं मगर देश में अपने विकास है.
ज़ख्मी है बदन साँस भी मद्धम सी चल रही,
टूटेगा मेरा होंसला उनको क़यास है.
छिन गया बचपन बच्चों का,
उठ गया सर से जब साया,
हो गये अनाथ जो इक पल में
छिन गया पिता का इन्हे सहारा.....
मुश्किल जीवन बीहड राहें,
उस पर मासूम अकेले से,
कैसे आगे बढ़ पायेंगे,
सोच के मन मेरा घबराया.....
ये तो है एक सैनिक जो शहीद हो गया उसके परिवार की कहानी , लेकिन एक सैनिक के मन में क्या जज्बा होता है उसे बहुत सुन्दर शब्दों में इस रचना में वर्णित किया गया है ...
मैं सैनिक
आश्वासन देता निर्भय का ,
मृत्यु -पथ का राही मैं
चिर अभिलाषी अमर विजय का!
अभी इस रचना में दी गयी उपमा से उबर भी न पाए कि एक और सुन्दर रचना नज़र आ गयी ..... छोटी सी है , थोड़ा विरह का रंग है लेकिन शब्द विन्यास और अलंकारों से सुसज्जित है .... बस अब आप पढ़ ही लीजिये ....
पुस्तकें अवसाद में अब
बात कल की सोचती सी
झाड़ मिट्टी धूल अंदर
हम रहें मन रोसती सी।।
तो एक गुजारिश कि केवल इंटरनेट पर पढने लिखने का काम न करें ...कभी कभी किताबें भी पढ़ें और डायरी में भी लिखें ..वरना अगली बार डायरियाँ अवसाद में आ जाएँगी .... वैसे कभी कभी इस अवसाद को लोग ओढ़ और बिछा लेते हैं ... उदास होने का बस बहाना चाहिए .... वैसे बहाना नहीं कहना चाहिए , लेकिन इतना दर्द भी भला क्यों ? ... चलिए पढ़ते हैं एक ग़ज़ल ....
साथ जिनके इतनी हैं गहराइयाँ ।
ज़िन्दगी का यूँ सफ़ऱ मुश्किल हुआ,
इतनी रंजिश, इतनी हैं रुसवाईयाँ।
देखिए, सबसे पहले आया मैं, आपके इस मोहक और अद्भुत संकलन का आस्वादन करने। बस इतना ही कहेंगे:
जवाब देंहटाएंया अनुरागी चित्त की गति समुझै नहीं कोय।
ज्यों-ज्यों बुड़ै श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जल होय।।
आदरणीय विश्वमोहन जी ,
हटाएंआपकी इस प्रतिक्रिया के लिए नतमस्तक हूँ ।
इससे ज़्यादा तो कुछ हो ही नहीं सकता ।
हृदयतल से आभार
ज़िन्दगी को यूँ मुश्किल
जवाब देंहटाएंहमारी सोच ने है कर दिया
किसकी ज़िन्दगी में नहीं है
आज - कल परेशानियाँ |
बहुत खूब.
ये पंक्तियां आज मुझ पर फिट बैठ रही है
सादर नमन
प्रिय यशोदा,
हटाएंशीघ्र ही परेशानियाँ दूर हो जाएंगी । हमेशा आशावान रहो ।
सस्नेह
सुंदर लिंक सुंदर चयन आदरनीय संगीता जी बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुती ।
जवाब देंहटाएंसादर
हर्ष जी ,
हटाएंबहुत शुक्रिया ।
आदरणीय दीदी 👏👏💐💐
जवाब देंहटाएंकई सूत्रों तक जाना हुआ । बहुत सुंदर,सराहनीय और पठनीय रचनाएँ । आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा नमन और वंदन ।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार ।
सभी रचनाकारों को मेरी बधाई 💐💐
प्रिय जिज्ञासा ,
हटाएंसूत्रों तक पहुँचाना ही हमारा काम है । यूँ ही लिखते रहें और हम आपकी पोस्ट के लिंक सजाते रहें 😄😄 ।
बहुत शुक्रिया ।
सस्नेह
आपकी श्रमसाध्य प्रतिबद्धता को प्रणाम करती हूँ आदरणीय संगीता जी।
जवाब देंहटाएंदूर नजदीक सभी ब्लागरों को खोज कर उनकी रचनाओं पर मनन चिंतन द्वारा टीका के साथ प्रस्तुत करना,सादर साधुवाद।
आज की प्रस्तुति बहुत ही शानदार हैं, बेशक साथ ही अभिनव भी।
मेरी रचना को शामिल करने और उस पर समर्थन देती टिप्पणी के लिए हृदय से आभार।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सादर सस्नेह।
कुसुम जी ,
हटाएंआपको मेरी टीका - टिप्पणी पसंद आती है इसके लिए तहेदिल से शुक्रिया ।
प्रस्तुति पसंद करने के लिए आभार ।
सादर
इसी प्रेमाख्यानी चाँदनी में प्रेमाहुति के लिए हम प्रेमी पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं । हमारा चाँद तो ऐसा निराला जो स्वनिर्णय करता है कि कब निकलेगा । पर उसका सलोना रूप हमारे हृदय में दीप्त होता ही रहता है । नैनाभिराम!!!
जवाब देंहटाएंअमृता जी ,
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया मेरी मुस्कान का वायस बन गयी है । प्रेमी तो पूर्णिमा का ही इंतज़ार करते हैं भले ही अमावस्या क्यों न हो । आप हुकुम करें भला चाँद की मज़ाल जो स्वनिर्णय ले ले ।
इतने रूपकों से सजी प्रतिक्रिया मेरे लिए अनमोल है ।
आभार 🙏🙏
ये तो प्रेमांध दृष्टिदोष है कि बस चमकता चाँद ही दिखता है चाहे अमावस हो या पूर्णिमा । आपकी यही मुस्कान हर तृषित अधर पर खिले । आप ही अनमोल है हम सबों के लिए । हार्दिक आभार ।
हटाएंअमृता जी ,
हटाएंज़हेनसीब 🙏🙏🙏🙏
शुक्रिया ।
बेहतरीन रचनाओं के सूत्र। बहुत आभार
जवाब देंहटाएंशिखा ,
हटाएंआप आए , बहार आयी ।
प्रिय दी,
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो शीर्षक जबरदस्त है पढ़कर मुस्कुराहट तैर गयी।
आपके द्वारा चुने गये सूत्रों पर बात-चीत के अंदाज़ में
सहजता से लिखी गयी अभिव्यक्ति अंक का मुख्य आकर्षण है। कितनी सुगढ़ता से पूरे अंक को एक सुंदर,रोचक लेख का रूप दे देती हैं आप बहुत अच्छा लगत है पढ़ना.. दी ये कला मुझे भी सीखनी है आपसे।
रचनाएँ सभी बेहद उत्कृष्ट हैं।
मार्डन आर्ट-सी
प्रेम के रंग या
प्रणीते का त्रास
मन को ढ़ाढस देती
स्नेह शिशु की अठखेलियाँ,
मैं सैनिक
मृत्यु पथ का राही,
कुछ संवेदनशील हृदय सोच रहे
दो दिन की हमदर्दी में,
जीवन किसका निभ पाया?
ये तो सच है
प्यारे राजनीति में आए
और...
बेचारे बदरंगे बैंगन हुए
पुस्तकों का अवसाद है या
कुछ शोर हवाओं का आस-पास है
परवाज़ परिंदों की अभी बद-हवास है
ज़िंदगी का यूँ.सफ़र मुश्किल हुआ
दर्द-ए-दिल पर किसकी हैं परछाईंयाँ
----
आपके मनोयोग से किये गये श्रम ककी सराहना मुश्किल है। जिस वजह से भी आप बनाती रहे अंक हम पाठकों के लिए ... पाक्षिक विशेषांक की प्रतीक्षा में-
सप्रेम
प्रणाम दी।
प्रिय श्वेता ,
हटाएंमेरा सूत्रों को पिरो कर लिखना पसंद आता है ,यह जानकर खुशी । अब सिखाऊँगी क्या जब खुद ही नहीं पता कि लिख क्या रही हूँ ।
वैसे जब सूत्रों के लिंक इतनी खूबसूरती से जोड़ने लगी हो तो ऐसा लिखना कहाँ मुश्किल है ।
अब तक तो तुम सीख भी गयी होंगी । अगली हलचल ऐसे ही लगाना ।😍😍😍😍
मनोयोग से पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए शुक्रिया ।
सस्नेह
बेहतरीन संकलन,अनेक रंगों का मिश्रण
जवाब देंहटाएंभारती जी ,
हटाएंबहुत शुक्रिया ।
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर विविध रंगों से सजा प्रस्तुतिकरण आज भी…जिसमें प्रेम का रंग है तो राजनीति भी शामिल है, बेचारे बदरंगे बैंगन हैं तो शहीद सैनिकों के परिवारों के मन की व्यथा भी , प्रणीते का त्रास है तो पुस्तकों का अवसाद भी, मॉडर्न आर्ट की परिकल्पना है तो दर्दे दिल की परछाइयाँ भी… रचनाकारों को और आपको सुन्दर लिंक सजाने व संकलित करने के लिए बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंउषा जी ,
हटाएंसारे सूत्रों पर आपकी नजर बराबर पड़ी है । भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए आभार ।
ज़िन्दगी को यूँ मुश्किल हमारी सोच ने है कर दिया
जवाब देंहटाएंकिसकी ज़िन्दगी में नहीं है आज - कल परेशानियाँ
सच हमारी सोच ही जिंदगी को मुश्किल बनाती है
अब देखिये ये प्रस्तुति जो इतनी मुश्किल है हमारी नजर में आप हमेशा लाती हैं हमारे लिए इसे यूँ ही सजा धजा कर...आपकी प्रतिक्रिया पाकर हमारी साधारण सी रचना भी सार्थक और पठनीय बन जाती है...आपकी नजर है जो सबका नजरिया बदल देती है हर लिंक पाठक बरबस पढ़ना चाहता है क्योंकि रचना के सार में आपके भाव उसको आकर्षक बना देते हैं ..नमन आपकी प्रतिबद्धता को एवं आपको🙏🙏🙏🙏
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद।
प्रिय सुधा जी ,
हटाएंआपने मेरे लिखे को रेखांकित किया , इसके लिए तहेदिल से शुक्रिया ।
प्रस्तुति लगाना क्या मुश्किल है ? लिंक ही तो सजाने होते हैं । आप भी कीजिये । मज़ा आएगा ।
मेरे में इतनी कुव्वत कहाँ कि नज़रिया बदल सकें , लेकिन यदि फिर भी बदलता है तो यही कहूँगी कि ये आपकी ज़र्रानवाज़ी है ।
सस्नेह ।
प्रिय दीदी, जीवन के सभी रग सहेजता अत्यन्त भावपूर्ण अंक बहुत बढ़िया लगा। नारी के भीतर व्याप्त प्रेम के सभी रंग, शहीद के परिवार के क्षत -विक्षत सपनों की करुणा भरी व्यथा- क्था , कथित प्रगति में उपेक्षित पुस्तकों का अनकहा अवसाद , और चांद की अनुरागरत प्रणीता की वेदना के साथ मनोहारी गजलों के साथ मेरी रचना को आज की प्रस्तुति के लिए मेरी तरफ से हार्दिक आभार। और स्नेह शिशु के क्या कहने 👌👌
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को नमन और सारगर्भित प्रतिक्रियाएं मन मोह गई। आपको ढेरों शुभकामनाएं। मंच परआपकी उपस्थिति और भाग्यशाली रचनाकारों की रचनाओं की गहन समीक्षा की अपनी एक अलग अदा और गरिमा है। जिसके लिए कोई आभार पर्याप्त नहीं। आपकी उपस्थिति सबको एकता के सूत्र में पिरो देती है। एक बार फिर आभार और अभिनंदन आपका। ये महफिल यूं ही गुलज़ार रहे 🙏🙏❤️❤️🌷🌷
प्रिय रेणु ,
हटाएंहर सूत्र तक पहुँच कर सारगर्भित प्रतिक्रिया पा कर मन आनंदित हो जाता है । सूत्रों के साथ पाठकों को एकता के सूत्र में पिरो सकूँ , इससे ज्यादा मेरे लिए कुछ नहीं ।
यहाँ हम सब चर्चाकार अपने अपने अंदाज में लिंक्स आप सब पाठकों के लिए लाते हैं ।उस पर प्रतिक्रिया पा कर मन उत्साहित हो उठता है ।
तुम्हारी प्रतिक्रिया सबको ही ऊर्जावान कर देती है ।
इस प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया ।
सस्नेह ।
जी ! नमन संग आभार आपका .. "प्रेम के रंग ..." वाली
जवाब देंहटाएंअपनी अनमोल पाक्षिक प्रस्तुति में मेरी किसी पुरानी बतकही को स्थान देने के लिए ...
पर कल सब्जी-बाज़ार गया था मैं, बेचारा "बैंगन" बहुत रो रहा था, आप से बहुत नाराज़ भी था, कि आपने उसे सार्वजनिक तौर पर "बदरंग" क्यों कह दिया .. वो तो बेचारा कई रंगों और रूपों में समाज सेवा करता है,बिना Cold Cream और Vaseline के वो चमकता रहता है .. बेचारा .. अब आप ही उसको चुप करा लीजिए, च्-च्-च् .. बहुते रो रहा है जी बेचारा .. भोंकार पार-पार के .. 😂😂😂
प्रेम के एक कसैले, पर सत्य रूप को भी तो नहीं नकारा जा सकता ना .. जिसे वर्षों पहले तुलसी दास जी ने रामचरितमानस में चिपकाया था कि "सुर नर मुनि सब कै यह रीति.. स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति।".. शायद ...
चलते-चलते .. आपके मंच के माध्यम से विश्वमोहन जी से एक ठिठोली (अग्रिम क्षमाप्रार्थी) कर लें , कि "सर्वश्रेष्ठ महाशय" सर्वप्रथम प्रतिक्रिया देकर, इसके लिए भी श्रेय लेने की "थेथरई"😁😁 क्यों करना चाह रहे हैं, उनको ये तो पता होगा ही कि भोज के पत्तल में सुस्वादु मिष्ठान वाले व्यंजन सब से अंत में परोसे जाते हैं .. और तो और विशेष दिन कमरे में सब से अंत में जाने वाला दूल्हा होता है (इस उपमा को अन्यथा ना लेकर, हास्य के तौर पर लिया जाए🙏🙏🙏) .. बस यूँ ही ...😃😃😃
सुबोध जी ,
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया अपनेआप में अनमोल होती है । इस प्रस्तुति पर आपके आगमन से प्रस्तुति धन्य हुई । 😄😄😄
प्रेम के न जाने कितने रूप हैं , नकारा किसी को भी नहीं जा सकता , इसीलिए अधिक से अधिक रंग यहाँ देने का प्रयास किया है भले ही कंडों से क्यों न तुलना की गई हो ।
रही बैंगनों की नाराजगी की बात तो वो मुझसे नाराज़ नहीं , क्यों कि मैंने तो उनकी व्यथा को लोगों तक पहुँचाया है । और अब पाठक सच ही उनसे सहानुभूति रख रहे हैं और शरद जी भी उनको एक किलो एक साथ खरीद कर थोड़ा न्याय तो कर ही चुकी थीं । तो उनकी चिंता आप बिलकुल न करें ।
वैसे ठिठोली भले ही आपने विश्व मोहन जी से की हो लेकिन थेथरई तो आप कर रहे खुद को दूल्हा बता कर ।😄😄😄 दो दिन बाद आने से तो दुल्हन भी किसी और की हो जाती है । 😆😆😆😆 मज़ाक एक तरफ ।
इस बतकही के लिए शुक्रिया ।
बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय
हटाएंbest
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